यूक्रेन में फंसे भारतीय विद्यार्थियों के लिए फरिश्ते बने करनाल के दो युवा, कीव शहर छोड़ने से किया इन्कार
यूक्रेन और रूस के बीच युद्ध बढ़ता जा रहा। यूक्रेन में 5 साल से रह रहे करनाल के दो युवाओं ने कीव शहर छोड़ने से इन्कार कर दिया। भारतीयों की मदद के लिए दिन रात लगे हुए हैं। यूक्रेन में रहकर जो भी कमाया भारतीयों की मदद में लगा रहे।

करनाल, जागरण संवाददाता। यूक्रेन में युद्ध की विभीषिका के बीच दानवीर कर्ण की नगरी करनाल के उत्साही युवा भवन शर्मा ने सेवा भाव का अनुकरणीय उदाहरण नुमायां किया। भवन ने जान हथेली पर रखकर करीब 1500 विद्यार्थियों को निकालकर लवीव शहर तक पहुंचाया, जिनमें काफी स्वदेश लौट चुके हैं। भवन का कहना है कि जब तक शरीर में खून का एक-एक कतरा है, तब तक कीव नहीं छोड़ेंगे।
इस नेक मुहिम में भवन का साथ उनकी दोस्त ल्यूबोब गुलिया और कजिन यश गोस्वामी ने भी बखूबी निभाया। हालांकि अब भवन ने उन्हें भी बार्डर पर सुरक्षित पहुंचा दिया है और अकेले ही मोर्चे पर डटे हैं। हर भारतीय विद्यार्थी को बचाने के संकल्प के साथ भवन ने विदेशी सरजमीं पर पिछले पांच साल में जो कुछ कमाया था, उसकी पाई-पाई तक संकट में बिना कुछ सोचे खर्च कर दी। जागरण से वार्ता में करनाल के सदर बाजार वासी भवन ने बताया कि वह पांच साल से यूक्रेन में हैं। कार ट्रेडिंंग और टैक्सी चलाने का कारोबार है। भवन काफी शाप भी चलाते रहे हैं।
भवन ने बताया कि बीते दिनों रूस ने अचानक पूरी ताकत से यूक्रेन पर हमला किया तो वह कीव में सो रहे थे। चारों तरफ सायरन बजने लगे। शहर खाली करने की एडवायजरी जारी होने लगी। बच्चों के चेहरों पर दहशत साफ झलक रही थी। चारों तरफ भगदड़ मची थी। कई बच्चों के पास न पैसा था और न पर्याप्त खाना-पीना। कीव में हवाई हमले के कारण एक पल रुकना भी खतरनाक था। लिहाजा, उन्होंने और उनकी दोस्त ल्यूबोब गुलिया तथा यूक्रेन में ही रह रहे मामा के बेटे 21 वर्षीय यश गोस्वामी ने तय किया कि एक-एक बच्चे को सुरक्षित निकालेंगे। सबसे नजदीकी शहर लवीव था लेकिन उसकी दूरी भी 550 किलोमीटर थी। उन्होंने गाड़ी में अपनी सारी जमा-पूंजी रख ली। करीब छह लाख रुपये की भारतीय मुद्रा थी, जिसकी पाई-पाई तक उन्होंने बच्चों के लिए ट्रेन, बस और टैक्सी के किराए, पेट्रोल से लेकर खाने-पीने, कपड़े और अन्य इंतजाम में खर्च कर दी।
जब दूतावास ने कहा...शुक्रिया भवन
यूक्रेन में अब हर चीज की किल्लत है। लिहाजा, जहां से जो मिलता है, भवन उसे उठाकर गाड़ी में रख लेते हैं। जरूरत के अनुसार बांट देते हैं। जिस बच्चे की जब में पैसा नहीं था, उसे तुरंत कुछ न कुछ दिया। जो भूखे थे, उन्हें खाना दिया। पहली रात करीब 170 बच्चों को कीव से सुरक्षित निकाला तो फिर हर रात यही सिलसिला। जब भारतीय दूतावास को पता चला तो उनकी ओर से धन्यवाद करने के लिए काल आई। इससे नया हौसला जगा।
दोस्त और भाई को पहुंचाया बार्डर
बकौल भवन, अब जब खतरा चरम पर पहुंच चुका है तो अपनी दोस्त ल्यूबोब गुलिया और कजिन यश को और मुश्किलों में नहीं देख सकता। इसलिए, 56 घंटे में आठ सौ किलोमीटर सफर तय करके पोलैंड बार्डर पहुंचे हैं, जहां अभी भी 15-20 किलोमीटर लंबा जाम लगा है। यहां गुलिया और यश को छोड़कर वह फिर कीव वापस जाने का प्रयास करेंगे ताकि वहां फंसे लोगों को बचा सकें। राह में कदम-कदम पर बढ़ती चुनौतियों के कारण ऐसा मुमकिन नहीं हुआ तो बार्डर या जहां भी मौका मिलेगा, भारतीय विद्यार्थियों को बचाने के लिए पूरी ताकत झोंक देंगे। कीव में अभी भी काफी भारतीय विद्यार्थी हैं, उनको निकालने की कोशिश जारी है। मैं रहूं या न रहूं मगर आखिरी सांस तक डटा रहूंगा। यही मेरा मिशन है। गीता सार मेरी प्रेरणा है। यानि, जो कुछ मिला, वह सब यहीं रह जाना है, इसलिए जीवन भर की जमा-पूंजी खर्च होने का कोई गम नहीं है।
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