मनुष्य का श्रेष्ठ गुण है भलाई करना
टूटते मानव मूल्यों के इस युग में रिश्ते नातों के साथ मानवता का रिश्ता भी धीरे-धीरे टूटता जा रहा है। हर कोई अपने ही जीवन में मस्त नजर आ रहा है।
टूटते मानव मूल्यों के इस युग में रिश्ते नातों के साथ मानवता का रिश्ता भी धीरे-धीरे टूटता जा रहा है। हर कोई अपने ही जीवन में मस्त नजर आ रहा है। लेकिन अंदर से टूटा हुआ भी देखा जा सकता है। आज हर व्यक्ति भौतिकवाद की भागदौड़ में लगा हुआ है। ऐसे समय में हमारा कर्तव्य बनता है कि जब भी समय मिले तो हमें अपनी सामर्थ्य के अनुसार दूसरों का भला करना चाहिए। क्योंकि भलाई करना मनुष्य का श्रेष्ठ गुण है। प्रकृति मानव को करने का उपदेश देती है और हमें बताती है कि भलाई से बढ़कर कोई दूसरी ताकत नहीं होती है।
कहते हैं इंसान ने मानव का चोला भी दूसरों की भलाई करने के लिए ही धारण किया है। यह गुण ही मनुष्यता का पाठ पढ़ाता है। स्वार्थ मनुष्य को हमेशा हैवानियत की ओर ले जाता है। मानव जीवन का लक्ष्य भी हमेशा से भलाई करना या परोपकार ही माना गया है। दूसरों की भलाई करने से परमार्थ मिलता है। कहते हैं कि एक बार महर्षि दधीचि ने इंद्र की प्रार्थना से देवताओं की रक्षा के लिए अपनी अस्थियां दान कर दी थी। इसी कल्याण की भावना से किया गया कार्य पुण्य बन जाता है। तभी हम राष्ट्र अर्थात देश और विश्व-बंधुत्व की बात कर सकते हैं। आज जिस गति से दुनिया के सामने भारत का मानचित्र उभरकर आ रहा है। वह हमारे लिए गर्व की बात है। देश के प्रधानमंत्री अपने को प्रधान सेवक बताकर बात करते हैं। जो हमारी सबसे बड़ी ताकत है। भलाई करने का कोई भी अवसर छोड़ना नहीं चाहिए।
- विनोद कुमार, प्रधानाचार्य, शिक्षा भारती विद्यालय, बहुअकबरपुर, रोहतक
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