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रोहतक की बेटी के बुने हुए रेजा स्टोल के पीएम मोदी भी कायल

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी रोहतक की फैशन डिजाइनर ललिता चौधरी द्वारा तैयार रेजा स्‍टॉल को पसंद करते हैं और इसका इस्‍तेमाम करते हैं।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Wed, 11 Apr 2018 11:15 AM (IST)Updated: Wed, 11 Apr 2018 11:15 AM (IST)
रोहतक की बेटी के बुने हुए रेजा स्टोल के पीएम मोदी भी कायल
रोहतक की बेटी के बुने हुए रेजा स्टोल के पीएम मोदी भी कायल

रोहतक, [ओपी वशिष्ठ]। रोहतक की बेटी व फैशन डिजाइनर ललिता चौधरी द्वारा तैयार रेजा स्‍टोल के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कायल हैं। पिछले दिनों जापान के प्रधानमंत्री के भारत दौेर पर आए तो इस मौके पर पीएम मोदी ने भारत के प्राचीन रेजा फैब्रिक से तैयार स्टोल यानी अंगवस्त्र धारण किया। यह स्टोल ललिता चौधरी ने तैयार किया था। ऐसा कर प्रधानमंत्री ने साफ कर दिया स्वदेशी अपनाओ अभियान को वह खुद पर भी लागू कर रहे हैं।

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प्रधानमंत्री मंत्री नरेंद्र मोदी विशेष कार्यक्रम में करते हैं रेजा फैब्रिक के स्टोल इस्तेमाल

रेजा हथकरघा कला का ही प्राचीन फैब्रिक है, जो 150 वर्ष पहले भारत में इस्तेमाल होता था, लेकिन यह कला धीरे-धीरे लुप्त होने लगी। बता दें कि ललिता चौधरी द्वारा रेजा से तैयार किए गए परिधान न्यूयार्क फैशन वीक में भी अपना जलवा बिखेर चुके हैं। दक्षिण अफ्रीका, श्रीलंका, नेपाल, आबू धाबी में भी रेजा फैब्रिक की अच्छी खासी मांग शुरू हो गई है।

रोहतक फैशन डिजाइनर ललिता चौधरी।

ललिता ने बताया कि रेजा फैब्रिक न केवल अन्य फैब्रिक से बेहतर है, बल्कि यह एक औषधि की तरह काम करता है। पिछले दिनों फरीदाबाद में आर्ट एंड क्राफ्ट मेले में रेजा की प्रदर्शनी लगाई थी। इस प्रदर्शनी में केंद्रीय और राज्य सरकार के मंत्रियों ने रेजा से तैयार परिधान की काफी प्रशंसा की थी। एक केंद्रीय मंत्री की पत्नी ने उनके रेजा फैब्रिक से 25 स्टोल तैयार कराए थे। मगर उन्होंने पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को विदेशों के राष्ट्राध्यक्षों के साथ उनके तैयार किए स्टोल धारण किए देखा तो खुशी का ठिकाना नहीं रहा।

सिंधु घाटी सभ्यता में भी थे रेजा के निशान

ललिता चौधरी की मानें तो सिंधु घाटी सभ्यता में इन वस्त्रों के निशान मिले थे। यह कला पिछले 15 दशकों से प्रयोग में नहीं थी। इसे रिसाइकिल कर प्रयोग किया गया। इसके लिए उन्होंने पिछले तीन वर्षों में 20 लाख रुपये खर्च किए हैं। उन्होंने गुजरात से पतला धागा कटवाया। अब यह मोटे एवं पतले दोनों तरह के वस्त्र को पाश्चात्य एवं भारतीय वस्त्रों के रूप में तैयार कर रही हैं, ताकि विदेश में अपनी छाप छोड़ सकें।

रेजा का इतिहास

ललिता का दावा है कि ऋग्वेद से लेकर गरीब दास की चौपाइयों में रेजा का वर्णन मिलता है। रेजा फैब्रिक करीब 150 साल पहले ही अपना अस्तित्व खो चुका था, लेकिन राजस्थान, पंजाब और हरियाणा के कुछ शहरों में आज भी रेजा के बारे में जानकारी मिलती है। यह कच्चे कॉटन का बना पहला कपड़ा था, जो रेजा नाम से जाना जाता है।

रेजा फैब्रिक को पारंपरिक फैब्रिक के रूप में ड्योटी या चौसी नाम से भी जाना जाता था। रेजा फैब्रिक बनाना बहुत सरल है। सबसे पहले कच्चा कपास लेते हैं। चरखे की मदद से धागा बनाया जाता है, जो हैंडलूम में इस्तेमाल कर फैब्रिक बनाया जाता है। इस फेब्रिक की कोई प्रोसेसिंग नहीं की जाती है। यह ईको-फ्रेंडली भी है।

यह है खासियत

- जीरो कार्बन वाला कपड़ा।

- गर्मी में ठंडा और सर्दी में गर्म रहने वाला फैब्रिक।

- एंटी बैक्टीरियल और स्किन-फ्रेंडली।

- अल्ट्रावॉयलेट किरणों से बचाता है।

- पूरी तरह हैंडमेड, फैलाव बेहतर।

- किसी भी इस्तेमाल में उपयोगी।


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