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    World Cancer Day 2020: डरे नहीं पढ़ें हौसलों की कहानी, मौत को मात दे जीती जिंदगी की जंग Panipat News

    By Anurag ShuklaEdited By:
    Updated: Tue, 04 Feb 2020 05:19 PM (IST)

    World Cancer Day 2020 कैंसर से कई ऐसे मरीज भी हैं जिन्होंने न सिर्फ रोग को ठीक किया बल्कि अपना नाम भी किया। वे अब दूसरे मरीजों के नाजीर साबित हो रहे।

    World Cancer Day 2020: डरे नहीं पढ़ें हौसलों की कहानी, मौत को मात दे जीती जिंदगी की जंग Panipat News

    पानीपत, जेएनएन। World Cancer Day 2020  कैंसर। सिर्फ इस रोग का नाम सुनकर अक्सर लोग जीवन का अंत समझ लेते हैं। पीडि़त न सिर्फ दुखी रहता, बल्कि परिवार, समाज से अलग रहना शुरू कर देता है। शायद उन्हें नहीं पता, उनका शौक, उनका जोश और जुनून कैंसर को मात दे सकता है। बिल्कुल, ये सही है। विश्वास नहीं होता, तो पढि़ए ऐसे ही हौसले की कहानी। जिन्होंने न सिर्फ कैंसर को मात देकर जिंदगी की जंग जीती, बल्कि अपना नाम भी कमा रहे। 

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    दृढ़ इच्छाशक्ति से मेयर ने दी कैंसर को मात

    दृढ़ इच्छा शक्ति, मजबूत हौसले और डॉक्टरों की मदद से कैंसर जैसी गंभीर बीमारी को मात दे दी। हालांकि जब पहली बार ब्लड कैंसर का पता चला तो घबरा गए। एक बारगी लगा सब कुछ खत्म हो गया। इन हालात में भी हार नहीं मानी और कैंसर से लड़ने की ठान ली। नतीजा सामने है। आज पूरी तरह स्वस्थ हैं। हर काम को बाखूबी से अंजाम दे रहे हैं। यहां हम ऐसी शख्सियत की बात कर रहे हैं जिन्होंने न केवल इस बीमारी को मात दी बल्कि दूसरों के लिए भी नजीर बन गए। वे यमुनानगर-जगाधरी नगर निगम के मेयर मदन चौहान।

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    विचलित न हों 

    दैनिक जागरण से विशेष बातचीत के दौरान मेयर मदन चौहान ने कहा कि कैंसर कोई लाइलाज बीमारी नहीं है। अन्य बीमारियों की भांति इस बीमारी का भी इलाज संभव है। बशर्ते मरीज हौसला न छोड़े। जीवन में विकट परिस्थितियां आती-जाती रहती हैं। इनमें विचलित होने की जरूरत नहीं है। उन्होंने बताया कि वर्ष-2004 में उनको ब्लड कैंसर होने का पता चला था। हालांकि इस दौरान उन्हें भी लगा कि अब क्या होगा? मन में तरह-तरह के सवाल उठने लगे। वे यहां-वहां के चक्कर में नहीं पड़े। उपचार के लिए सीधा पीजीआइ चंडीगढ़ गए। यहां चार माह तक एडमिट रहे। पांच माह तक चिकित्सकों ने फालोअप किया। अब बिल्कुल स्वस्थ हूं। परिवार का पूरा सहयोग रहा।

