संकटग्रस्त श्रेणी वाला ‘डांसिंग डियर’ आएगा हरियाणा, रोहतक बनेगा एल्ड हिरण का नया घर, पढ़ें खासियत
रोहतक के तिलियार चिड़ियाघर में जल्द ही दुर्लभ प्रजाति एल्ड हिरण को लाने की तैयारी है। केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण ने इसकी मंजूरी दे दी है। शुरुआत में तीन नर और तीन मादा हिरण लाए जाएंगे जिनका यहां प्रजनन कराया जाएगा। इस हिरण को डांसिंग डियर भी कहा जाता है और यह वन्यजीव संरक्षण का एक महत्वपूर्ण कदम है। इससे रोहतक की पहचान राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ेगी।

जागरण संवाददाता, रोहतक। रोहतक के तिलियार लघु चिड़ियाघर में जल्द ही दुर्लभ प्रजाति एल्ड हिरण (ब्रो-एंटलर्ड डियर) को लाने की तैयारी है। दुनिया भर में संकटग्रस्त श्रेणी में गिने जाने वाले इस हिरण को पहली बार हरियाणा में लाया जाएगा और इसकी शुरुआत रोहतक से होगी। देश में संगाई सबसे प्रसिद्ध है, जिसे “डांसिंग डियर” कहा जाता है, क्योंकि यह लोकटक झील के तैरते हुए द्वीपों पर ऐसे चलता है मानो नाच रहा हो। वन्यजीव संरक्षण का नया हब बनने की ओर भी कदम बढ़ा चुका है।
केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण की ओर से इस मामले में मंजूरी दी गई है। इसके अनुसार कानन पेंडारी जूलोजिकल गार्डन बिलासपुर से रोहतक चिड़ियाघर से यह सौगात मिलने जा रही है। एल्ड हिरण का आगमन यहां की पहचान को राष्ट्रीय स्तर तक ले जाएगा। जब आने वाले समय में बच्चे रोहतक चिड़ियाघर में “डांसिंग डियर” को देखेंगे तो यह केवल मनोरंजन नहीं होगा, बल्कि जिले की जैव विविधता और संरक्षण की गाथा का जीवंत उदाहरण भी होगा। राेहतक डीएफओ राजीव गर्ग के मुताबिक यह अच्छा फैसला है।
वन्य विभाग की योजना के अनुसार, शुरुआत में 3 नर और 3 मादा एल्ड हिरण रोहतक लाए जाएंगे। इसके बदले रोहतक से अन्य हिरण प्रजातियों को पंचकूला और हिमाचल के चिड़ियाघरों में भेजा जाएगा। उद्देश्य है कि यहां इनका प्रजनन कराया जाए और आने वाले वर्षों में इनकी संख्या बढ़ाकर प्रदेश के अन्य चिड़ियाघरों में भी भेजा जा सके। रोहतक में एल्ड हिरण का आना ऐतिहासिक क्षण होगा। हम इनका प्रजनन कर इन्हें संरक्षित करेंगे ताकि हरियाणा के लोग भी इस दुर्लभ प्रजाति से परिचित हो सकें।
ये हैं डांसिंग डियर या एल्ड हिरण
एल्ड हिरण का वैज्ञानिक नाम रुसर्वस एल्डी है। यह हिरण अपने अनोखे सींगों की वजह से प्रसिद्ध है। नर हिरण के सींग बाहर की ओर फैले और फिर पीछे की तरफ मुड़े हुए होते हैं, जिन्हें स्थानीय भाषा में “सिंग वाले हिरण” भी कहा जाता है। इनकी तीन उप-प्रजातियां होती हैं-
संगाई: मणिपुर में पाई जाती है।
थामिन: म्यांमार और थाइलैंड में मिलती है।
शान: कंबोडिया, लाओस और वियतनाम में पाई जाती है।
रोहतक में होगा विकास
मणिपुर में 1950 के दशक में इसे विलुप्त मान लिया गया था, लेकिन बाद में सीमित संख्या में पाए जाने के बाद बड़े स्तर पर संरक्षण की पहल शुरू की गई। आज यह भारत के वन्यजीव संरक्षण की सबसे बड़ी सफलता कहानियों में से एक माना जाता है। रोहतक के तिलियार चिड़ियाघर को हरियाणा में वन्यजीव संरक्षण और प्रजनन कार्यक्रम का केंद्र बनाया जा रहा है।
यहां की जलवायु और पर्यावरण एल्ड हिरण के लिए उपयुक्त माने गए हैं। यहां पर रोहतक चिड़ियाघर के पास पर्याप्त जगह और प्राकृतिक माहौल है। नजदीक ही महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय है, जहां पर्यावरण विज्ञान और जैव प्रौद्योगिकी विभाग सक्रिय हैं। शहर शैक्षणिक केंद्र है, इसलिए यहां इस प्रजाति के प्रति जागरूकता फैलाना आसान होगा।
पर्यटन को मिलेगा बढ़ावा
पर्यटन में उछाल: रोहतक के तिलियार लघु चिड़ियाघर में नया आकर्षण जुड़ने से न केवल जिले, बल्कि दिल्ली और आसपास के राज्यों से भी पर्यटक आएंगे।
शोध और शिक्षा: एल्ड हिरण का अध्ययन करने के लिए देशभर के शोधार्थी और विद्यार्थी रोहतक का रुख करेंगे।
अर्थव्यवस्था में योगदान: स्थानीय बाजार, होटल और परिवहन सेवाओं को सीधा लाभ होगा।
पर्यावरणीय पहचान: अब तक रोहतक की पहचान शिक्षा और खेल से जुड़ी रही है, लेकिन एल्ड हिरण इसे पर्यावरणीय महत्व भी देगा।
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