अवसाद की अनभिज्ञता समस्या निवारण में बड़ी अड़चन
समाज में अवसाद (डिप्रेशन) के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। लोगों को इसके बारे में जागरूक करने की जरूरत है। जुगनू क्लब की टीम द्वारा करीब एक हजार लोगों से ...और पढ़ें

जागरण संवाददाता, रेवाड़ी: समाज में अवसाद (डिप्रेशन) के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। लोगों को इसके बारे में जागरूक करने की जरूरत है। जुगनू क्लब की टीम द्वारा करीब एक हजार लोगों से संपर्क कर 570 प्रश्नावलियों से प्राप्त विवरण के आधार पर निष्कर्ष निकाला गया है। क्लब की टीम ने रेवाड़ी, महेंद्रगढ़ और नारनौल के शिक्षण संस्थानों में जाकर सर्वेक्षण किया था। इसके बाद विशेषज्ञों की टीम ने इन प्रश्नावली के माध्यम से निष्कर्ष निकाला है। क्लब की डोंट क्वीट (मत छोड़ो) अभियान के तहत किए गए औचक निरीक्षण में लोगों के जीवन शैली और व्यवहार के बारे में अध्ययन किया गया। इस अभियान में एडवोकेट कुसुम यादव, मनोचिकित्सक डा. विजय भार्गव, डा. पूनम यादव, प्राचार्या मधु यादव, सुमन कुमारी, प्रीति यादव, ऋषभ, संजय, लालसिंह यादव और आस्था राव ने विभिन्न भूमिका निभाई।
सर्वेक्षण के बाद निष्कर्ष रूप में विशेषज्ञों का कहना है कि आस पड़ोस में आत्महत्या की घटनाओं व अवसाद के मरीजों की जानकारी होने के बावजूद अवसाद उनकी वरियता सूची में शामिल नहीं है।
प्रश्नावली में 92 प्रतिशत लोगों ने विभिन्न बीमारियों की सूची में डिप्रेशन का उल्लेख ही नहीं किया। मनोचिकित्सक डा. विजय भार्गव बताते हैं कि आत्महत्या करना या प्रयास करना अपने आप में डिप्रेशन का प्रमाण है। सामान्य व्यक्ति सामान्य परिस्थितियों में आत्महत्या करने का विचार आए तो भी ऐसा कदम उठाने की हिम्मत नहीं कर सकता। अध्ययन के आधार पर अवसाद के कारणों में शराब पीने की आदत, अपराधी प्रवृत्ति, बच्चों की पढ़ाई व स्कूल में मन नहीं लगना, महिलाओं पर अपराध, विवाह विच्छेद, पशुओं पर अत्याचार, आवेश में आकर हत्या, झूठे मुकदमे, आनर किलिग तक के विचार आना प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अवसाद से जुड़े होते हैं। यदि अवसाद पर काबू किया जाए तो बहुत सी आपराधिक समस्याओं को कम किया जा सकता है। सर्वेक्षण के दौरान पाया गया कि परीक्षाओं में टाप करने वाले या उपलब्धियां हासिल करने वालों में अवसाद की संभावना ज्यादा रहती है। नकल करने या दूसरों से तुलना करने की आदत हमें अवसाद की ओर धकेलती है। जुगनू क्लब के संजना और बिट्टू शर्मा का कहना है कि वर्तमान अध्ययन से पता चलता है कि अवसाद की व्यापकता की तुलना में इस पर जानकारी बहुत कम है। उन्होंने बताया कि इसके आधार पर दो वर्षों तक जैतपुर शेखपुर, नांगलिया रणमोख, नारनौल के बास मोहल्ला सहित महेंद्रगढ़ के जांट पाली आदि में विशेष अध्ययन किया जाएगा।

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