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    लोकल पर वोकल का डंका बजाने को तैयार ठठेरा समाज

    By JagranEdited By:
    Updated: Sat, 23 May 2020 02:47 PM (IST)

    सरकारी मदद मिल जाए तो ठठेरा समाज एक बार फिर से लोकल पर वोकल के नारे का देशभर में डंका बजाने को तैयार है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में स्थानीय स्तर पर निर्मित उत्पादों को आगे बढ़ाने का वादा करते हुए लोकल पर वोकल का नारा दिया है।

    लोकल पर वोकल का डंका बजाने को तैयार ठठेरा समाज

    अमित सैनी, रेवाड़ी

    सरकारी मदद मिल जाए तो ठठेरा समाज एक बार फिर से लोकल पर वोकल के नारे का देशभर में डंका बजाने को तैयार है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में स्थानीय स्तर पर निर्मित उत्पादों को आगे बढ़ाने का वादा करते हुए लोकल पर वोकल का नारा दिया है। पीएम की इस घोषणा के बाद पीतल नगरी का ठठेरा समाज पीतल व कांसा के बर्तनों के माध्यम से देश के मानचित्र पर एक बार फिर से छाने को तैयार है। 600 परिवारों को आता है बर्तन बनाने का काम सैकड़ों वर्षो पूर्व राजस्थान से चलकर रेवाड़ी पहुंचे ठठेरा समाज के सैकड़ों परिवार अब यहीं की मिट्टी में रच बस गए हैं। इस समाज के करीब 600 परिवारों की पीढि़यां पीतल व कांसा के बर्तनों को बनाते-बनाते ही आगे बढ़ी है। समय के बदलाव के साथ ही पीतल व कांसा के बर्तनों की मांग घटती गई और स्टील व अन्य धातु के स्टाइलिश बर्तनों ने इनका स्थान ले लिया। कभी पीतल के नक्कासीदार बर्तन, लैंप, लोटे व अन्य सामान विदेशों तक एक्सपोर्ट होते थे लेकिन अब देश में ही इनकी डिमांड न के बराबर रह गई है। पीतल व्यवसाय के कारण ही रेवाड़ी को पीतल नगरी के नाम से जाना जाने लगा लेकिन अब इस नाम की सार्थकता भी कम होती जा रही है। 600 की जगह अब मुश्किल से 200 परिवार इस काम से जुड़े हैं। ऐसे में सालों बाद एक बार फिर से घरेलू व स्वदेशी उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने सुध ली है तो ठठेरा समाज के लोगों के चेहरों पर भी रौनक लौटने लगी है। समाज के लोगों का कहना है कि अगर सरकारी मदद मिले तो पीतल व कांसा के बर्तनों का बाजार एक बार फिर से गुलजार हो सकता है। लोग अपनी सेहत के प्रति जागरूक हुए हैं और यह बात किसी से भी छिपी नहीं है कि कांसा व पीतल के बर्तनों में भोजन खाना व पानी पीना सेहत के लिए कितना लाभकारी है।

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    कुंभ में गंगा पूजन के गवाह बने थे यहां के लोटे गत वर्ष प्रयागराज में हुए कुंभ के मेले में पीतल नगरी में बने पीतल के लोटे व गंगासागर (नली वाले लोटे) की खूब डिमांड रही थी। करीब दो महीनों तक तो पीतल के कारीगरों को सांस लेने की फुर्सत तक नहीं मिली थी। समाज के लोगों का कहना है कि अगर प्रोत्साहन मिले तो सालभर उनके पास इस तरह का काम हो सकता है।

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    सरकार स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा देने की बात कह रही है। हमारी सरकार से गुजारिश है कि पीतल व्यवसाय फिर से पनप सके इसके लिए ठठेरा समाज के लोगों को सरकारी मदद मुहैया कराई जाए।

    - श्रीगोपाल भालिया, संरक्षक ठठेरा समाज

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    पीतल व कांसा के बर्तन एक बार फिर से हर घर की रसोई में अपनी जगह बना लेंगे अगर सरकार थोड़ी सी मदद कर दे। 600 परिवार पीतल के बर्तन बनाने के काम से जुड़े रहे हैं, मौका मिले तो ये एक बार फिर बर्तनों का कारोबार खड़ा हो सकता हैं।

    - बीरबल वर्मा, बर्तन व्यापारी