Updated: Sun, 07 Sep 2025 07:05 PM (IST)
रोहतक में एमडीयू और एम्स के शोध ने एंटीबायोटिक दवाओं के अंधाधुंध इस्तेमाल के खतरों को उजागर किया है। शोध में पाया गया कि एंटीबायोटिक दवाओं का असर बैक्टीरिया पर कम हो रहा है जिससे गंभीर बीमारियां हो सकती हैं। एंटीबायोटिक प्रतिरोधक क्षमता बढ़ने का कारण जीवनशैली और खानपान में बदलाव है। इसलिए दवाओं का इस्तेमाल सावधानी से करें।
रत्न पंवार, रोहतक। क्या कभी आपने बीमार होते ही बिना डॉक्टर की सलाह के एंटीबायोटिक खा ली है? या फिर थोड़ी राहत मिलते ही दवा का कोर्स अधूरा छोड़ दिया है? अगर ऐसा किया है तो सावधान हो जाइए, क्योंकि आपकी यही लापरवाही धीरे-धीरे आंतों से लेकर कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों की जड़ बन सकती है।
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महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय (एमडीयू) रोहतक और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) नई दिल्ली की संयुक्त रिसर्च ने पहली बार यह स्पष्ट किया है कि एंटीबायोटिक का अंधाधुंध इस्तेमाल शरीर को किस हद तक नुकसान पहुंचा सकता है।
इस शोध का नेतृत्व एमडीयू की एंजाइमोलाजी और गट माइक्रोबायोलाजी लैब के प्रमुख प्रोफेसर डा.कृष्णकांत शर्मा ने किया। उनके साथ एम्स के गेस्ट्रोलाजी विभाग के डीन डा.विनीत आहुजा और दो शोधार्थी आशा यादव व प्रतीक भी जुड़े रहे। शोध को पूरा करने में पांच साल का समय लगा और इसके लिए आइसीएमआर की ओर से 65 लाख रुपये की फंडिंग दी गई। शोध की प्रक्रिया बेहद गहन रही।
कोलन कैंसर और अल्सरवेटिव कोलाइटिस से पीड़ित मरीजों के स्टूल सैंपल लिए गए और उनका डीएनए अलग कर जीन स्टडी की गई। इसमें 100 लोग शामिल किए, जिनमें 25 गांव और 25 शहर से थे। इसके साथ 50 स्वस्थ लोगों के डीएनए सैंपल भी लिए गए। शोध के नतीजे चौंकाने वाले रहे।
नियमों के अनुसार एंटीबायोटिक लेने के बाद किसी भी पैथोजन यानि बीमारी फैलाने वाले बैक्टीरिया का शरीर में बचना संभव नहीं होना चाहिए, लेकिन शोध ने यह साबित किया कि गांव के मरीजों में 40 से 45 फीसदी और शहर के मरीजों में 43 फीसदी बैक्टीरिया पर दवाओं का कोई असर नहीं हुआ।
हैरानी की बात यह भी रही कि स्वस्थ लोगों के शरीर में भी 33 फीसदी बैक्टीरिया ऐसे मिले जिन पर एंटीबायोटिक बेअसर रही। यह इस बात का संकेत है कि अब दवाओं के प्रति बैक्टीरिया की प्रतिरोधक क्षमता तेजी से बढ़ रही है और हमारी जीवनशैली तथा खानपान में बदलाव इसका बड़ा कारण बन चुके हैं।
शोध ने यह मिथक भी तोड़ दिया कि गांव और शहर के लोगों की तासीर अलग होती है और गांव के लोग ज्यादा मजबूत माने जाते हैं। गंदे बैक्टिरिया ने बिगाड़ा आंत-अंगों का तालमेल रिसर्च के दूसरे चरण में सोलह सैंपल लेकर बैक्टीरिया और इंसानी प्रोटीन की तुलना की गई। इसमें पाया गया कि मरीजों के सैंपल में 2072 बैक्टीरियल प्रोटीन और 243 इंसानी प्रोटीन मौजूद थे।
इनमें बैक्टीरिया को पनपाने वाले प्रोटीन ज्यादा और हार्ट, किडनी, ब्रेन व लीवर जैसे अंगों को सुरक्षित रखने वाले प्रोटीन कम पाए गए। इसका सीधा मतलब है कि पैथोजन यानी हानिकारक बैक्टीरिया शरीर के अंगों के बीच नेटवर्किंग को बिगाड़ रहे हैं और यही असंतुलन आगे गंभीर बीमारियों का कारण बन रहा है। कोलाइटिस और कोलन कैंसर से पीड़ित मरीजों में स्थिति सबसे ज्यादा गंभीर पाई गई।
इन मरीजों को अक्सर डायरिया और कब्ज की समस्या रहती है और इलाज में बार-बार एंटीबायोटिक दवा के सेवन से आंतों में घाव और छेद तक बनने की संभावना बढ़ जाती है। शोध से यह भी पता चला कि ऐसे मरीजों में कैंसर को बढ़ावा देने वाले प्रोटीन सामान्य से कहीं अधिक पाए गए, जो आगे चलकर कोलाइटिस को कैंसर में बदल सकते हैं।
क्यों बढ़ रहा है खतरा?
1. दवाओं का आसान पहुंचना
मेडिकल स्टोर और आनलाइन प्लेटफार्म पर दवाएं आसानी से मिल जाती हैं।
2. स्टेरायड का बढ़ता इस्तेमाल
कई लोग ताकत या राहत के लिए बिना सोचे-समझे स्टेरायड दवा ले रहे हैं।
3. अधूरी जानकारी
इंटरनेट मीडिया से अधूरी जानकारी लेकर दवा शुरू कर देना।
4. कोर्स अधूरा छोड़ना
डॉक्टर की सलाह के बावजूद दवा बीच में ही बंद कर देना।
रिसर्च की अहमियत
- इस अध्ययन ने पहली बार यह साबित किया है कि एंटीबायोटिक का असर केवल बैक्टीरिया तक सीमित नहीं, बल्कि पूरे शरीर पर है।
- - एंटीबायोटिक रजिस्टेंस जीन अब बीमारी की गंभीरता को समझने के लिए मार्कर बन सकते हैं।
- - इससे नई डायग्नोस्टिक तकनीकें और थैरेपी विकसित होंगी।
- - भविष्य में फिकल माइक्रोबायोटा ट्रांसप्लांटेशन (एफएमटी) जैसे आधुनिक उपचार का रास्ता खुलेगा।
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