एक अनोखा शिव मंदिर, बिना नंदी के विराजमान हैं महादेव, यहां लंकापति रावण ने की थी पूजा
Sawan 2022 हरियाणा के कुरुक्षेत्र में कालेश्वर महादेव मंदिर है। यह देश का एकमात्र ऐसा शिवमंदिर है जहां महादेव बिना नंदी के विराजमान हैं। यह एक स्वयंभू शिवलिंग है। मान्यता है कि यहां पर लंकापति रावण ने तपस्या की थी।

पानीपत/कुरुक्षेत्र, जागरण संवाददाता। सावन माह शुरू हो चुका है। सावन में शिव भक्ति का विशेष महत्व है। देश भर के शिवमंदिरों में शिव भक्त दर्शन के लिए पहुंच रहे हैं। हर मंदिर की अलग-अलग मान्यता है। कुरुक्षेत्र में भी दुनिया एक अनोखा महादेव का मंदिर है।
शिवलिंग बिना नंदी के
धर्मनगरी में कालेश्वर महादेव मंदिर देशभर में एकमात्र ऐसा मंदिर है, जहां शिवलिंग बिना नंदी के स्थापित है। किदवंत कथाओं के मुताबिक आकाश मार्ग से गुजर रहे लंकापति रावण का उड़नखटोला कालेश्वर महादेव मंदिर के ऊपर आते ही डगमगा गया था। इसके बाद उन्होंने यहीं बैठकर पूजा शुरू कर दी।
स्वयंभू शिवलिंग है यहां
मान्यता है कि रावण की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव अवतरित हुए और उन्होंने रावण से इच्छा पूछी। रावण ने भगवान शिव से काल पर विजय का वरदान मांगा, लेकिन इससे पहले रावण ने भगवान शिव से प्रार्थना की कि इस मनोकामना का साक्षी कोई तीसरा नहीं हो। बताया जाता है कि भगवान शिव ने इस दौरान नंदी महाराज को अपने से दूर किया था। इसके बाद से यहां शिवलिंग बिना नंदी महाराज के स्थापित हैं।
यहां पूजा करने वाले की अकाल मृत्यु नहीं होती
श्रद्धालु ज्ञान चंद शर्मा का कहना है कि कालेश्वर तीर्थ तट स्थित भगवान कालेश्वर मंदिर देश दुनिया में अपनी विशेष मान्यता से धार्मिक आस्था का केंद्र है। यहां की महत्ता है कि जो भी श्रद्धालु शनिवार और सोमवार को शिवलिंग पर जल अर्पित करता है। उसकी अकाल मृत्यु नहीं होती। इसी स्थान पर भगवान शिव ने रावण को काल पर विजयी होने का वरदान प्रदान किया था, इसलिए इस मंदिर का नाम कालेश्वर महादेव हैं। भगवान शिव की पूजा से काल को भी मोड़ा जा सकता है।
प्राचीन घाट भी बना हुआ है मंदिर के किनारे : श्याम सुंदर तिवारी
श्रीब्राह्मण एवं तीर्थोद्धार सभा के अध्यक्ष श्याम सुंदर तिवारी ने बताया कि प्राचीन श्रीकालेश्वर महादेव मंदिर देश भर के दुर्लभ मंदिरों में अपना विशेष स्थान रखता है। यह एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां भगवान शिव के साथ नंदी महाराज जी की मूर्ति नहीं है। रावण ने भगवान शिव से काल पर विजय का वरदान यहीं मांगा था। यहां शनिवार और सोमवार को जल अर्पित करने वाले को अकाल मृत्यु नहीं होती। मंदिर कालेश्वर तीर्थ के किनारे है जहां पर स्नान करने के लिए तालाब है। इसमें सरस्वती नदी का पानी आता था और लोग स्नान करते थे। यहां पर प्राचीन घाट भी स्थित है।
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