कठपुतली के माध्यम से जागरूकता फैलाएगा शिक्षा विभाग
जागरण संवाददाता, रोहतक : शिक्षा विभाग जिले के विशेष आवश्यकता वाले बच्चों को स्कूल तक ले जाने के लिए गांव-गांव जाकर अभिभावकों को जागरूक करेगा। इसके लिए जिलाभर में अभिभावक परामर्श शिविर लगाए जाएंगे। इसमें कठपुतली के जरिये लोगों को शिक्षा के महत्व के बारे में बताया जाएगा और उनसे अपील की जाएगी कि वह अगर अपने विशेष आवश्यकता वाले बच्चों को स्कूल भेजते है तो उन्हे दूसरों पर मोहताज नहीं रहना पड़ेगा।
सर्व शिक्षा अभियान की जिला परियोजना संयोजक कुसुमलता ने बताया कि विशेष आवश्यकता वाले बच्चों को समाज की मुख्य धारा में शामिल करने के लिए यह अभियान चलाया गया है। यह अभियान एक जनवरी से खंडस्तर पर शुरू किया जाएगा। इसके लिए राजस्थान से लोक कलाकारों को बुलाया गया है। सर्व शिक्षा अभियान के सहायक परियोजना अधिकारी डॉ. अजय बल्हारा ने बताया कि इसमें रोहतक खंड में चार व पांच जनवरी को, सांपला खंड में सात व आठ जनवरी को, लाखनमाजरा व कलानौर ब्लाक में नौ व दस जनवरी को और महम ब्लाक में 11 व 12 जनवरी को शिविर आयोजित किया जाएगा। उन्होंने अभिभावकों से भी अपने विशेष आवश्यकता वाले बच्चों को स्कूल भेजने की अपील की है।
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- 'यहां भगवान नहीं इंसान के हाथ में है कठपुतली की डोर'
रोहतक : 'कहावत है कि, हम सब भगवान के हाथ की कठपुतली है। लेकिन असल कठपुतलियों की डोर भगवान के नहीं, बल्कि इंसान के हाथ में है। यह बात अलग है कि भगवान की कठपुतलियों का धागा दिखाई नहीं देता। लेकिन हम कठपुतलियां नचाने वालों का धागा परिवार की दो वक्त की रोटी के लिए दूसरों पर मोहताज है।' यह दर्द बयान किया है राजस्थान की लोक कलाकार रामेश्वरी ने।
मात्र पांच साल की उम्र से ही रामेश्वरी ने गायन व कठपुतली कला के क्षेत्र में कदम रख लिया था। अब 50 वर्षीय रामेश्वरी अपने पति रामलाल के साथ सर्व शिक्षा अभियान के तहत आमजन को शिक्षा के प्रति जागरूक करेंगी। राजस्थान के सीकर जिले के रहने वाले यह दंपत्ति पिछले 42 वर्षो से कठपुतली नचाने का काम कर रहे है। इसमें अमर सिंह राठौर की वीरगाथा, घूमर, महाराणा प्रताप, झांसी की रानी, राजस्थानी बहरूप, सलीम से मुमताज व हरियाणवी व राजस्थानी पॉप सहित कई विधाएं शामिल है। रामलाल ने बताया कि राजस्थान में हजारों परिवारों की रोजी-रोटी इसी कला के सहारे जुड़ी है। लेकिन आज भी उन्हे वह सम्मान नहीं मिलता जो उन्हें मिलना चाहिए। उन्होंने बताया कि कुछ साल पहले वे दिल्ली आए तो कला के कुछ कद्रदान मिले और अब सरकार ने भी 10 दिन का प्रशिक्षण देकर शिक्षण संस्थानों में कार्य करने का अवसर दिया है। दंपत्ति ने बताया कि कठपुतली कला के माध्यम से ही आज उनके पास दिल्ली में अपना घर है व पांच बच्चों की शादी भी धूमधाम से की है। कठपुतली की कला अकेले राजस्थान की ही नहीं है, बल्कि यह राष्ट्रीयस्तर पर एक पहचान रखती है। इस कला को संस्कृति से मिलाकर एक नया आयाम दिया जाना चाहिए।
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