भिवाड़ी में 6 दिन से 'दमघोंटू' हवा, आंखों में जलन और सांस लेने में हो रही तकलीफ; AQI लगातार 300 के पार
रेवाड़ी के भिवाड़ी में वायु प्रदूषण गंभीर समस्या बनी हुई है, जहां हवा की गुणवत्ता पिछले छह दिनों से बेहद खराब है। निवासियों को आंखों में जलन और सांस लेने में तकलीफ हो रही है। प्रदूषण के मुख्य कारण कचरा जलाना, धूल और औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाला धुआं हैं। प्रशासन की विफलता के कारण स्थिति और भी गंभीर हो गई है।
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संवाद सहयोगी, भिवाड़ी (रेवाड़ी)। रेवाड़ी के भिवाड़ी में कस्बे में वायु प्रदूषण की स्थिति लगातार चिंता का विषय बनी हुई है। हवा की गुणवत्ता पिछले छह दिनों से बेहद खराब श्रेणी में दर्ज की जा रही है। शहरवासियों को आंखों में जलन, गले में संक्रमण व खांसी जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।
वहीं, खुले में कचरा जलाया जाना, निर्माण सामग्री का सड़कों पर खुले में पड़ा रहना, सड़कों से उड़ती धूल और वाहनों व औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाला धुआं प्रदूषण बढ़ने के प्रमुख कारण हैं, लेकिन इसे रोकने में प्रशासन विफल साबित हो रहा है।
स्थानीय निवासियों का कहना है कि अगर प्रशासन समय रहते सड़क मरम्मत और धूल नियंत्रण जैसे उपाय करता तो स्थितियां इतनी गंभीर न बनतीं।
रविवार को जारी केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के आंकड़ों के अनुसार, भिवाड़ी राजस्थान का सबसे प्रदूषित शहर रहा। जहां अलवर में एक्यूआई 101 और भरतपुर में 245 दर्ज किया गया, वहीं भिवाड़ी का औसत एक्यूआई 336 रहा। औद्योगिक क्षेत्र में वायु गुणवत्ता सबसे खराब पाई गई, जहां एक्यूआई 373 दर्ज हुआ। वसुंधरा नगर का एक्यूआई भी खराब श्रेणी में रहा और यह 299 रिकॉर्ड किया गया।
एक्यूआई लगातार 300 पार, केवल एक दिन मिली मामूली राहत
सीपीसीबी के आंकड़ों के अनुसार, 10 नवंबर से 23 नवंबर के बीच केवल 17 नवंबर को एक्यूआई गिरकर 260 पर पहुंचा था, जो कि ‘बहुत खराब’ श्रेणी से नीचे था। लेकिन यह राहत केवल एक दिन ही रही। 18 नवंबर को एक्यूआई पुनः बढ़कर 359 तक पहुंच गया और तब से लेकर 23 नवंबर तक यह लगातार 300 से ऊपर बना हुआ है।
विशेषज्ञों का कहना है कि अगर हालात ऐसे ही रहे तो स्वास्थ्य जोखिम और बढ़ सकते हैं। स्थानीय लोगों ने प्रशासन से प्रदूषण नियंत्रण के लिए त्वरित कदम उठाने की मांग की है। उनका कहना है कि सड़कों पर नियमित पानी का छिड़काव, निर्माण सामग्री का कवर, खुले में कचरा जलाने पर सख्त रोक और औद्योगिक इकाइयों पर निगरानी जैसे उपाय बेहद जरूरी हैं।

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