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    गुरुतेग बहादुर लाखनमाजरा में ठहरे थे 13 दिन, गुरुद्वारा का नामकरण हुआ मंजी साहिब

    By JagranEdited By:
    Updated: Sat, 18 Nov 2017 03:00 AM (IST)

    जागरण संवाददाता, रोहतक : रोहतक से 18 किलोमीटर और जींद से 35 किलोमीटर की दूरी पर

    गुरुतेग बहादुर लाखनमाजरा में ठहरे थे 13 दिन, गुरुद्वारा का नामकरण हुआ मंजी साहिब

    जागरण संवाददाता, रोहतक :

    रोहतक से 18 किलोमीटर और जींद से 35 किलोमीटर की दूरी पर स्थित लाखनमाजरा मंजी साहिब गुरुद्वारा ¨हदू धर्म के लिए पवित्र स्थान है। यहां देश ही नहीं बल्कि विदेशों से भी संगत मत्था टेकने के लिए पहुंचती है। इस तीर्थस्थल पर नौवें पातशाह गुरुतेग बहादुर आनंदपुर साहिब से चलकर दिल्ली जाते समय 13 दिन तक ठहरे थे। गुरुतेग बहादुर असुज सम्वत 1732 यानि 17 सितंबर 1675 ईसवी को 5 सिखों सहित यहां आएं और अपने चरणों की धूली से इस स्थान को पवित्र किया। हालांकि इस पवित्र स्थान गुरुद्वारे को बनाने का श्रेय 1947 में जत्थेदार दिवान ¨सह को जाता है, जो गुड़ व जींस का व्यापार करते थे।

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    यह है लाखनमाजरा गुरुद्वारे का इतिहास

    कश्मीरी पंडितों की फरियाद सुनकर ¨हदू धर्म को बचावने के लिए नौवें पातशाह गुरुतेग बहादुर कुर्बानी देने के लिए पंजाब के आनंदपुर साहिब से दिल्ली के लिए रवाना हुए थे। उनके साथ पांच सिख भी साथ थे। 17 सितंबर 1675 को लाखनमाजरा में 13 दिन ठहरे और संगतों को उपदेश दिया कि तुम अपने ¨हदू धर्म पर डटे रहो। डरकर या लालच में आकर अपना धर्म न छोड़ देना। उन्होंने कहा कि धर्म बदलने से मौत नहीं आती तो नि:संदेह बदलो। न किसी से डरो न किसी को डराओ। इसके बाद बहादुरगढ़ होते हुए आगरा चले गए थे। 1947 में जत्थेदार दिवान ¨सह रोहतक आकर बस ए। वह गुड़ और जींद का व्यापार करते थे। रोहतक से रेलगाड़ी द्वारा लाखनमाजरा आए। शाम होने के कारण सरोवर के किनारो वृक्षों से घिरा हुए स्थान पर चले गए। यहां एक छोटा सा कमरा बना हुआ था, जिसके चार दरवाजे थे। जगह साफ-सुथरी थी, जिसके कारण दिवान ¨सह यहीं पर सो गए। उसे रात को गुरुतेज बहादुर ने दर्शन दिए और इसकी सेवा संभाल करने को कहा।

    दिवान ¨सह ने ही पांच मंजिला इमारत का नक्शा बनवाया

    जत्थेदार दिवान ¨सह ने ही गुरुद्वारा की पांच मंजिला इमारत का नक्शा तैयार कराया। लेकिन तीन जुलाई 1965 को गुरुतेज बहादुरग की गोद में विराजमान हो गए। इसके बाद इस पांच की जगह सात मंजिल इमारत का निर्माण लध्धा ¨सह ने पूरा करवाया। संगतों को प्रेरित करके यहां सेवा करवाई गई, जिसकी बदौलत 24 अप्रैल 1967 को शुरू होकर 1975 में शीशमहल बनाया गया, जो देखने योग्य है।

    होला-मोहल्ला में पहुंचते हैं हजारों की संगत

    लाखनमाजरा मंजी साहिब गुरुद्वारा में अमावस्य औरर पूर्णिमा पर कार्यक्रम किए जाते हैं। यहां संगतों की मनोकामनाएं पूरी होने लगी। रामसर सरोवर में स्थान करके रोग और कष्ट दूर होने लगे। विदेशों से भी संगते यहां आने लगी। अखंड पाठ की लड़ियां चलने लगी। पूर्णमासी पर हजारों की गिनती में लोग आने लगे। मार्च माह में होला मोहल्ला पर्व मनाया जाने लगा। ¨हदूओं की जीत की खुशी पर होला मोहल्ला पर्व मनाया जाता है। पहले यह पर्व रात के समय में मनाया जाता था, लेकिन 1984 में हुए दंगों के कारण यह दिन में मनाया जाने लगा।

    अमृत कुंड का भी खास महत्व

    गुरुद्वारा परिसर में ही अमृत कुंड बनाया गया है। इस अमृत कुंड से ही स्वच्छ जल लोग लेकर जाते हैं, जिससे चरणाव्रत बनाया जाता है। रामसर सरोवर यानि तालाब से इस गुरुद्वारे का छंटा देखने लायक है। मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर इस होला मोहल्ला कार्यक्रम में पहुंचे थे, उन्होंने सरोवर के विस्तार के लिए एक करोड़ रुपये की राशि देने की घोषणा की थी। लेकिन सरोवर का अभी तक विस्तार नहीं हुआ है।

    यह है विशेषता

    - गुरुद्वारा साहिब हॉल में संगमरमर की पालकी साहिब

    - 100 फीट का निशान साहिब

    - अमृत कुंड

    - रामसर सरोवर

    - लंगर हॉल

    - रसोई

    - 15 कमरे ठहरने के लिए

    आस्था का केंद्र है मंजी साहिब गुरुद्वारा

    गुरुद्वारा के मैनेजर जगजीत ¨सह हंस ने बताया कि मंजी साहिब गुरुद्वारा ¨हदू धर्म के लिए आस्था का केंद्र है। यहां अमेरिका, इंग्लैंड, कनाडा, जर्मनी सहित अन्य देशों से संगत यहां दर्शन करने आती है। पंजाब, दिल्ली व हरियाणा के अन्य जिलों से भी काफी लोग आते हैं। इस गुरुद्वारा के साथ लगते मुख्य रोड पर पुल बनवाने की योजना है ताकि दूसरी तरह पड़ी जमीन का भी इस्तेमाल किया जा सके।

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