अनोखी रामलीला: यहां नहीं होता रावण, मेघनाद या कुंभकरण के पुतले का दहन
रेवाड़ी में रेलवे ड्रामेटिक क्लब के रामलीला उत्सव में रावण वध का मंचन हुआ लेकिन पुतला दहन नहीं किया गया। आयोजकों का मानना है कि कलाकारों की प्रस्तुति ही बुराइयों के खिलाफ संदेश है। रामलीला में रावण-कुंभकरण संवाद मेघनाद वध और हनुमान द्वारा राम-लक्ष्मण को पाताल लोक से छुड़ाने के दृश्य दिखाए गए। अंत में रावण श्रीराम से युद्ध के बाद मुक्त होकर स्वर्गलोक चला जाता है।

जागरण संवाददाता, रेवाड़ी: रेलवे कॉलोनी में श्रीराम मंदिर रेलवे ड्रामेटिक क्लब की ओर से 65वां रामलीला उत्सव अंतिम चरण में हैं। इस रामलीला की खास बात यह है कि श्रीराम द्वारा रावण का वध मंच पर ही किया जाता है। इसके बाद रावण, मेघनाद या कुंभकरण के पुतले का दहन नहीं किया जाता।
आयोजकों का मानना है कि रामलीला के पात्र और अन्य कलाकारों की प्रस्तुति ही सामाजिक बुराइयों का संदेश देते हैं। पुतलों का दहन करने की आवश्यकता नहीं है।
आखिरी दिन रामलीला में होगा ये मंचन
मंचन के दौरान रावण अपनी सहायता के लिए कुंभकरण के पास जाता है और उसे नींद से उठाता है। जब कुंभकरण को पता चलता है कि रावण सीता का हरण कर लाया तो उसे अनुचित मानता है।
रावण कुंभकरण को समझाकर युद्ध भूमि में भेजता है। युद्ध में श्रीराम के हाथों कुंभकरण मारा जाता है। रावण मेघनाद को फिर युद्ध भूमि में भेजता है। मेघनाद का लक्ष्मण से युद्ध होता है लेकिन लक्ष्मण के हाथों मारा जाता है।
मेघनाद की पत्नी सुलोचना रामा दल में आती है और अपने पति का सिर मांगती है ताकि सती हो सके। प्रभु राम सुलोचना के अनुरोध पर युद्ध रोकने का भी ऐलान करते हैं। इसके बाद रावण सीता के पास जाकर उसे स्वीकार करने का आग्रह करता है लेकिन सीता इंकार करती हैं।
सीता को डराने के लिए राम के कटे शीष का पुतला दिखाता है तो सीता मूर्छित हो जाती हैं। बाद में त्रिजटा के समझाने पर सीता को पता चलता है कि यह झूठ है।
इसके बाद रावण अहीरावण को राम, लक्ष्मण को रामा दल से अपहरण कर लाने का आदेश देते हैं। इस दौरान कामादेवी को भेंट करने की तैयारी की जाती है।
जब हनुमान राम व लक्ष्मण को खोजते हुए पाताल लोक जाते हैं तो उनकी मुलाकात मकरध्वज से होती है जो अपने आपको हनुमान का पुत्र बताता है। वह अपने जन्म की कहानी सुनाता है कि किस तरह हनुमान के पसीने को एक मछली पीती है और उसी से मकरध्वज का जन्म होता है।
रास्ता रोकने पर हनुमान मकरध्वज को एक पेड़ से बांधते हैं। पाताल नगरी में हनुमान का युद्ध अहीरावण से होता है और जब अहीरावण को पता चलता है कि यह हनुमान है तो समझ जाता है कि उसकी मौत निश्चित है। उसे वर मिला हुआ था कि वह केवल हनुमान से ही मारा जाएगा।
युद्ध में हनुमान के हाथों अहीरावण यम लोक पहुंचता है और साथ में वह राम लक्ष्मण को छुड़वा लाते हैं। अंत में रावण श्रीराम से युद्ध के लिए जाता है और अपने शरीर से मुक्त होकर र्स्वगलोक को चला जाता है। जाते-जाते वह श्रीराम को कहकर जाता है कि तुम्हारा भाई तुम्हारे पास था और मेरा भाई मेरे पास नहीं था, जिस कारण वह यह युद्ध हार गया जबकि वह श्रीराम से अधिक शक्तिशाली और सैन्य शक्ति में भी अधिक था।
ये कलाकार निभा रहे किरदार
मंचन में श्रीराम की भमूिका दिवेश शर्मा, लक्ष्मण की मोहित यादव, सीता की प्रिंस, रावण की मुकेश भारद्वाज, मेघनाद की ब्रिजेश शर्मा, कुंभकरण की अनुज शर्मा, सुग्रीव - भगत, जामवंत की नवीन, सलोचना-जितेश, हनुमान-उमेश शर्मा, अंगद-महेश कौशिक आदि सहित अनेक पात्रों के अभिनय पर खूब तालियां बजीं।
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