Bhakra Dam News: 68 साल बाद भी आखिर क्यों दक्षिण हरियाणा के लिए सपना है भाखड़ा का पानी
South Haryana Water 68 साल पहहले 8 जुलाई 1954 को नंगल हाईडल चैनल का उद्घाटन हुआ था। इसी से भाखड़ा नहर जुड़ी है मगर पंजाब से मिल रहे 1.8 एमएएफ पानी में न्यायोचित हिस्सा अब तक नहीं मिला है।

रेवाड़ी [महेश कुमार वैद्य]। 68 वर्ष पूर्व 8 जुलाई 1954 को आज ही के दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने नंगल हाईडल चैनल राष्ट्र को समर्पित किया था। इसी चैनल से उत्तर हरियाणा व राजस्थान के कई जिलों में पानी पहुंचाने वाली भाखड़ा नहर जुड़ी है। तब हरियाणा अस्तित्व में नहीं था। समय के साथ हरियाणा बना और कई जल समझौते हुए। उम्मीद थी कि भाखड़ा के माध्यम से पंजाब से हरियाणा को मिल रहे पानी का भी समुचित बंटवारा होगा, मगर दक्षिण हरियाणा के लिए यह सपना ही रहा।
वर्तमान में पंजाब से लगभग 1.8 मिलियन एकड़ फीट (एमएएफ) पानी मिल रहा है। वर्ष 1976 में केंद्र ने 7.2 मिलियन एकड़ फीट पानी में से 3.5 एमएएफ पानी हरियाणा को देने की अधिसूचना जारी की थी। इसके लिए सतलुज-यमुना को जोड़ने वाली एसवाइएल नहर परियोजना बनी, मगर बात अटकी तो वर्ष 1981 में संबंधित राज्यों के बीच फिर जल समझौता हुआ।
इसके बाद 8 अप्रैल 1982 को पटियाला के कपूरी से इंदिरा गांधी ने खोदाई शुरू की, मगर 90 फीसद काम पूरा होने के बाद मामला फिर अटक गया। हालांकि सुप्रीम कोर्ट अंतर्राज्यीय जल समझौता निरस्त करने के पंजाब के कदम को असंवैधानिक बता चुका, मगर एसवाईएल अब भी भाषणों में है।
भाखड़ा का पानी एसवाइएल से अलग है। इस समय पंजाब से 3.5 एमएएफ में से हरियाणा को लगभग 1.8 एमएएफ पानी मिल रहा है। भेदभाव का सच यह है कि इसमें दक्षिण हरियाणा का हिस्सा नाममात्र का है। हिसार-फतेहाबाद जैसे जिलों में भाखड़ा नहर से एक से दो लाख हेक्टेयर जमीन की सिंचाई हो रही है, जबकि रेवाड़ी व महेंद्रगढ़ जैसे जिलों में जेएलएन कैनाल के माध्यम से मात्र दो से चार हजार हेक्टेयर में पानी पहुंच रहा है।
भाखड़ा के पानी के लिए थी हांसी-बुटाना
हुड्डा सरकार के समय भाखड़ा से पानी लाने के लिए हांसी-बुटाना लिंक नहर बनाई गई थी, लेकिन अधिकांश काम पूरा होने के बावजूद भाखड़ा को पंचर करके इसमें पानी नहीं लाया जा सका। तत्कालीन कांग्रेस सरकार चाहती तो काम असंभव नहीं था, क्योंकि नहर हरियाणा की सीमा में थी, मगर एसवाइएल के शोर की आड़ में भाखड़ा से आ रहे मौजूदा पानी का उचित बंटवारा नहीं किया जा रहा। कहीं सेम कहीं सूखा की तस्वीर हकीकत बयान करने के लिए काफी है। हांसी-बुटाना के माध्यम से हरियाणा, भाखड़ा में आ रहे पानी में से केवल अपना हक चाहता है, मगर कुछ शक्तियां ऐसा होने देना नहीं चाहती। इंतजार के 68 वर्ष बीत चुके हैं। एक दूसरे पर आरोप लगाने वाले पानी के मामले में अंदरखाने दोस्त हैं, जबकि दक्षिण हरियाणा का नेतृत्व कमजोर।
रघु यादव (पूर्व विधायक एवं जल मामलों के जानकार) के अनुसार, पानी का मसला कानूनी कम राजनीतिक अधिक है। सुप्रीम कोर्ट एसवाइएल के बारे में दो बार स्पष्ट फैसले दे चुका है। हांसी-बुटाना का मामला भी कानून से अधिक इच्छाशक्ति से जुड़ा है। बड़ा सवाल यह है कि एसवाइएल बनने तक हरियाणा को मिल रहे पानी में से दक्षिण हरियाणा का हक दिया जाए। हांसी-बुटाना नहर से बाढ़ के समय भी अतिरिक्त पानी लाना संभव था, मगर ऐसा नहीं हुआ। पानी के मसलों का एक मात्र समाधान यही है कि केंद्र सरकार इस मामले में पहल करे। कानूनी रूप से केंद्र के हाथ खुले हैं।
विधायक डा. अभय सिंह यादव का कहन है कि हरियाणा सरकार पानी के मसले पर गंभीर है। सरकार की ठोस पैरवी की बदौलत ही एसवाइएल के मामले में सर्वोच्च न्यायालय का फैसला हमारे हक में आया था, मगर पंजाब हठधर्मिता दिखाता रहा है।
मैंने कृषि कानून विरोधी आंदोलन के समय भी कहा था कि यहां के किसानों को कानून वापसी से पहले पंजाब से पानी का हक मांगना चाहिए। पंजाब में अब आम आदमी पार्टी की सरकार है। खुद को हरियाणा का लाल कहने वाले केजरीवाल आए दिन हरियाणा पर दिल्ली का पानी रोकने का आरोप लगाते हैं। उन्हें अब पंजाब को हमारा हक देने के लिए कहना चाहिए।

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