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    तलवार से तेज थी बाबू बालमुकुंद गुप्त की कलम की धार

    By JagranEdited By:
    Updated: Fri, 13 Nov 2020 08:28 PM (IST)

    खींचो न कमानों को न तलवार निकालो जब तोप मुकाबिल हो तो अखबार

    तलवार से तेज थी बाबू बालमुकुंद गुप्त की कलम की धार

    जागरण संवाददाता, रेवाड़ी : खींचो न कमानों को न तलवार निकालो, जब तोप मुकाबिल हो तो अखबार निकालो। साहित्य व पत्रकारिता जगत में अपनी अमिट छाप छोड़ने वाले बाबू बालमुकुंद गुप्त ने अंग्रेजी सल्तनत को अपनी कलम के माध्यम से कुछ इस तरह से ही चुनौती दी थी। कहा जाता है कि उनकी कलम की धार तलवार से भी तेज थी। देश का प्रबुद्ध वर्ग इस बात को जानता है कि गुड़ियानी के लाल ने कलम से किस तरह कमाल दिखाया था। उन्होंने साहित्य व पत्रकारिता में अपनी कलम का जलवा उस दौर में दिखाया था, जब अंग्रेजों की तूती बोलती थी। बाबू बालमुकुंद सही मायने में राष्ट्रीयता के अग्रदूत थे। उन्होंने हिदुस्तान के साथ-साथ हिदी का भी गौरव बढ़ाया था। बाबूजी के नाम से सुविख्यात बालमुकुंद गुप्त को हिदी पत्रकारिता के मसीहा, गद्य के जनक, यशस्वी साहित्यकार एवं मूर्धन्य पत्रकार जैसे नामों से भी जाना जाता है। लेखन से जगाई स्वतंत्रता की अलख जिले के गांव गुड़ियानी में लाला पूरणमल के घर में 14 नवंबर 1865 को जन्मे बालमुकुंद गुप्त ने अपना पूरा जीवन अध्ययन, लेखन एवं संपादन से स्वतंत्रता की अलख जगाई। उन्होंने सियालकोट से होडल तक फैले महापंजाब में पांचवीं कक्षा में राज्य में अव्वल रहते हुए बचपन में ही अपनी कुशाग्र बुद्धि का परिचय दे दिया था। आठवीं कक्षा से ही बालकवि के रूप में पहचाने जाने लगे थे। उनके उर्दू पत्र मथुरा से प्रकाशित होने वाले 'मथुरा' में प्रकाशित होने लगे।

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    झज्जर के पं. दीनदयाल शर्मा मथुरा पत्र के संपादक थे। उन्होंने शैदा उपनाम से लिखने वाले बालक बालमुकुंद की प्रतिभा को पहचान दी तथा न्यायोचित मंच प्रदान करते हुए 1886 में अखबारे चुनार का संपादन इन्हे सौंपा। अपनी लेखन क्षमता के चलते वे वृंदावन, अवधपंच, कोहेनूर, विक्टोरिया गजट, भारत प्रताप, हिन्दुस्तान, उर्दू-ए-मोअल्ला, जमाना, हिदी बंगवासी में लेखन की विभिन्न विधाओं में नए प्रयोगों के माध्यम से नए आयाम स्थापित करते रहे। आजीवन रहे भारत मित्र के संपादक वर्ष 1889 में वे मदनमोहन मालवीय के संपर्क में आए। वे गुप्तजी को कालाकांकर ले गए, जहां उन्होंने हिदोस्थान से जुड़कर हिदी पत्रकारिता को नई ऊंचाइयां प्रदान की। आखिर में भारतमित्र (कोलकाता) के आजीवन संपादक रहे, जिसमें शिवशंभू के चिठ्ठे नामक स्तंभ से अंग्रेजों की दमन एवं शोषण के खिलाफ उन्होंने जमकर अपनी कलम चलाई। 16 जनवरी 1899 से आखिरी सांस तक उन्होंने भारतमित्र को विशिष्ट पहचान दिलवायी तथा 18 सितम्बर 1907 को अपनी कलम से राष्ट्रभक्ति की अलख जगाने वाला यह कलमकार सांसारिक जीवन से विदा हो गया। पिछले कुछ वर्षों से हरियाणा साहित्य अकादमी ने बाबू बालमुकुंद गुप्त के नाम से साहित्य एवं पत्रकारिता क्षेत्र में पुरस्कार प्रारंभ किये हैं। उनकी जन्मस्थली जिला रेवाड़ी के इंदिरा गांधी विश्वविद्यालय में बाबू बालमुकुंद गुप्त पीठ स्थापित की गई।

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