वेस्ट मटीरियल से राखियां बना रहे हैं कबीर बस्ती के 25 बच्चे
डबवाली की कबीर बस्ती में रहने वाले संजना प्रिया शुभम नन्दनी अरमान सम ...और पढ़ें

डीडी गोयल, डबवाली : डबवाली की कबीर बस्ती में रहने वाले संजना, प्रिया, शुभम, नन्दनी, अरमान समेत 25 बच्चे मिलकर वेस्ट मटीरियल से राखियां बना रहे हैं। 200 से ज्यादा राखियां बन चुकी है। 21 अगस्त को डबवाली की नई अनाज मंडी रोड पर स्थित रामलीला मैदान में सुबह छह से 10 बजे तक प्रदर्शनी लगाकर राखियां बेचेंगे। एक राखी का मूल्य 20 रुपये तय किया है। पिछले साल 15 अगस्त 2020 को रक्षाबंधन वाले दिन ऐसा किया था, उस समय 900 रुपये जुटे थे। बच्चों ने सारे के सारे पैसे कैंसर रोग के इलाज के लिए डोनेट कर दिए थे। आपको बता दें, ये बच्चे छटी या सातवीं कक्षा में पढ़ते हैं। इनके स्वजन मजदूरी करते हैं। बच्चे आत्मनिर्भर बने, माता-पिता की मेहनत को आत्मसात करें, इसलिए उनकी टयूटर प्रतिमा मुरेजा उनके लिए अनोखा आइडिया लेकर आई है। डबवाली की रहने वाली प्रतिमा खाद्य एवं आपूर्ति विभाग पंजाब के बठिडा सर्कल में बतौर निरीक्षक तैनात है।
प्रतिमा के अनुसार वे बर्थ-डे या अन्य त्योहार बच्चों के साथ मनाते है। उसे पता चला कि कुछेक बच्चे मोबाइल गेम खेलने लगे है। ये बच्चे स्वजनों से पैसे मांगते है। फिर किसी बाहरी व्यक्ति से रिचार्ज करवाकर गेम खेलते है। बच्चों में मोबाइल गेम आदत न बन जाए, इसलिए वह एक हफ्ते पहले उनसे मिली। उन्हें इंटरनेट मीडिया के जरिए राखियां बनाने की सलाह दी। बच्चों ने पूछा हमसे राखियां कौन खरीदेगा तो जवाब दिया कि जो राखियां हम खरीदते है, वह भी तो कोई बनाता है। दीदी से मिले गुर को बच्चों ने अपना लिया। घर पहुंचे वेस्ट मटीरियल जैसे पुराने सूट, टूटे शीशे या स्टोन एकत्रित करके राखियां बनानी शुरू कर दी। एक दिन में बच्चे औसतन 15 से 20 राखियां बना रहे है। प्रतिमा के अनुसार राखियों की बिक्री के समय वह, उनके सहयोगी स्टाल पर मौजूद रहेंगे। जितनी आमदनी होगी बच्चों में बराबर-बराबर बांट दी जाएगी।
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खुद यूकेजी में थी तो 70 फीसद झुलसी थी
प्रतिमा 23 दिसंबर 1995 को डबवाली में हुए भीषण अग्निकांड में झुलस गई थी। वह भी 70 फीसद तक। इसके बावजूद वह खूब पढ़ी, सरकारी नौकरी पाई। डबवाली में रहते हुए कबीर बस्ती के बच्चों के लिए इवनिग क्लास शुरू की तो बठिडा में बच्चों को पढ़ाने लगी है। बता दें, अग्निकांड के समय प्रतिमा यूकेजी में थी, आग में झुलसने के कारण उसका बायां पैर आर्टिफिशल है। अभी भी उसका इलाज चल रहा है।
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मैं मानती हूं कि प्रत्येक बच्चे में टेलेंट छिपा होता है। उसे तराशने की जरूरत होती है। मुझे खुद राखी बनानी नहीं आती। मैंने तो परिवारों की आर्थिक स्थिति देखकर आइडिया दिया था। राखियां में बच्चों का टेलेंट शाइन करता नजर आता है। मेरा तो मकसद यही है कि बच्चे यह समझें कि उनके मां-बाप कैसे कमाते हैं, उनकी परवरिश करते है। मुझे पूरा विश्वास है, 25 बच्चों की मेहनत रंग लाएगी। वे जीवन में सफल होंगे।
- प्रतिमा मुरेजा, निरीक्षक, खाद्य एवं आपूर्ति विभाग बठिडा।

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