Ukraine News: यूक्रेन से पानीपत लौटे अनुज ने बयां किया दर्द, 600 डालर दिए, तब ट्रेन में बैठने दिया
यूक्रेन और रूस की जंग कई भारतीय छात्र फंस गए हैं। उन्हें वहां से निकाला जा रहा है। यूक्रेन के खारकीव शहर से पानीपत लौटे छात्र अनुज ने आपबीती बताई। अनुज ने बताया कि 600 डालर देने के बाद ट्रेन में बैठने दिया गया।

पानीपत, जागरण संवाददाता। यूक्रेन से रोजाना सैकड़ों विद्यार्थी लाए जा रहे हैं। खारकीव, सुमो से लेकर बार्डरों पर जो फंसे हैं, उनके अभिभावक भी चिंतित हैं। सांसद कार्यालय में बनाए कंट्रोल रूम में काल कर बच्चों को लाने की व्यवस्था करने की मांग कर रहे हैं।
खारकीव से मुखीजा कालोनी का रहने वाला अनुज वीरवार को यूक्रेन के खारकीव से सकुशल लौटा तो स्वजनों की खुशी का कोई ठिकाना न रहा। उसने बताया कि रूस के साथ युद्ध की आहट शुरू होते ही स्वजनों ने उसकी फ्लाइट की टिकट करा दी थी। वह एयरपोर्ट पहुंचा। इससे पहले एयरपोर्ट को सील कर दिया गया। वहां से उन्होंने ट्रेन के जरिये निकलने की कोशिश की, लेकिन उन्हें चढ़ने नहीं दिया गया। 600 डालर देकर ट्रेन में चढ़े और इवानों पहुंचे। जहां एंबेसी ने उन्हें एक हास्टल में ठहराया। बिगड़ते हालात के बीच उन्होंने फिर बार्डर के लिए बस किराये पर की। 11 विद्यार्थियों में से एक का किराया कम था।
उन्होंने एटीएम की तलाश की। किसी में पैसे नहीं मिले। फिर बस चालक को लैपटाप, मोबाइल से लेकर कानों की बाल तक आफर की, लेकिन चालक चार किलोमीटर से वापस लौटाकर ले आया। अगले दिन एटीएम से पैसे निकल पाए तो वो बस किराये पर लेकर हंगरी बार्डर तक पहुंचे। जहां काफी मशक्कत के बाद बार्डर पार करने पर उन्हें बुडापेस्ट एयरपोर्ट ले जाया गया।
सायरन बजने के साथ बढ़ती दिल की धड़कन
माडल टाउन की सिमरन वीरवार को यूक्रेन से सकुशल लौटी। सिमरन ने बताया कि बताया कि यूक्रेन में हालात बेहद खराब हो चुके हैं। जब भी वहां सायरन बजता उनके दिल की धड़कन बढ़ जाती। डर रहता कहीं बम न आकर गिर जाए। अपने खर्च पर वो पहले तो रोमानिया बार्डर पर पहुंचे। जहां हजारों विद्यार्थी बार्डर पार करने के लिए खड़े थे। उन्हें करीब आठ किलोमीटर तक पैदल चलना पड़ा। जहां भारतीय की बजाय पहले नाइजीरियन को निकाला जा रहा था।
यूक्रेन से निकल, स्लोवाकिया में फंसी बेटी
एमबीबीएस की तीसरे साल की पढ़ाई कर रही मोनिका यूक्रेन से सकुशल निकल स्लोवाकिया में जा फंसी है। बेटी को लेकर अभिभावक भी परेशान हैं। खोतपुरा स्कूल में संस्कृत की शिक्षिका के पद पर कार्यरत सुनीता मान ने बताया कि बेटी मोनिका दिनपरो में पढ़ाई कर रही थी। युद्ध शुरू होने पर वहां से निकलने के लिए स्टेशन पर पहुंची। जहां उन्हें ट्रेन में पहले तो चढ़ने नहीं दिया गया। फिर उनसे 500-500 डालर लेकर ट्रेन में चढ़ने दिया गया। वो वहां से वो किसी तरह स्लोवाकिया पहुंचे। अब पिछले तीन दिनों से 819 विद्यार्थी स्लोवाकिया में फंसे हैं। वहां पर दो एयरपोर्ट हैं। बच्चे किस एयरपोर्ट पर जाए। दोनों एयरपोर्ट में 100 किलोमीटर का अंतर है।
एक रजाई में सात को काटनी पड़ी रात
नंद विहार कालोनी निवासी अमन कौशिक घर लौट आए। उन्होंने बताया कि मुश्किल से पैसे व सामान जुटाया। फिर ईवानों वहां से करीब 250 किलोमीटर का सफर तय कर 26 फरवरी को रोमानिया बार्डर पर पहुंचे। पहले ही हजारों विद्यार्थी बार्डर पार करने के लिए खड़े थे। पहले महिलाओं व बच्चों को निकाला जा रहा था। उन्हें 32 घंटे तक बार्डर पार करने में लगे। खुले आसमान के नीचे सात साथियों ने एक ही रजाई में रातें काटी।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।