स्किन कैंसर से पीड़ित मरीजों को मिलेगी राहत, रोहतक PGIMS में विकसित की गई सर्जरी की नई तकनीक
रोहतक के पीजीआइएमएस के अस्थि रोग विभाग के सह आचार्य डॉ. उमेश यादव ने त्वचा के कैंसर से ग्रसित रोगियों के इलाज में एक नई तकनीक विकसित की है। इस तकनीक से अब रोगी का ऑपरेशन के दौरान हाथ काटने की नौबत नहीं आएगी। यह तकनीक न केवल रोगी का हाथ कटने से बचाती है बल्कि इसमें आने वाला खर्च भी बेहद कम है।

विनोद जोशी, रोहतक। कैंसर के कारण हर वर्ष देश में लाखों लोगों की जान चली जाती है। कैंसर होने पर इसका इलाज कराने में बेहिसाब खर्च होता है। इसके साथ ही इलाज के दौरान जो कष्ट झेलना पड़ता है वह अलग।
विज्ञानी तकनीक और शोध के सहारे कैंसर के इलाज को लेकर नित नई सफलता भी पा रहे हैं। जिससे इसका इलाज अब पहले के मुकाबले ज्यादा सुलभ हुआ है, लेकिन कई तरह के कैंसर अभी भी ऐसे हैं। जिनके इलाज के लिए होने वाली शल्य क्रिया में रोगी के अंग का विच्छेदन तक करना पड़ जाता है, लेकिन अब विशेष तौर से त्वचा के कैंसर से ग्रस्त रोगियों को अंग विच्छेदन की पीड़ा से नहीं गुरजना पड़ेगा।

फोटो कैप्शन: रोहतक के पीजीआइएमएस में मरीज के सफल ऑपरेशन के बाद डॉक्टरों की टीम। सौ. डॉक्टर
रोहतक स्थित पं. भगवत दयाल शर्मा पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस (पीजीआइएमएस) के अस्थि रोग विभाग के सह आचार्य डॉ. उमेश यादव ने त्वचा के कैंसर से ग्रसित रोगियों के इलाज में लिए चार साल की मेहनत के बाद ऐसी तकनीक विकसित की है, जिसके कारण अब रोगी का ऑपरेशन के दौरान हाथ काटने की नौबत नहीं आएगी।
खास बात यह है कि अभी तक उन्होंने जितने भी ऑपरेशन किए हैं उनमें से किसी भी मरीज में दोबारा कैंसर नहीं हुआ है। कैंसर रोगियों के ऑपरेशन की यह तकनीक न सिर्फ रोगी का हाथ कटने से बचाती है बल्कि इसमें आने वाला खर्च भी बेहद कम है।
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फोटो कैप्शन: ऑस्ट्रेलिया के ऑस्ट्रेलिया के ब्रिसबेन में आयोजित सेमिनार में संबोधित करते हुए डॉ. उमेश यादव। सौ. स्वयं
सॉफ्ट टिश्यू सारकोमा तकनीक की विकसित
डॉ. उमेश यादव बताते हैं कि संस्थान में हर महीने त्वचा के कैंसर से ग्रसित दो से तीन रोगी आते हैं। इसके इलाज के लिए अभी सर्जरी की जरूरत पड़ती है। रोगी को किस स्टेज का कैंसर है बायोप्सी से यह निश्चित करने के बाद रोगी के जिस हाथ में गांठ होती है उसे सर्जरी करके निकाला जाता है और फिर उस जगह पर प्लास्टिक सर्जरी की जाती है। जिसमें पेट या जांघ से त्वचा का एक हिस्सा लेकर उसे प्रत्यारोपित किया जाता है।
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यह सॉफ्ट टिश्यू सारकोमा तकनीक के जरिये किया जाता है। जिससे अब कैंसर रोगियों को नई उम्मीद बंधी है। क्योंकि अभी तक जो सर्जरी की जाती है। उसमें कैंसर फैलने से रोकने के लिए रोगी का हाथ काटना पड़ जाता था। अभी तक 12 कैंसर रोगियों की सर्जरी की गई।
सर्जरी के बाद लगातार इन रोगियों का फॉलोअप किया गया। कीमोथेरेपी के बाद सभी पूरी तरह से ठीक हो गए। किसी भी मरीज में अभी तक कैंसर सेल दोबारा नहीं आए हैं।
बता दें कि सॉफ्ट टिश्यू सारकोमा एक विशिष्ट प्रकार का कैंसर है जोकि जानलेवा होता है। सभी व्यस्कों में ट्यूमर से होने वाले कैंसर में यह एक प्रतिशत लोगों को होता है। जबकि बच्चों में ट्यूमर के कारण होने वाले कैंसर में यह 15 प्रतिशत तक होता है।
इनमें से लगभग एक चौथाई मामले हाथ या पैर में होते हैं। इस शोध की सफलता में प्लास्टिक सर्जन डॉ. अभिषेक शर्मा का विशेष योगदान रहा है।
नए डॉक्टर्स को कर रहे प्रशिक्षित
डॉ. उमेश के अनुसार त्वचा के कैंसर से ग्रसित रोगियों को सर्जरी के दौरान कैंसर फैलने से रोकने के लिए अंग विच्छेदन से बचाने के लिए विकसित इस तकनीक को हाल में ब्रिसबेन आस्ट्रेलिया में आयोजित व्याख्यान में भी साझा किया गया।
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पीजीआइएमएस में भी विभाग के रेजीडेंट डॉक्टर्स को इस तकनीक से सर्जरी करने के लिए प्रशिक्षित किया जा रहा है। जिससे रोगियों के हित में सर्जरी की यह तकनीक दूसरे संस्थानों में भी पहुंच सके।
प्रतिष्ठित अंतर्राष्ट्रीय मेडिकल जर्नल में भी इस तकनीक को विकसित करने के लिए हुए शोध को प्रकाशित करने के लिए भेजा गया है।
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