    समय पर शुरू करवाएं इलाज

    मेयर मदन चौहान ने कहा कि इस बीमारी को लेकर सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि समय पर इलाज शुरू करवा दें। इलाज को लेकर कोताही न बरतें। वैसे भी शरीर के समय-समय पर स्वास्थ्य जांच करवाते रहें। यदि इस प्रकार के कोई लक्षण सामने आए तो तुरंत विशेषज्ञों से परामर्श करें। उनको भी शुरुआती दौर में दांतों में दर्द था। दवाइयां खाने के बावजूद ठीक नहीं हुआ। फिर लैब में टेस्ट करवाए। इसमें कैंसर होने की पुष्टि हुई। उन्होंने बिना देरी किए उपचार शुरू करवा दिया। चौहान का कहना है कि आज के अतिव्यस्त दौर में स्वस्थ रहने के लिए दिनचर्या नियमित रखें। सुबह-शाम सैर करें। नशीले पदार्थो का सेवन न करें। सकारात्मक सोच रखें। कभी भी नकारात्मक विचार मन में न आने दें। खाने में फल व हरी सब्जियों को तरजीह दें। यदि हम किसी भी बीमारी की गिरफ्त में आ जाते हैं तो हौसला न छोड़ें। क्योंकि आज के दौर में हर बीमारी का इलाज संभव है।

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    कैथल के डांसर लव शर्मा ने हौसला नहीं छोड़ा

    तकरीबन 2014 में डांसर लव को चक्कर आ गया था। उन्‍हें ब्रेन ट्यूमर का पता चला। डॉक्टरों ने कैंसर के लक्षण बताए। डांस से दूर रहने की सलाह दी, मगर वह जिद पर अड़ गए। नृत्य का शौक ही कैंसर की दवा बन गया।

    पानीपत के हरविंद्र की हिम्मत से हार गया कैंसर

    ब्रेन ट्यूमर है। यह सुनकर डरा तो, लेकिन हिम्मत नहीं हारी। भाई, पत्नी और बच्चों ने भी हिम्मत दी। इलाज के लिए पानीपत सहित कई शहरों में जाना पड़ा। यह शरीर मेरा है, देखभाल की जिम्मेदारी भी मेरी है। इलाज के बाद अब खेतों की देखभाल कर रहा हूं। मेरे संघर्ष से किसी को प्रेरणा मिलती है तो सबको बताओ। उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर के शुक्रताल कस्बा वासी हरविंद्र सिंह (35 वर्ष) से जब कैंसर दिवस विशेष के लिए बात हुई तो जिंदादिली से सबकुछ बताया।  उन्होंने बताया कि 21 जुलाई 2019 को अपनी रिश्तेदारी में पंजाब गया था, वहीं दौरा पड़ा। कुछ देर बाद होश आ गया था। इसके बाद मेरठ के दो डाक्टरों को दिखाया। कुछ टेस्ट हुए तो ब्रेन ट्यूमर बताया। इलाज के लिए पीजीआइ चंडीगढ़ गया तो वहां भीड़ अधिक दिखी। ऋषिकेश स्थित एम्स अस्पताल गए तो वहां डेढ़ माह की वेङ्क्षटग बतायी। एम्स दिल्ली गए लेकिन वहां भी वेटिंग थी। वहीं एक डॉक्टर ने पानीपत के प्रेम कैंसर अस्पताल में इलाज की सलाह दी। डॉ. पंकज मुटनेजा के नेतृत्व में कई बार रेडिएशन थैरेपी की गई।  31 जुलाई 2019 को स्वजन देहरादून स्थित मैक्स अस्पताल लेकर पहुंचे। डॉ. एके सिंह ने पांच अगस्त को सर्जरी की, नौ अगस्त को डिस्चार्ज कर दिया। हरविंद्र के मुताबिक अब वे पूरी तरह स्वस्थ हैं, खेतों की देखभाल करते हैं। 

    भाई और पत्नी का रहा सपोर्ट

    हरविंद्र ने बताया कि ब्रेन ट्यूमर है, इसका पता भाई अमरजीत को था। शुरुआत में पत्नी हरविंद्र कौर, 11 वर्षीय पुत्र अंशदीप, छह वर्षीय बेटी अवनीत कौर को नहीं बताया। अस्पताल में एडमिट होने से पहले बताया तो पत्नी बोली सब ठीक हो जाएगा। परिवार के सदस्यों, खास मित्रों ने हारने नहीं दिया। 

