जयकरण ने गोली लगने से घायल होने पर भी अपने साथियों की बचाई थी जान, पढ़ें वीरता और बलिदान की कहानी
रेवाड़ी के सूबेदार जयकरण सिंह यादव ने 1957 में नागा पहाड़ियों में घायल सैनिकों की जान बचाई। उन्हें कीर्ति चक्र अशोक चक्र और सेना मेडल सहित कई वीरता पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। 1978 में सेवानिवृत्त होने के बाद उन्होंने समाज सेवा की। 2003 में उनका निधन हो गया। उन्होंने 26 जनवरी 1950 को भारतीय सेना में अपनी सेवाएं शुरू की थी।

जागरण संवाददाता, रेवाड़ी।Subedar Jaikaran Singh Yadav: असम के शिलांग की थिसामा स्थित नगा पहाड़ियों में छह मई 1957 को भारतीय सेना की राजपूत रेजीमेंट का मुकाबला नगा विद्राहियों से हुआ तो रेवाड़ी जिले के गांव कोसली के रहने वाले सूबेदार जयकरण सिंह यादव ने दुश्मन की गोली लगने के बाद भी घायल अवस्था में अपने घायल हुए दर्जनों साथी सैनिकों को एक-एक कर कंधे पर उठाकर गाड़ी में ले जाकर समय पर इलाज करवा उनकी जान बचाई।
उनके पराक्रम को सलाम करते हुए उन्हें कीर्ति चक्र के साथ-साथ अशोक चक्र, सेना मेडल, स्वतंत्रता जयंती मेडल, दीर्घा सेना मैडल, हिमालय मेडल व पराक्रमी स्टार सहित अनेक वीरता पुरस्कार से नवाजा गया। एक अक्टूबर 1978 को सेना से सेवानिवृति होने के बाद वे समाजसेवा से जुड़े।
27 अगस्त, 2003 को लंबी बीमारी के चलते भारत माता के सपूत जयकरण यादव हमेशा के लिए विदा हो गए। दरअसल, जयकरण सिंह यादव 26 जनवरी 1950 को भारतीय सेना में भर्ती हुए थे। वह 1978 में सूबेदार के पद से सेवानिवृत्त हुए।
उनके एक बेटे स्व. जगदीश यादव ने उनकी विरासत को आगे बढ़ाया और वह भी सेना में वारंट आफिसर रहे। दूसरे पुत्र जगपाल यादव इंग्लिश अध्यापक के रूप में कार्य किया।
जयकरण को कीर्ति चक्र प्रदान किया गया, लेकिन दुर्भाग्य यह है कि कोसली के युद्ध स्मारक स्थल पर आज तक उनका नाम तक अंकित नहीं है।
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