क्या आपने चखा है शीतलता का अहसास कराने वाली डिश अंगाकड़ा और राबड़ी, भूल नहीं पाएंगे स्वाद
शीतलता का अहसास कराने वाली इस डिश का जायका भी लाजवाब है। राजस्थान की सीमा से सटे दक्षिण-पश्चिमी हरियाणा के देहाती क्षेत्र की सुबह बिना अंगाकड़ा-राबड़ी के अधूरी है। तन-मन को शीतलता प्रदान करने वाली राबड़ी और अंगाकड़ा दोनों अलग-अलग व्यंजन हैं।

रेवाड़ी [अमित सैनी]। राबड़ी और अंगाकड़ा। किसी पांच सितारा होटल में जाकर इस डिश की फरमाइश करेंगे तो संभव है निराशा हाथ लगे, मगर हरियाणा के गांवों की बात करें तो गर्मियों के मौसम में तन-मन को शीतलता प्रदान करने वाला यह सुप्रसिद्ध व घर-घर सुलभ नाश्ता है। आज इसकी चर्चा यूं छिड़ गई, दरअसल इन दोनों जायका को हरियाणा के ब्रांड व्यंजन के रूप में पहचान देने की सार्थक चर्चा छिड़ चुकी है।
शीतलता का अहसास कराने वाली इस डिश का जायका भी लाजवाब है। राजस्थान की सीमा से सटे दक्षिण-पश्चिमी हरियाणा के देहाती क्षेत्र की सुबह बिना अंगाकड़ा-राबड़ी के अधूरी है। तन-मन को शीतलता प्रदान करने वाली राबड़ी और अंगाकड़ा दोनों अलग-अलग व्यंजन हैं, मगर जौ के कारण दोनों की समानता है। अंगाकड़ा और राबड़ी दोनों ही जौ से तैयार होते हैं। मोटे अनाज में गिने जाने वाले जौ को आयुर्वेद में अत्यंत गुणकारी व शीतलता प्रदान करने वाला बताया गया है। जौ से तैयार होने वाली राबड़ी को आम बोलचाल में घाट की राबड़ी कहते हैं। घाट की राबड़ी शहर की गलियों तक पहुंच बना चुकी है, मगर बड़े रेस्तराओं से अभी यह डिश दूर है। जिस तरह मक्के की रोटी व सरसों का साग पंजाब की और लिट्टी चोखा बिहार की पहचान बनी हुई है, इसी तरह आने वाले समय में अंगाकड़ा व राबड़ी हरियाणा का फूड ब्रांड बन सकता है।
इस तरह बनाएं घाट की राबड़ी
अंगाकड़ा और राबड़ी जैसा परंपरागत भोजन बनाने में ग्रामीण महिलाएं पारंगत हैं। रेवाड़ी के चांदपुर की ढाणी निवासी रामगिरी व कोसली निवासी अनारो देवी बताती हैं कि राबड़ी के लिए सबसे पहले जौ को पानी में भिगो लें। जब छिलका नरम हो जाए तब ओखली में डालकर मूसल की मदद से कूट लें। सूखने के बाद जौ के छिलके को अलग करके चक्की में दलिये की तरह बना लें। छिलके हटे हुए जौ का यह दलिया ही घाट कहलाता है। बर्तन में पानी और छाछ डालकर आग पर चढ़ा दें और इसमें घाट डालकर उबाल लें। लगातार हिलाते रहें और थोड़ा गाढ़ा होने पर उतार लें। रात को दूध के साथ व सुबह छाछ के साथ यह राबड़ी खाने का मजा ही कुछ और है।
अंगारों पर बनता है अंगाकड़ा
अंगाकड़ा एक तरह से आधे से एक इंच मोटी छोटे साइज की रोटी होती है। जौ, चना व गेहूं का सख्त आटा गूंथकर कंडों की धीमी आग पर इसे पकाया जाता है। आप गैस के चूल्हे पर धीमी आंच पर ट्राई कर सकते हैं। सुबह छाछ-राबड़ी अथवा दही-राबड़ी के साथ अंगाकड़े का सेवन तन-मन को शीतल कर देता है। हरियाणा टूरिज्म के डिवीजन मैनेजर हरविंद्र सिंह यादव का कहना है कि प्याज के बिना अंगाकड़ा-राबड़ी का स्वाद अधूरा है। प्याज साथ में हो तो कहना ही क्या।
गुणों की खान राबड़ी
जौ की राबड़ी में प्रचुर मात्रा में फाइबर होते हैं। इसके अलावा पोटाशियम, मैग्नीशियम, विटामिन व आयरन जैसे पोषक तत्व भी होते हैं। मोटे अनाज के बासी व जौ आधारिक भोजन को शुगर के रोगियों के लिए बहुत अच्छा माना जाता है। राबड़ी व अंगाकड़ा खाने से लू लगने का डर कम रहता है। अंगाकड़ा-राबड़ी से शरीर को हाइड्रेड रखती है। पाचन तंत्र को मजबूत बनाती है।
हरियाणा का फूड ब्रांड बनाने का प्रयास
वर्तमान की बात करें तो इस समय हरियाणा का अपना एेसा कोई खाना नहीं है, जिसका नाम लेते ही हरियाणवी डिश का अहसास हो। कुछ दिन पहले हरियाणा पर्यटन विभाग के प्रधान सचिव एमडी सिन्हा ने हरियाणा के फूड ब्रांड की बात उठाई थी। यहां का दूध-दही तो प्रसिद्ध है, लेकिन फूड ब्रांड के नाम पर मैतक्य नहीं है। किसी की नजर में दाल-चूरमा तो किसी की नजर में ग्वार की फली और बाजरे की रोटी हरियाणा की पहचान है, मगर अंगाकड़ा और राबड़ी का विस्तृत दायरा इसे प्रदेश के प्रमुख भोजन की श्रेणी में शामिल करवा सकता है। सिन्हा ने गत सप्ताह खुद यह बात स्वीकार की थी कि मुख्यमंत्री मनोहर लाल हरियाणा का एक अलग फूड ब्रांड बनाना चाहते हैं, ताकि उसे देश में अलग पहचान मिल सके।
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