    पढ़ाई पर लिम्फोमा कैंसर को नहीं होने दिया हावी

    उम्र 22 साल। शहर के एक कॉलेज में बीकॉम अंतिम वर्ष की छात्रा। उसे पता है कि लिम्फोमा (एक तरह का ब्लड कैंसर) ने चपेट में ले लिया है। उसे यह भी पता है कि कैंसर को हराना कैसे है। क्लासमेट के साथ हंसी-ठिठोली में पीछे नहीं रहती। पढ़ाई पर बीमारी को हावी नहीं होने दिया।  विकास नगर कॉलोनी स्थित एक छोटे से घर में पति-पत्नी और उनके दो बच्चे (एक बेटी एक बेटा) रह रहे हैं। बेटी बीकॉम की छात्रा है, बेटा 10वीं कक्षा में पढ़ रहा है। छात्रा जब कक्षा 12 में थी तो उसे स्किन एलर्जी हो गई थी। फैमिली डॉक्टर के परामर्श से इलाज कराया, कुछ चीजें खाना बंद कर दिया। घर मिलने पहुंची मित्र उसे बताया कि गले में कुछ सूजन है। डॉक्टर को दिखाया तो उसने टीबी बतायी और इलाज शुरू कर दिया। तीन माह तक इलाज चला, गले की सूजन बढ़ती गई। जुलाई 2017 में दिल्ली स्थित गंगाराम अस्पताल में एफएनएसी (फाइन निडिल एस्पिरेशन साइटोलॉजी) टेस्ट से कैंसर का पता चला। कीमोथैरेपी हुई, इलाज महंगा होने के कारण स्वजन जनकपुरी स्थित स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट ले गए। छात्रा के मुताबिक 22 बार रेडिएशन थैरेपी हुई। मंगलवार को पुन: अस्पताल जाना है। संभवतया 28 फरवरी को बोन मैरो प्रत्यारोपण हो जाएगा।  

    माता-पिता बने ताकत

    बेटी को लिम्फोमा है, यह सुनकर माता-पिता के पैरों के तले से जमीन खिसक गई थी। साथ में मौजूद छोटा भाई उदास हो गया था। शायद आर्थिक तंगी ने उन्हें डरा दिया था। छात्रा न तो खुद हारी न स्वजनों को हारने दिया। पढ़ाई भी जारी है। वाट्सएप ग्रुप हेल्पिंग यूथ के सदस्यों ने करीब चार लाख रुपये देकर मदद की है। 

    तीन बार कैंसर को दी मात, दूसरों के लिए बने प्रेरणा

    जींद के डॉ. अनिल दलाल तीन बार कैंसर को मात दे चुके हैं। इनका हौसला और मजबूत इच्छाशक्ति देखकर डॉक्टर भी हैरान रह गए थे। अब डॉ. अनिल दूसरे लोगों के लिए प्रेरणास्रोत बने हुए हैं। डॉ. अनिल दलाल जब दसवीं में पढ़ते थे तो उन्हें मोतीझरा (टाइफाइड) हो गया। इसके बाद एक पैर में तेज दर्द रहने लगा। रोहतक पीजीआइ में चेक कराया तो डॉक्टरों को बीमारी का पता नहीं चला। 1995 में जब 15 साल के थे, तब दिल्ली में एमआइआर कराई तो डॉक्टरों ने बताया कि रीढ़ की हड्डी में कैंसर का ट्यूमर है। डॉक्टरों ने ऑपरेशन से पहले उनके बड़े भाई को कहा कि इनका बचना मुश्किल है। बच गए तो चलना-फिरना बंद हो सकता है। भाई ने डॉक्टर से कहा कि आप ऑपरेशन कर दीजिए। आगे इसकी किस्मत है। छोटी उम्र में अनिल हंसते हुए ऑपरेशन थिएटर में गए और मुस्कुराते हुए लौटे। लेकिन चार साल बाद 1999 में फिर चलने में परेशानी होने लगी तो दोबारा डॉक्टर को दिखाया। डॉक्टर ने बताया कि रीढ़ में उसी जगह ट्यूमर ग्रोथ कर गया है। पैरों में खून जाना बंद हो गया था और पैर हिलने भी बंद हो गए थे। लेकिन अनिल ने हौसला बनाए रखा।

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