127 वर्षीय स्वामी देवनायकाचार्य का काहनौर में हुआ भव्य स्वागत
जागरण संवाददाता, रोहतक : मध्यप्रदेश के दतिया के वैष्णव संप्रदाय के 127 वर्षीय स्वामी देवनायकाच
जागरण संवाददाता, रोहतक :
मध्यप्रदेश के दतिया के वैष्णव संप्रदाय के 127 वर्षीय स्वामी देवनायकाचार्य अपने सेवक के घर कस्बे के गांव काहनौर पहुंचे। इस अवसर पर स्वामी के दर्शन करने के लिए लोगों का हुजूम लग लगा। इस अवसर पर उन्होंने बताया कि जब मनुष्य का जन्म होता है तो संसार में आते ही रोना शुरु कर देता है। 1890 के अंदर उनका जन्म हुआ तो उनके शरीर के अंदर कोई भी हलचल नहीं थी यह देख उनके मां बाप ने भी जंगल में उसे फेंक दिया। थोड़े समय के बाद उनकी नानी ने जब उन्हें देखा तो और उन्हें जीवन के कुछ लक्षण दिखाई दिए तो उसे उठाकर वापस घर लेकर आए। उन्होंने बताया कि जब संसार ने मुझे जन्म लेते ही छोड़ दिया तो संसार की क्यों ¨चता करें। यही सोचते हुए उन्होंने घर का त्याग कर दिया। घर का त्याग करने के बाद उन्होंने घोर तपस्या की और उसके बाद उन्होंने सभी तीर्थ स्थानों की यात्रा की। उन्होंने सबसे पहले कपिला जोकि राजा द्रुपद की राजधानी थी में अपना पहला गीता ज्ञान आश्रम बनाया। आज इस आश्रम के पास 150 बीघा कृषि योग्य भूमि है और तीन बीघा में गोशाला भी बनी हुई है। एक रात जब स्वामी देवनायकाचार्य सोए हुए थे तो उन्हें सपने में सांप के फन दिखाई दिए। लेकिन उसके बाद ये सिलसिला चलता ही रहा और उन्हें रात को नींद भी नहीं आने लगी। उन्हें लगा शायद शेषनाग भगवान धरती पर आना चाहते हैं। यही विचार करते हुए उन्होंने गीता ज्ञान आश्रम को अपने सेवकों को सुपुर्द कर वहां से चल पड़े। 2014 में वे दतिया जिले के नया गांव रिछारी पहुंचे और वहां के जंगल में पूजा करने लगे। उन्हें लगा कि सम्राट सहस्त्र फनधारी शेषनाग का मंदिर यही बनाना चाहिए। आसपास के लोगों की सहायता से लगभग छह बीघा जमीन खरीदकर मंदिर का निर्माण कार्य शुरू करवाया। स्वामी ने बताया कि लगभग 100 करोड़ की लागत से बनने वाला यह सहस्त्रफनधारी शेषनाग का मंदिर भारत का पहला सबसे भव्य मंदिर होगा। उन्होंने बताया कि इस मंदिर में साल में करीब एक लाख लोगों को लंगर करवाया जाता है। यहीं नही हर शनिवार को यहां पर खिचड़ी का प्रसाद भी वितरित किया जाता है।
पतन का सबसे बड़ा कारण आहार है
स्वामी देवनायकाचार्य से उनकी उम्र और आज के समाज के बारे बात की तो उन्होंने बताया कि वो बचपन से ही बालब्रह्मचारी हैं और उन्होंने अन्न का बिल्कुल त्याग किया हुआ है। अपने भोजन में वो फलाहार व कुट्टू का आटा लेते हैं। दैनिक जीवन में वो योग को कभी भी नहीं भूलते। आज के युवा वर्ग के नैतिक पतन को लेकर उन्होंने कहा कि आज पतन का सबसे बड़ा कारण आहार है क्योंकि आहार से ही विचार आते हैं। उन्होंने कहा कि आज माता-पिता अपने बच्चों को शिक्षा तो दिलवा रहे हैं लेकिन संस्कार से बच्चे दूर होते जा रहे है। जोकि बहुत ही ¨चता का विषय है। उन्होंने कहा कि इतनी लंबी उम्र में उन्होंने समाज मे बहुत बदलाव देखे हैं लेकिन आज साधना की काफी कमी महसूस की जा रही है।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।