महिलाओं ने उठाए सवाल, कंडोम फ्री तो सेनिटरी पैड पर 18 फीसद जीएसटी क्यों
जब डीसी और एसपी महिला हों तो महिलाओं का दर्द मुखरना लाजिमी था।
पंकज आत्रेय, कैथल
जब डीसी और एसपी महिला हों तो महिलाओं का दर्द मुखरना लाजिमी था। किसी ने महिलाओं को बच्चा पैदा करने की मशीन समझे जाने की त्रासदी बताई तो किसी ने सुरक्षा के सवाल उठाए। सेनिटरी पैड पर 18 फीसद जीएसटी को महिलाओं के साथ भेदभाव के रूप में देखा गया।
हुआ यूं कि बुधवार को प्रदेश सरकार के विशेष प्रोजेक्ट एक और सुधार के तहत नारी सशक्तीकरण पर महिलाओं से सुझाव लिए जा रहे थे। डीसी सुनीता वर्मा, एसपी आस्था मोदी और प्रोजेक्ट डायरेक्टर रॉकी मित्तल के सामने 15 साल की छात्राओं से लेकर 50 साल की महिलाएं तक ने अपने सुझाव रखे। असुरक्षा तकरीबन हर वर्ग की महिलाओं की चिंता का विषय रहा। नरड़ गांव की गृहिणी सुमन कश्यप बोली, उन्हें आज भी बच्चा पैदा करने की मशीन ही समझा जाता है। घरेलू और यौन ¨हसा के मामलों में वह कुछ नहीं कर पाती है, क्योंकि उसे कानून की जानकारी नहीं है। एक महिला प्रोफेसर पर¨वद्र कौर का कहना था कि उनके सेनिटरी पैड पर 18 फीसद तक जीएसटी लगता है, जबकि पुरुषों के कॉन्डम को टैक्स फ्री रखा गया है।
गुहला से आई एडवोकेट कृष्णा का कहना था कि पुलिस का सेवा, सुरक्षा और सहयोग महिलाओं के मामले में नहीं दिखता। जो पढ़े-लिखे हैं और थोड़ा ज्ञान रखते हैं, उन्हें ही तवज्जो मिलती है। मैले-कुचलों तक यह सहयोग नहीं पहुंचता है। महिला थाना प्रभारी ने एसपी व डीसी के सामने कामकाजी व घरेलू महिलाओं की स्थिति को विकट करार दिया।
राजकीय कन्या वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय सीवन की अध्यापिका अंकिता ने कहा गांव से आने वाली छात्राओं के लिए सरकारी स्कूलों में भी वैन होनी चाहिए। लड़की सशक्त हो। उसे ग्रुप में चलना चाहिए। उसे अंदर से इतना मजबूत होना होगा कि अगर वह अकेली भी हो तो कोई उसे परेशान न कर सके। लड़कियों को नहीं लड़कों को ट्रेनिंग की जरूरत
स्कूल छात्रा स्मृति ने कहा कि जब स्कूटी पर जाते हैं तो लड़के कुछ भी बोल देते हैं। लड़कियों को तो ट्रे¨नग देने की बात होती है, लेकिन असली जरूरत लड़कों को ट्रे¨नग देने की है। लड़कियों को भी चाहिए कि जब कोई घूरे तो उसे तेज नजरों और तेज जुबान से जवाब दें। 24 घंटे न तो पुलिस साथ रह सकती है और न कोई गनमैन। पुरुषों को भी ट्रेनिंग की जरूरत नहीं
अध्यापिका अमर ने कहा कि ग्रामीण स्तर की समस्याओं तक हम नहीं पहुंच रहे हैं। चुनाव जीतकर महिला पार्षद या सरपंच तो बन जाती है, लेकिन अधिकार नहीं पाती। उसका पति ही सरपंच साहब कहलाता है। पुरुषों और मां-बाप की भी ट्रे¨नग जरूरी है। एक बार मेरे पीछे दो लड़के पड़ गए तो मैंने उन्हें अपने पीछे आने को कहते हुए थाने तक ले गई। मैं घबराई नहीं। जब हुडा में चेन स्ने¨चग बढ़ी तो महिलाओं को एकजुट करके थाने में हल्ला बोला। स्कूल मदर्स की धारणा लागू हो
प्रोफेसर डॉ. ऋचा लांग्यान ने कहा कि हम बुनियादी दिक्कतों को नहीं देख रहे हैं। स्कूल मदर्स की धारणा को लागू करना होगा। ग्रामीण आंचल में अभिभावकों को जागरूक करना होगा ताकि बेटियां घर से बाहर निकलकर सुरक्षित महसूस करें। हर गांव में बारहवीं तक के स्कूल हों। स्कूल वैन लगाई जाएं और उनमें महिला पुलिस कर्मी तैनात हो।