प्रवास कर भारत में पहुंचता है राजहंस
ग्रेलैज गूज को ¨हदी में राजहंस भी कहते है। भारत में यह एक प्रवासी पक्षी है, जो सर्दियों के मौसम में प्रवास करके भारत के उत्तरी हिस्से में पहुंचते है। यूरोप व मध्य एशिया से जब ये पक्षी अपना प्रवास आरंभ करते है, तो ये एक ही दिशा में एक ही रूट पर उड़ान भरते है। रास्ते में ये अपने निश्चित पड़ावों पर रूकते हुए हर वर्ष की भांति निश्चित जगहों पर ही पहुंचते है। अव्यस्क पक्षी अपने पहले प्रवास के दौरान अपने माता-पिता से दिशा व रूट तथा रूकने वाले स्थानों की जानकारी लेते है। इसके बाद यह प्रवास प्रक्रिया पीढ़ी दर पीढ़ी आने वाले पक्षियों में चलती रहती है। दुनिया के कई देशों में इसे पवित्र श्रेणी में रखा जाता है तथा इन्हें देवताओं के प्रतीक के रूप में मानते है। इसे प्यार की देवी के रूप में देखा जाता है।
प¨रदो की दुनिया: ग्रेलैग गूज
परिवार: एनाटीडी
जाति: एन्शेर
प्रजाति: एन्शेर
लेख संकलन: सुंदर सांभरिया, ईडेन गार्डन रेवाड़ी। ग्रेलैज गूज को ¨हदी में राजहंस भी कहते है। भारत में यह एक प्रवासी पक्षी है, जो सर्दियों के मौसम में प्रवास करके भारत के उत्तरी हिस्से में पहुंचते हैं। यूरोप व मध्य एशिया से जब ये पक्षी अपना प्रवास आरंभ करते हैं, तो ये एक ही दिशा में एक ही रूट पर उड़ान भरते है। रास्ते में ये अपने निश्चित पड़ावों पर रुकते हुए हर वर्ष की भांति निश्चित जगहों पर ही पहुंचते है। अव्यस्क पक्षी अपने पहले प्रवास के दौरान अपने माता-पिता से दिशा व रूट तथा रुकने वाले स्थानों की जानकारी लेते हैं। इसके बाद यह प्रवास प्रक्रिया पीढ़ी दर पीढ़ी आने वाले पक्षियों में चलती रहती है। दुनिया के कई देशों में इसे पवित्र श्रेणी में रखा जाता है तथा इन्हें देवताओं के प्रतीक के रूप में मानते है। इसे प्यार की देवी के रूप में देखा जाता है। बड़े समूह में रहता है यह पक्षी
यह एक बड़ी बतख होती है, इसका आकार 74 से 91 सेंटीमीटर तक होता है। इसमें नर व मादा एक जैसे दिखते हैं। नर पक्षी आकार में मादा से बड़े होते है। इसके शरीर का रंग स्लेटी-भूरा होता है। सिर का रंग गहरा व छाती हल्की पीली-सफेद होती है। इसके पेट पर काले रंग के छोटे स्पॉट व इसके शरीर के ऊपरी हिस्से पर गर्दन तक सफेद रंग की धारियां होती हैं। इन पक्षियों का मुख्य भेाजन घास, फसलें व अन्य वनस्पतियों की जड़े हैं। ये मुख्यत घास खाते हैं। चरगाहों में इन्हें पशुओं के आस-पास घास खाते हुए देखा जा सकता है। ये एक बड़ा समूह बना कर रहते हैं, जब ये एक बड़े समूह में भोजन खा रहे होते हैं तो समूह की एक बतख चारों ओर ध्यान रखती है। उसे जब भी कोई खतरा महसूस होता है या शिकारी दिखता है तो यह शोर मचा कर अपने समूह को इससे अवगत कराती है। ये ज्यादातर समय रात को भोजन करते हैं। सुबह व शाम के समय ये ज्यादा सक्रिय रहते है। अंडों से निकलते ही छोड़ देते है घोंसला
जब इनके प्रजनन का समय होता है तो ये पक्षी वापस अपने स्थलों पर पहुंच जाते हैं। इनके प्रजनन का समय अप्रैल से मई तक होता है। इस दौरान व्यस्क पक्षी एक जोड़ा बनाते हैं। एक बार जोड़ा बनने के बाद ये हमेशा साथ रहते हैं। प्रजनन के समय में ये पक्षी यूरोप व मध्य एशिया के अलग-अलग हिस्सों में पहुंच जाते हैं। ये अपने घोंसले दलदली क्षेत्रों व झीलों आदि के किनारे जहां बड़े आकार की वनस्पति खासतौर पर रीडस आदि में छुप कर बनाते हैं। इस दौरान प्रत्येक जोड़ा अपने समूह को छोड़ कर अलग-अलग जगहों पर घोंसला बनाने के लिए निकल पड़ता है। गहरे व बड़े रीडस में रहने का मुख्य कारण घोंसले की सुरक्षा है। जब ये घोंसला बनाते हैं तो अन्य बतखों व पक्षियों को दूर भगा देते हैं। इस दौरान इनका व्यवहार आक्रमक हो जाता है। ये अपना घोंसला जमीन पर घास, झाड़ियों व अन्य वनस्पतियों से बनाते है। मादा तीन से पांच अंडे देती है। इनके चूजे अंडों से निकलते ही घोंसला छोड़ देते हैं। चूजे निकलने के बाद ये पुन: इकट्ठे होने लगते हैं। जब भी कोई शिकारी जीव इनके आसपास आता है तो नर पक्षी शोर मचा कर दूर भगा देते हैं।