ओपन कोर्ट में सुना जाए सेना में भर्ती का मामला
फोटो नंबर-13
-डा. ईश्वर सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में दायर की हुई है क्यूरेटिव याचिका
-याचिका में किया है खुली अदालत में सुनवाई का अनुरोध
महेश कुमार वैद्य, रेवाड़ी: सेना में जाति व धर्म के आधार पर भर्ती को लेकर दो दिन पहले सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई क्यूरेटिव (उपचार) याचिका के साथ याचिकाकर्ता डा. ईश्वर यादव ने सर्वोच्च अदालत से मामले की सुनवाई ओपन कोर्ट में करने की मांग भी की है। इसे एक बड़ा मुद्दा बताते हुए डा. यादव ने यह भी स्पष्ट किया कि इस मुद्दे पर पहले दाखिल की गई जनहित याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने केवल तकनीकी आधार पर खारिज किया था।
रेवाड़ी निवासी डा. ईश्वर सिंह लंबे समय से सेना में जाति व धर्म के आधार पर भर्ती के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं। पहले डा. यादव ने इस प्रकरण पर जनहित याचिका दायर की थी। यह याचिका खारिज होने पर उन्होंने पुनर्विचार याचिका दायर की तथा इस पर भी जब कामयाबी नहीं मिली तो अब क्यूरेटिव याचिका दायर की गई है। यह सुप्रीम कोर्ट में किसी भी मुद्दे को उठाने का अंतिम रास्ता है। सामान्यता इस तरह की याचिका पर मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली चार वरिष्ठ जजों की पीठ चैंबर में ही सुनवाई करती है, लेकिन डा. यादव ने अपनी याचिका के साथ यह प्रार्थना भी की है कि मामले की गंभीरता को देखते हुए ओपन कोर्ट में इसकी सुनवाई की जाये।
दैनिक जागरण से बातचीत में डा. यादव ने कहा कि जाट, मराठा व सिख रेजीमेंट इस बात का स्पष्ट उदाहरण है कि सेना में अब भी धर्म व जाति के आधार पर भर्ती हो रही है। एक बड़ा तबका सेना में भर्ती से वंचित रखा जा रहा है। उन्होंने कहा कि इस मुद्दे पर मेरी जनहित याचिका केवल इस आधार पर खारिज कर दी गई थी कि मैं भर्ती से वंचित रहने वाला पीड़ित पक्ष नहीं था, लेकिन यह मामला जनहित में है। क्या नई सरकार से इस दिशा में कुछ उम्मीद है? इस सवाल पर डा. यादव ने कहा कि जब मामला बड़े वर्गो व बड़े वोट समूह से जुड़ा हो तब राजनीतिक निर्णय की उम्मीद नहीं की जा सकती। यहां यह भी बता दें कि डा. ईश्वर यादव के छोटे भाई रघु यादव भी 'अहीर रेजीमेंट बनाओ या सभी जातिगत रेजीमेंट तोड़ो' की मुहिम को लेकर रेवाड़ी से दिल्ली तक यात्रा कर चुके हैं, लेकिन दक्षिण हरियाणा विकास लोकमंच से जुड़े डा. ईश्वर सिंह यादव जुदा राय रखते हुए धर्म, क्षेत्र तथा जाति के आधार पर रेजीमेंट गठित किये जाने के विरोधी हैं।
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