हाथ नहीं तो क्य गम, हौसले से जीत रहे सारा जहां, कुछ ऐसी ही है पैरासाइक्लिस्ट गौरव की कहानी
आज विश्व विकलांग दिवस है। ऐसे में हम बात कर रहे हैं ऐसे हीरोज की जिन्होंने दिव्यांगता को कभी अपने कमजोरी नहीं समझी। हौसले से सारा जहां जीतने निकल पड़े। करनाल के गौरव की भी कुछ ऐसी ही कहानी है।
पानीपत/करनाल, [पवन शर्मा]। पहाड़ पर साइकिल से चढ़ता एक नौजवान। उम्र 23 वर्ष। आप इन्हें देखकर हैरान रह जाएंगे, क्योंकि इनका एक हाथ नहीं है। जब हाथ कटा था, तब खुद को संभालने का भरसक प्रयास किया। पैरासाइक्लिंग शुरू की। गिर जाते तो लोग ताना मारते, क्या दूसरा हाथ भी कटवाएगा। निराश हो जाते। पर हार नहीं मानी। वह हिमाचल में 3400 मीटर ऊंची हाटू पीक और चीन सीमा पर भारत के आखिरी गांव उत्तराखंड के माणा तक एक हाथ से ही साइकिल चलाने वाले पैरासाइक्लिस्ट हैं। चंडीगढ़ में ओपन चैंपियनशिप में दूसरा स्थान हासिल किया। अब कॉमनवेल्थ गेम्स में स्वर्ण पदक जीतने के लिए दिन-रात एक कर दिया है। जी हां, यह हैं करनाल के गौरव ठाकुर। आइये, आपको इनकी कहानी से रूबरू कराते हैं। क्?योंकि जीना इसी का नाम है।
17 अक्टूबर 2015 का वो दिन। बमुश्किल एक माह बाद करनाल के गौरव ठाकुर को नेवी में जूनियर मैकेनिक पद पर ज्वाइनिंग लेनी थी। परिवार खुश था कि अचानक एक भयावह हादसा घट गया, जिसमें तब महज 18 बरस के इस होनहार नौजवान का एक हाथ सदा के लिए जुदा हो गया। नौ दिन गौरव वेंटिलेटर पर रहे। जीवन की संभावनाएं क्षीण थीं लेकिन ईश्वर को कुछ और ही मंजूर था। अगले दो वर्ष बहुत यंत्रणादायक रहे। फिर बड़े भाई राहुल ने राह दिखाई। पहले सामान्य साइकिल पर एक हाथ से प्रैक्टिस की तो फिर अमृतसर में सीनियर कोच राजेश ने प्रशिक्षण दिया। अब गौरव ने कर्ज पर एक लाख रुपये में इम्पोर्टेड साइकिल खरीदी है ताकि, कॉमनवेल्थ गेम्स में भाग लेकर गोल्ड जीतें और अंतरराष्ट्रीय खेल जगत में खुद को साबित कर सकें।
ट्रक के नीचे आने से कट गया था हाथ
गौरव करनाल के पास गांव में रहते हैं। 17 अक्टूबर 2015 को मनका गांव के पास बाइक पर मां को लेकर जा रहे थे। तभी एक ट्रक ने अचानक ब्रेक लगाए तो उनका बायां हाथ ट्रक के डाल्लेनुमा कुंडे में फंस गया था। चार अंगुलियां तभी अलग हो गईं। पहले सिविल अस्पताल ले गए और फिर निजी अस्पताल। दोनों जगह उनका हाथ काटने की बात सामने आई तो फॉॢटस अस्पताल मोहाली ले गए। नौ दिन गौरव वेंटिलेटर पर रहे। फिर जान तो बच गई लेकिन हाथ काटना पड़ा। मां को भी गंभीर चोट आईं। उन्हेंं भी रॉड लगानी पड़ी।
कठिन हो गई थी जिंदगी
2016 में गौरव का एक और ऑपरेशन हुआ। जिंदगी इतनी कठिन हो गई थी कि गौरव अक्सर सोचते कि वे न बचें तो ही ठीक है। लेकिन बड़े भाई राहुल ने उनका हौसला बढ़ाया, जो पहले करनाल में ही एथलेटिक्स के कोच थे और आजकल इंदौर में हैं। उनकी प्रेरणा से गौरव ने पैरासाइक्लिंग शुरू की। पहले आम साइकिल ली लेकिन उस पर गौरव अक्सर गिर जाते। ऐसे में उन्हेंं लोग उन्हेंं ताना देते-कि एक हाथ तो कट गया, दूसरा भी कटवाएगा क्या...। लोग घर पर भी शिकायत कर देते। इसी बीच गौरव संयोगवश स्टेडियम के कोच राजेश कौशिक से मिले तो उन्होंने अमृतसर बुलाकर उन्हेंं बेहतर ट्रैक पर प्रैक्टिस कराई। तब से गौरव का प्रदर्शन सुधरता गया। कमजोरी को ताकत बनाकर एकहाथ से ही चलाने में माहिर हो गए। माणा तक एक हाथ से ही साइकिल चलाना आसान नहीं।
गौरव को मदद की सख्त दरकार
2015 में गौरव हादसे का शिकार बना तो काफी निराश हो गया था। मैंने उसे समझाया कि एक रास्ता बंद होता है तो दस नए रास्ते खुलते हैं। फिर पैरासाइक्लिंग का प्रशिक्षण लेकर उसने कई उपलब्धियां हासिल कीं लेकिन आज वह बेहतर डाइट तक के लिए तरस रहा है। यह बहुत चिंताजनक है। पैरासाइक्लिंग महंगा खेल है। इसमें आगे बढऩे के लिए संसाधनों और उच्चस्तरीय प्रशिक्षण की आवश्यकता है। सरकार उसकी मदद करे। अगर उसे आगे बढ़ाया जाए तो वह देश का नाम अवश्य रोशन करेगा।
-राहुल ठाकुर, गौरव के भाई और सीनियर एथलीट
बेहद होनहार पैरासाइक्लिस्ट
मुझे गर्व है कि मैंने गौरव को प्रशिक्षण दिया। वह यकीनन बहुत होनहार है। दिव्यांगता के बावजूद हौसले को ताकत बनाकर उसने कई बार खुद को साबित किया है। प्रतियोगिताओं में उसका शानदार प्रदर्शन है। अब उसे मदद की सख्त जरूरत है। सरकार को इस ओर ध्यान देना चाहिए ताकि एक प्रतिभावान खिलाड़ी आगे बढऩे के लिए तरसकर न रह जाए।
-राजेश कौशिक, कोच-गुरुनानक देव यूनिवॢसटी, अमृतसर