नेति क्रिया से करें मनुष्य रूपी यंत्र की सफाई : डॉ. शर्मा
रोहतक, जागरण संवाददाता :
मनुष्य रूपी इस यंत्र को क्रियाशील बनाए रखने के लिए इसकी सफाई व शोधन की आवश्यकता है। शरीर रूपी यंत्र का बाहरी शोधन स्नान के द्वारा हो जाता है परतु अंत: शोधन के लिए हमें अनेक प्रकार की यौगिक क्रियाएं करनी पड़ती हैं। यह जानकारी गृहस्थयोगी डॉ. देवप्रकाश शर्मा ने गाव मोखरापाना खेड़ी स्थित कायाकल्प कार्यालय में ग्रामीणों को नेति क्रिया के महत्व को समझाते हुए दी।
डॉ. शर्मा ने कहा कि नासिका हमारे शरीर का मुख्य प्राण मार्ग है इसलिए हमें शुद्ध प्राणवायु लेने के लिए इस नासिका रुपी मार्ग का शोधन करना बहुत ही जरुरी है। इसी मार्ग के कमजोर होने से असहिष्णुता (एलर्जी) पूरे शरीर में पैदा हो जाती है। इस मार्ग के शोधन के लिए नेति क्रिया बहुत ही आवश्यक है। इस क्रिया के करने से नजला-जुकाम, कफ, सायनोसाइटिस, अनिद्रा, चेहरे के पक्षाघात, मस्तिष्क में जाने वाले रक्त की शुद्धि आदि लाभ प्राप्त होते है। इस शोधन क्रिया के बाद नासिका मार्ग पुरी तरह से शुद्ध हो जाता है तथा प्राणवायु पूरी मात्रा में शरीर में पहुचने लगती है। उन्होंने बताया कि नेति क्रिया कई प्रकार की होती है जैसे रबर नेति या सूत्र नेति, जल नेति, दुग्ध नेति, घृत नेति, तेल नेति आदि। लेकिन नेति क्रिया मुख्यत दो प्रकार की होती है सूत्र नेति व जल नेति। उन्होंने बताया कि शुरुआत में रबड़ की नली एक बहुत ही सुलभ व आसानी से प्राप्त होने वाली नेति है। इसका एक सिरा गोल बराबर में छिद्र होकर आगे से बंद होता है तथा दूसरा सिरा खुला होता है। इसको भी गर्म पानी में धोकर सरसों का तेल लगाकर आसानी से धीरे-धीरे नासिका के अंदर प्रविष्ठ करे और उसी प्रकार तर्जनी व मध्यमा के द्वारा मुख के अंदर से बाहर निकाल लें और दूध बिलोने जैसी क्रिया करे।
नेति क्रिया के दौरान बरते सावधानियां
इस क्रिया को धीरे-धीरे करे क्योंकि नासिका के अंदर गुलाब की पंखुड़ी जैसा कोमल मार्ग है। पहली बार सूत्र नेति करने से पहले और सूत्रनेति करने के बाद में दोनों नासिका छिद्रों में बादाम रोगन, सरसों का तेल या गऊ घृत अवश्य नासिका में डालना चाहिए।
नेति क्रिया के लाभ
नेति कपाल की शोधक, कमल जैसे आंखों की ज्योति को बढ़ाने वाली एवं कंठ के ऊपर के समस्त रोगों को दूर करने वाली है। साधारण रुप से यह क्रिया जुकाम, खांसी, नजला एवं अन्य कफविकारों को दूर करती है। नेति क्रिया का उद्देश्य केवल नासिका मार्ग की शुद्धि ही नहीं बल्कि इसमें स्थित श्लेषमा झिल्ली को बाह्य वातावरण में होने वाले बदलाव धूल, धुआं, गर्मी, ठंड तथा कीटाणु आदि को सहन करने में पूरी तरह सक्षम बनाना है। यह क्रिया नाक व कंठ के अन्दर की गंदगी को बाहर निकाल कर नाक की नली को साफ करती है। इस क्रिया के नियमित करने से कंधे से ऊपर के सभी रोग समाप्त हो जाते है।
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