प्रजनन के समय पूरा लाल हो जाता है नर 'लाल मुनिया'
लेख संकलन: सुंदर सांभरिया, ईडेन गार्डन रेवाड़ी। लाल मुनिया (रेड अवाडवर) परिवार: इस्ट्रील्डीडी ...और पढ़ें

लेख संकलन: सुंदर सांभरिया, ईडेन गार्डन रेवाड़ी।
लाल मुनिया (रेड अवाडवर)
परिवार: इस्ट्रील्डीडी
जाति: अमनडावा
प्रजाति: अमनडावा
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लाल मुनिया संपूर्ण भारत में पाई जाती है। इसे रेड अवाडवर, टाइगर फींच, स्टॉबरी फींच व वैक्सबील आदि नाम से भी जाना जाता है। पुराने समय में इस पक्षी को अहमदाबाद से दुनिया के दूसरे हिस्सों में निर्यात किया गया था। इस वजह से अहमदाबाद से इसका साधारण नाम अवाडवर पड़ा। नर व मादा दोनों के शरीर पर सफेद चित्ते होते है। इनकी चमकीली लाल चोंच, चमड़े के रंग के पंजे, आंखे काली व लाल भूरी होती है। इनका पिछला हिस्सा लाल रंग का होता है, लेकिन नर पक्षी प्रजनन के समय लगभग पूर्ण रूप से लाल रंग का हो जाता है, जिस पर सफेद चित्ते तथा आंख के पास काली पट्टी होती है।
ये पक्षी आमतौर पर पानी वाली जगहों, घास के मैदानों, गन्ने के खेतों के आस-पास व झीलों के किनारे उगी बड़ी घास के अंदर रहते है। जब ये बड़ी घास, सरकंडा आदि में बैठे रहते है। यदि कोई इन्हें कोई परेशान करता है तो ये तेजी से आसमान की तरफ हल्की चहचाहट के साथ उड़ते है। इन पक्षियों का मुख्य भोजन घास के बीज व अनाज है। इन्हें कभी-कभी कीट व कीड़े खाते हुए भी देखा जा सकता है।
नाचता भी है लाल मुनिया
इस पक्षी के प्रजनन का समय जून से अक्टूबर माह तक होता है। प्रजनन के समय मादा को आकृषित करने के लिए नर पक्षी का रंग पूरा लाल हो जाता है। ये पक्षी हवा में उड़ते हुए तिनका लेकर नाचते है। प्रजनन समय के बाद नर पक्षी का रंग भी लगभग मादा पक्षी जैसा ही दिखता है। ये आमतौर पर एक बड़े समूह में रहते है, लेकिन प्रजनन के समय जोड़ा बनने पर यह समूह से अलग होकर घोंसला बनाता है। घोंसले जमीन से एक मीटर की ऊंचाई पर छोटी झाड़ियों, बड़ी घास, सरकंडा आदि में बनाते है। घोंसला घास से बनाया जाता है तथा इसके अंदर घास के मुलायम रेशे व पंखों को रखते है ताकि अंडों व चूजों को नुकसान न पहुंचे। मादा पक्षी चार से छह अंडे देती है। यह भी देखा जा सकता है कि मादा पक्षी के अंडे देने के बाद भी नर पक्षी घोंसले पर घास के तिनके लगाते रहते है। इस पक्षी की संख्या काफी कम हो रही है, जिसका मुख्य कारण इसके प्राकृतिक वास का घटना है। झीलों के सिकुड़ने से इसके आस-पास आने वाली घास, सरकंडे व पटीरा आदि कम हो रहा है।

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