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    गोरखधंधा है अरावली की परिभाषा

    By Edited By:
    Updated: Mon, 27 Apr 2015 12:59 AM (IST)

    महेश कुमार वैद्य, रेवाड़ी: नेशनल रिमोट सें¨सग एजेंसी (एनआरएसए) की इमेज के आधार पर चिह्नित किए गए नेशन

    महेश कुमार वैद्य, रेवाड़ी: नेशनल रिमोट सें¨सग एजेंसी (एनआरएसए) की इमेज के आधार पर चिह्नित किए गए नेशनल कंजरवेशन जोन (एनसीजेड) की जमीनी हकीकत तैयार करते समय वन विभाग की टीम अब पहले की तरह ही अरावली के सामने 'स्टेटस टू बी डिसाइडेड' लिखेगी। वर्तमान में चल रहे जमीनी सर्वे के दौरान कुछ दिन पहले आए एक आदेश के बाद विभाग के अधिकारियों ने अरावली के सामने 'नान फारेस्ट' शब्द लिखना शुरू कर दिया था। उच्च स्तर पर विवाद उठने के बाद वन विभाग बैकफुट पर आ गया है।

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    सूत्रों के अनुसार मनोहर सरकार इस मामले पर पैनी निगाह रख रही है। विवाद के बाद खुद मुख्यमंत्री की नजर में ये मामला आ गया है। हकीकत चाहे कुछ भी हो, लेकिन ये प्रचारित हो गया है कि नान फारेस्ट शब्द कुछ शक्तिशाली बिल्डर लाबी के इशारे पर लिखना शुरू किया गया था। बदनामी के छींटों से बचने के लिए सरकार ने बेशक नान फारेस्ट शब्द से पीछा छुड़ा लिया है, लेकिन ताजा विवाद से ये साबित हो गया है कि अरावली की परिभाषा वर्षो बाद भी गोरखधंधा बनी हुई है। सूत्रों का कहना है कि अब सरकार जल्दी ही वन क्षेत्र की परिभाषा तय करने जा रही है।

    गुजरात से लेकर हरियाणा तक फैली अरावली पर्वत श्रंखला विश्व की सबसे पुरानी पर्वत श्रंखला है। पेंच ये है कि हरियाणा के रेवाड़ी, गुड़गांव, फरीदाबाद, मेवात, महेंद्रगढ़ व पलवल तक फैली इस पहाड़ी की चु¨नदा छोटी-छोटी पाकेट को छोड़कर वन विभाग व राज्य सरकार मालिक ही नहीं है, जबकि राजस्थान में अरावली की मालिक सरकार है। हरियाणा में अधिकांश अरावली पहाड़ी क्षेत्र ग्राम पंचायतों के अधीन है, जबकि कई गांवों की राजस्व सीमा में अरावली शामलात देह के नाम दर्ज है। जहां शामलात देह के नाम रिकार्ड है, वहां पर विशेषकर गुड़गांव व फरीदाबाद जिलों में राजस्व रिकार्ड में व्यक्तिगत एंट्री करवाकर भारी गोलमाल भी हो चुका है, लेकिन ताजा विवाद से ये फायदा अवश्य हुआ है कि अब वन क्षेत्र की व्याख्या होने की उम्मीद बंध गई है।

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    जानने योग्य खास बातें

    -वर्ष 1996 में सुप्रीम कोर्ट ने अरावली के संरक्षण के लिए वन क्षेत्र की व्याख्या के आदेश दिए थे। इसके लिए राज्यों को कमेटी बनानी थी और वन क्षेत्र की व्याख्या के लिए क्राइटेरिया तय करना था, लेकिन विडंबना ये है कि आज तक राज्यों की मेहरबानी से केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय इसकी व्याख्या नहीं कर पाया है।

    -कुछ समय पूर्व एनसीआर प्ला¨नग बोर्ड ने एनसीआर क्षेत्र में एनसीजेड की मार्किंग करके दी थी। एनसीआर की दलील थी कि एनसीआर में ली¨वग स्पेस बनाए रखच्े व अच्छे वातावरण के लिए एनसीजेड पाकेट बचाए रखना जरूरी है। इसे अहम प्राकृतिक संपदा मानते हुए ही इमेज करवाई गई थी, लेकिन इमेज में जोहड़, पहाड़, तालाब, छोटे जंगल, नदी, दूषित पानी का भंडार आदि सब स्त्रोत शामिल हो गए। हजारों पाकेट चिह्नित होने के बाद इन्हें शार्ट लिस्ट करने की समस्या आई। इसके बाद ही पिछले वर्ष सर्वे शुरू हुआ, जिसमें अरावली क्षेत्र को परिभाषित करने का विवाद उठा। अब स्टेटस टू बी डिसाइडेड शब्द सर्वे में लिखा जाएगा, लेकिन वर्ष 1996 में दिए सुप्रीम कोर्ट के आदेश (टीएन गोदावर्मन बनाम यूनियन आफ इंडिया) के बाद भी इतनी सुस्ती दिखाना सरकारों की कार्यप्रणाली पर सवाल तो उठा ही रहा है।

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    अरावली को पहले की तरह ही 'स्टेटस टू बी डिसाइडेड' लिखा जाएगा। नान फारेस्ट नहीं लिखा जा रहा है। कहीं कोई विवाद नहीं है। हां, अधिकांश अरावली क्षेत्र के हम मालिक नहीं है। वन विभाग की बजाय ग्राम पंचायत मालिक है। वन क्षेत्र को परिभाषित करने का काम केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय को करना है। वन विभाग कहीं भी सुस्त नहीं है।

    -सीआर जोतरीवाल, प्रधान मुख्य वन संरक्षक, हरियाणा।