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    पयार्वरण व वन्य जीवों का मित्र नहीं शत्रू है बबूल

    By JagranEdited By:
    Updated: Tue, 23 May 2017 07:51 PM (IST)

    जागरण संवाददाता, रेवाड़ी: ब्रिटिश शासन में हरियाली बढ़ाने के लिए लगाया गया विलायती बबूल (काबुली की

    पयार्वरण व वन्य जीवों का मित्र नहीं शत्रू है बबूल

    जागरण संवाददाता, रेवाड़ी: ब्रिटिश शासन में हरियाली बढ़ाने के लिए लगाया गया विलायती बबूल (काबुली कीकर) आज नासूर बन चुका है। बिना किसी विशेष देखरेख के पनपने वाला यह पेड़ न केवल पर्यावरण के लिए नुकसानदायक है, बल्कि वन्य जीवों के लिए भी अभिशाप बन चुका है। इसकी जड़ें जमीन में कई मीटर गहरी चली जाती हैं और भूजल को सोख लेती हैं। काबुली कीकर अन्य पेड़-पौधों के लिए भी खतरा है। इसकी हरियाली के फायदे कम और नुकसान ज्यादा हैं। जिस जमीन पर यह पेड़ पैदा होता है, वहां अन्य पौधों को पैदा नहीं होने देता।

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    जिला में स्थित अरावली पर्वत श्रृंखला के अतिरिक्त गांवों में भी बड़ी संख्या में विलायती कीकर उगी हुई है। विलायती कीकर के कारण देसी पेड़-पौधे भी खत्म हो रहे है। यदि इस पेड़ को खत्म करने के लिए ठोस कदम नहीं उठाए गए तो देसी पेड़-पौधों की प्रजातियां खत्म हो जाएंगी। विलायती कीकर के कारण खेजड़ी, केम, जंगली कदम, करील, लसौड़ा आदि देसी पेड़-पौधे खत्म हो रहे है। देसी पेड़-पौधे खत्म होने के कारण पर्यावरण पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है और वायु प्रदूषण भी बढ़ रहा है। अब काबुली कीकर को खत्म करने के लिए भी आवाज उठने लगी है।

    सोख रहा है भूजल

    विलयती कीकर भूजल को भी सोख रहा है। भूगोल प्रवक्ता हरीश कुमार के अनुसार इसकी जड़ें जमीन में काफी गहराई तक जाती हैं। यह कम पानी वाले क्षेत्रों में भी पनप सकता है। इसकी जड़ें जमीन में पानी का पीछा करती है तथा कई मीटर तक जा सकती है। कम वर्षा वाले क्षेत्रों में विलायती बबूल को नियंत्रित करना बहुत ही आवश्यक है। जिला के खंड खोल में अरावली पर्वत श्रृंखला है। खंड खोल में कोई भी ऐसा गांव या पर्वत नहीं है, जहां पर काबुली कीकर न हो। भूजल स्तर कम होने के कारण खंड खोल को डार्क जोन घोषित किया जा चुका है। हवा की आद्रता को सोख लेने के कारण बारिश में भी बाधक बनती है तथा मिट्टी के पोषक तत्वों को भी नष्ट करती है।

    वन्य जीव भी झेल रहे है मार

    पहाड़ियों में खड़ी विलायती कीकर की मार वन्य जीव भी झेल रहे हैं। जमीन पर इनकी ऊंचाई पांच से 20 मीटर तक होती है, जबकि पहाड़ियों में ये झाड़ियों के रूप में उगती है। वन्य जीव झाड़ियों में छुप कर रहते है, जिस कारण उनके कांटे भी जीवों के शरीर में चुभ जाते है। यदि कांटा शरीर में टूट जाता है तो यह गहरा जख्म बना देता है, जिस कारण जीव की मौत भी हो जाती है। गहरी छांव न होने के कारण पक्षी भी इन पेड़ों पर नहीं रहते। इसकी पत्तियां छोटी-छोटी होती है। बबूल का कांटा ऊंट के लिए भी खतरा है। ऊंट का पैर गद्दीदार होता है जिसमें कांटा चुभने का खतरा होता है। विलायती बबूल का कांटा जिस जगह लग जाता है, वहां पर जरा सी भी असावधानी बरतने पर उस स्थान पर गलाव की स्थिति पैदा हो जाती है।

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