Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    धूमधाम से संपन्न हुई नानी बाई रो मायरो कथा

    By JagranEdited By:
    Updated: Sun, 28 Mar 2021 07:41 AM (IST)

    जागरण संवाददाता सिरसा स्व. श्रीमती रेखा शर्मा मेमोरियल ट्रस्ट एवं स्व. श्रीमती सोनाली झूंथरा म

    Hero Image
    धूमधाम से संपन्न हुई नानी बाई रो मायरो कथा

    जागरण संवाददाता, सिरसा : स्व. श्रीमती रेखा शर्मा मेमोरियल ट्रस्ट एवं स्व. श्रीमती सोनाली झूंथरा मेमोरियल ट्रस्ट के संयुक्त तत्वावधान में चार दिवसीय नानी बाई रो मायरो कथा गत दिवस हर्षोल्लास के साथ संपन्न हुई। जिसमें शर्मा एवं झूंथरा परिवार के अनेक सदस्यों ने भी नानी बाई की बेटी की शादी में भगवान श्रीकृष्ण के साथ और उनकी हाजिरी में मायरा भरा।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    कथाव्यास जया किशोरी ने कहा कि ज्यों ही नानी बाई को अपने पिता नरसी मेहता के अंजार नगर में आने का पता चलता है तो वह हर्ष में उनसे मिलने जाती है। मगर मिलने जाने से पूर्व अंजार नगर स्थित श्रीरंग सेठ के परिवार की ओर से नरसी मेहता की गरीबी पर दिए गए तानों से नानी बाई को हुई पीड़ा और उसकी छटपटाहट उसे इस कदर परेशान कर देती है कि वह अपने पिता से मिलने के दौरान नरसी मेहता को ही अनेक पीड़ादायक बातें कहने पर मजबूर होती है। नानी बाई कहती है कि यदि आज उसकी मां जीवित होती तो निश्चित ही वह उसके लिए दो जोड़ी कपड़े तो अवश्य लाती मगर वे तो बिल्कुल खाली हाथ आए हैं। इससे ससुरालपक्ष को उसे व उसके पिता नरसी मेहता को बुरा भला कहने का अवसर मिला है। इसी क्रोध की अवस्था में नानीबाई अपने पिता से कहती हैं कि जिस श्रीहरि पर उन्हें ज्यादा भरोसा है तो उसे सहायता के लिए अभी क्यों नहीं बुलाते। इस पर नरसी मेहता अपने प्रभु पर पूरा भरोसा करते हुए कहते हैं कि वे उनकी सहायता करने अवश्य आएंगे। नरसी मेहता अपनी बेटी नानी बाई से कहते हैं कि वे अपने ससुराल पक्ष के लोगों से एक और पत्र लिखवाए, जिसमें अनेक कीमती वस्तुओं की मांग हो। इस बात का ससुराल पक्ष में मजाक बनता है। नानी बाई परेशान होकर पानी भरने जाती हैं और एक पेड़ पर बैठे तोते से कहती हैं कि जरा ऊंची टहनी पर बैठकर दूर से देखकर बताओ कि कहीं से मेरे भाई श्रीकृष्ण की आहट तो नहीं सुनाई पड़ रही। तोते ने कहा कि किसी रथ के आने से उड़ने वाली धूल की स्थिति से पता चल रहा है कि कोई रथ आ रहा है और रथ में द्वारकाधीश श्रीकृष्ण अपनी रानी रूकमणि के साथ बैठे हैं।

    वहीं खाती के रूप में भी श्रीकृष्ण भी नरसी के समक्ष आते हैं और अपने प्रभाव से नरसी मेहता के साथ आए सभी नेत्रहीनों को उनके नेत्र लौटा देते हैं। वहीं नानीबाई अपने भाई श्रीकृष्ण द्वारा उनकी सहायता करने के लिए आने पर उनसे कहती हैं कि वे परंपरागत तौर पर ससुरालपक्ष को वही चीजें दे दें जो जरूरी हों। मगर श्रीकृष्ण नानीबाई से कहते हैं कि घबराने की जरूरत नहीं केवल तुम्हारे ससुराल पक्ष के लोगों के लिए ही नहीं बल्कि पूरे गांव के सभी लोगों के लिए भी भरपूर वस्तुएं उपलब्ध हैं। इस पर इठलाती नानीबाई ने अपने भाई श्रीकृष्ण द्वारा देशभर के विभिन्न कोनों से लाई गई महंगी कीमती वस्तुएं अपने ससुरालपक्ष को मायरे के रूप में सौंपी।