बिनौला खल में आयल छोड़े जाने से 40 करोड़ का प्रतिवर्ष हो रहा नुकसान : देशमुख
जागरण संवाददाता, सिरसा : केंद्रीय कपास प्रौद्योगिकी अनुसंधान संस्थान माटुंगा मुंबई, भारतीय कृषि
जागरण संवाददाता, सिरसा : केंद्रीय कपास प्रौद्योगिकी अनुसंधान संस्थान माटुंगा मुंबई, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. पीएस देशमुख ने कहा कि आयल फैक्टरी में बिनौला से खल बनाते समय आयल छोड़ा जाता है। जबकि पशुओं को इस आयल की जरूरत नहीं है। देश में प्रतिवर्ष 40 करोड़ का आयल खल में वेस्ट हो रहा है। जो यह चिन्ता का विषय है। डा. पीएस देशमुख सोमवार को सिरसा में कॉटन फैक्ट्रियां का निरीक्षण करते हुए कही। इससे पहले उन्होंने हिसार व जींद में कॉटन फैक्ट्रियां का निरीक्षण किया। इससे पहले केंद्रीय कपास प्रौद्योगिकी अनुसंधान संस्थान सिरसा के निदेशक डा. हामिद हसन ने सिरसा में होने वाली कॉटन के संबंध में जानकारी उपलब्ध करवाई।
नहीं पशुओं को खल में आयल की आवश्यकता
वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. पीएस देशमुख ने कहा कि पशुओं को खल में आयल की आवश्यकता नहीं होती है। बिनौला में 22 फीसद तक आयल होता है। कॉटन फैक्ट्रियां के अंदर निरीक्षण में पाया है कि खल के अंदर 7 से 8 फीसद आयल रखा जाता है। क्योंकि पशु पालक इस आयल वाली खल को ही अच्छी क्वालिटी मानते हैं। जबकि हकीकत ये है कि इस आयल की पशुओं को कोई आवश्यकता नहीं है। इसके लिए किसानों व पशुपालक में जागरूकता की कमी है। जिसके कारण ही फैक्ट्रियां के मलिक आयल वाली खल तैयार कर रहे हैं।
--- विदेशों से खरीदना पड़ रहा है आयल
वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. देशमुख ने बताया कि देश में प्रतिवर्ष 100 लाख टन बिनौला का उत्पादन होता है। खल में आयल छोड़ जाने से 40 करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है। यहीं नहीं जहां देश में आयल की पूर्ति करने के लिए विदेशों से आयल खरीदना पड़ रहा है। जिससे देश को आर्थिक नुकसान हो रहा है। उन्होंने कहा कि देश का पैसा विदेश में न जाए इसके लिए वैज्ञानिकों द्वारा कॉटन फैक्टियां के संचालकों व पशुपालकों को जागरूक करने का फैसला लिया है।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।