भूकंप के खतरे की जद में हरियाणा, NCR जिलों पर सबसे ज्यादा असर; विशेषज्ञों ने दी चेतावनी
हरियाणा में भूकंप का खतरा बढ़ रहा है, खासकर एनसीआर जिलों में। रोहतक, गुरुग्राम और फरीदाबाद जैसे जिले सबसे अधिक संवेदनशील हैं। हरियाणा भूकंपीय क्षेत्र- ...और पढ़ें

हरियाणा में मध्यम तीव्रता के झटकों से बढ़ी चिंता, असुरक्षित निर्माण बढ़ा रहा खतरा (फोटो: जागरण)
रत्न पंवार, रोहतक। हरियाणा भूकंपीय दृष्टि से भले ही देश के सबसे संवेदनशील राज्यों में शामिल न हो, लेकिन वैज्ञानिक आंकड़े और हाल के वर्षों में आए झटके यह संकेत दे रहे हैं कि राज्य को भूकंप के खतरे को हल्के में लेना भारी पड़ सकता है।
भूकंप संबंधी नवीनतम अध्ययनों के अनुसार पूरा हरियाणा भूकंपीय जोन-3 में आता है, जिसे मध्यम जोखिम वाला क्षेत्र माना गया है।
इस श्रेणी में आने वाले क्षेत्रों में 5 से 6.5 तीव्रता तक के भूकंप आने की संभावना बनी रहती है। हरियाणा भले ही उच्च भूकंपीय जोन में न हो, लेकिन बदलते भूगर्भीय हालात और तेजी से बढ़ते शहरीकरण के चलते भूकंप का खतरा लगातार बढ़ रहा है।
पिछले कुछ वर्षों में हरियाणा के विभिन्न जिलों खासकर रोहतक, गुरुग्राम, फरीदाबाद, सोनीपत, यमुनानगर और झज्जर में समय-समय पर महसूस किए गए भूकंपीय झटकों ने आम लोगों के साथ-साथ प्रशासन की चिंता बढ़ा दी है।
ये सभी जिले में जोन फैक्टर 0.16 में आते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि ये झटके बड़े भूकंप की चेतावनी नहीं कहे जा सकते, लेकिन यह जरूर दर्शाते हैं कि धरती के भीतर हलचल लगातार बनी हुई है।
इन क्षेत्रों में सक्रिय फॉल्ट लाइन:
- सोहना फाल्ट
- दिल्ली-हरिद्वार रेखीय संरचना
- अरावली फ्रैक्चर जोन
- हिमालय फ्रंटल थ्रस्ट
एनसीआर जिले सबसे अधिक जोखिम में
विशेषज्ञों के मुताबिक हरियाणा के एनसीआर से जुड़े जिले भूकंप के लिहाज से सबसे ज्यादा संवेदनशील हैं।
- रोहतक: रोहतक फाल्ट जोन में आता है। तेजी से शहरीकरण और नई कालोनियों के विस्तार के चलते यहां भूकंप सुरक्षा एक गंभीर मुद्दा बनता जा रहा है।
- गुरुग्राम: यहां ऊंची-ऊंची बहुमंजिला इमारतें, मेट्रो लाइन और घनी आबादी मौजूद है। यदि भूकंपरोधी मानकों का पालन नहीं किया गया तो मध्यम तीव्रता का भूकंप भी बड़े नुकसान का कारण बन सकता है।
- फरीदाबाद: औद्योगिक क्षेत्र और पुराने आवासीय इलाकों की अधिकता इसे जोखिमपूर्ण बनाती है।
- सोनीपत व झज्जर: दिल्ली फाल्ट लाइनों के निकट होने के कारण इन जिलों पर भी भूकंपीय गतिविधियों का प्रभाव पड़ता है।
- यमुनानगर: यह हिमालयी फ्रंटल थ्रस्ट के निकट है। उत्तर हरियाणा का यह जिला अन्य क्षेत्रों की तुलना में अपेक्षाकृत अधिक संवेदनशील माना जाता है क्योंकि यहां की भौगोलिक स्थिति हिमालय की सक्रियता से प्रभावित होती है।
पश्चिमी हरियाणा अपेक्षाकृत सुरक्षित, फिर भी सतर्कता जरूरी
सिरसा, फतेहाबाद, हिसार, भिवानी और चरखी दादरी जैसे पश्चिमी जिलों में भूकंप का खतरा तुलनात्मक रूप से कम माना जाता है।
यहां मिट्टी अपेक्षाकृत कठोर है और सक्रिय फाल्ट लाइनें भी कम हैं। बावजूद इसके, ये जिले भी जोन-3 में आते हैं, इसलिए यहां भी भूकंपरोधी निर्माण मानकों का पालन जरूरी है।
पृश्वी विज्ञान मंत्रालय के राष्ट्रीय भूकंप विज्ञान केंद्र के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ. जेएल गौतम बताते हैं कि आपदा प्रबंधन को लेकर योजनाएं तो काफी हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर कई चुनौतियां बनी हैं।
स्कूलों, अस्पतालों और सरकारी दफ्तरों की संरचनात्मक सुरक्षा का समुचित आडिट नहीं हो पाया है। विशेषज्ञों का कहना है कि हरियाणा एनसीआर में नए और पुराने दोनों प्रकार के निर्माण में भूकंपरोधी मानकों को अनिवार्य किया जाए।जिला स्तर पर त्वरित राहत और बचाव के लिए प्रशिक्षित टीमें और संसाधन उपलब्ध कराए जाएं।
लगातार भूकंप आने का मुख्य कारण धरती की टेक्टोनिक प्लेटों में बना तनाव है। धरती की ऊपरी सतह कई प्लेटों से बनी है, जो निरंतर खिसकती रहती हैं।
इनके टकराने, फिसलने या अलग होने से जमा तनाव जब अचानक निकलता है तो भूकंप आता है। तनाव पूरी तरह खत्म न होने पर एक के बाद एक छोटे झटके महसूस होते हैं।
फॉल्ट लाइनों पर हलचल, बड़े भूकंप के बाद आने वाले आफ्टरशाक्स, हिमालय क्षेत्र की सक्रियता और कम गहराई पर आने वाले भूकंप भी इसके कारण हैं। कई बार धरती संतुलन बनाने के लिए छोटे झटकों से तनाव निकालती है, जिसे वैज्ञानिक स्ट्रेस एडजस्टमेंट प्रोसेस कहते हैं।
भूवैज्ञानिकों के अनुसार हरियाणा की भूकंपीय संवेदनशीलता का मुख्य कारण इसका दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र से जुड़ा होना है। दिल्ली के आसपास कई सक्रिय और अर्ध-सक्रिय फाल्ट लाइनें मौजूद हैं, जिनका प्रभाव हरियाणा के सीमावर्ती जिलों तक पड़ता है।
विशेष रूप से गुरुग्राम, फरीदाबाद, रोहतक और झज्जर जैसे जिले इन फाल्ट लाइनों के अपेक्षाकृत नजदीक हैं। इसके अलावा राज्य के कई हिस्सों में मिट्टी की बनावट भी जोखिम को बढ़ाती है।
यमुना और घग्गर नदी के आसपास के क्षेत्रों में पाई जाने वाली मुलायम और गहरी मिट्टी भूकंप की तरंगों को तेज कर देती है, जिससे झटकों का प्रभाव अधिक महसूस होता है।

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