तेज आवाज बढ़ा रहा चिड़चिड़ापन व रक्तचाप
जागरण संवाददाता, रेवाड़ी : आपके वाहनों से की जा रही तेज आवाज न सिर्फ पर्यावरण को नुकस
जागरण संवाददाता, रेवाड़ी : आपके वाहनों से की जा रही तेज आवाज न सिर्फ पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रही है, बल्कि कई तरह की बीमारियों का भी कारण बन रही है। वाहनों के बढ़ते दबाव, जल्द गंतव्य तक पहुंचने की होड़बाजी के बीच हार्न का हद से ज्यादा प्रयोग होने लगा है। तेज शोर शराबे के कारण लोगों में बहरापन के साथ मानसिक तनाव भी बढ़ रहा है। आंख, कान, गला (ईएनटी) रोग विशेषज्ञों के अनुसार यह समस्या केवल बुजुर्गों में नहीं बल्कि हर वर्ग के लोगों में आने लगी है। इस पर गंभीर होने की आवश्यकता हैं। लोगों को ध्वनि प्रदूषण के दुष्परिणाम के प्रति जागरूक करने के उद्देश्य से हर साल 25 अप्रैल को नो हॉर्न डे का आयोजन किया जाता है। इसके तहत लोगों से हॉर्न नहीं बजाने का आह्वान किया जाता है। ब्लड प्रेशर व मानसिक तनाव के शिकार हो रहे लोग:
बहुत से लोगों को यह जानकारी नहीं है कि ध्वनि प्रदूषण या ज्यादा तेज आवाज में लगातार रहने के कारण कई गंभीर बीमारियां पैदा होती हैं। इसमें सुनाई कम देना, कान में घंटी की आवाज आना, चिड़चिड़ापन, अनिद्रा, उच्च रक्तचाप, मानसिक तनाव आदि बीमारियां जन्म लेती हैं।
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90 डीबी से अधिक की आवाज खतरनाक:
साधारण बातचीत का लेवल 60 डेसिबल तक का होता है। कार, बस, दुपहिया वाहन आदि के हॉर्न की आवाज 90 या इससे अधिक डेसिबल होती है, जो हानिकारक होती है। तेज आवाज से कुछ प्रतिशत कोशिकाएं भी हमेशा के लिए नष्ट हो जाती हैं। इससे धीरे धीरे कम सुनना शुरू हो जाता है जो कि बाद में बहरेपन में तब्दील हो जाता है। ज्यादा शोर शराबा सिर्फ कानों के लिए खतरनाक नहीं है बल्कि कई अन्य बीमारियों का भी कारण बन जाता है।
- डॉ. अभिनव यादव, ईएनटी विशेषज्ञ,।
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तेज ध्वनि में संगीत सुनने की आदत, तेज आवाज में वाहनों का हॉर्न बजाना स्वयं के साथ दूसरों के लिए परेशानियां पैदा करता हैं। डीजे की तेज आवाज से कान के पर्दे भी फटने की संभावना रहती है। ऐसे में कम से कम एक दिन हम अपने वाहनों का हॉर्न नहीं बजाएं, तेज ध्वनि से बचने का प्रयास करते हैं तो भी बहुत फायदा होगा।
-डॉ. अशोक रंगा, इएनटी रोग विशेषज्ञ, नागरिक अस्पताल रेवाड़ी।
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