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    करनाल में है पृथ्वीराज चौहान का किला, अब भी ताजा हैं युद्ध के निशान, अब ये हैं हालात

    By Umesh KdhyaniEdited By:
    Updated: Sun, 22 Aug 2021 05:31 PM (IST)

    करनाल के तरावड़ी में पृथ्वीराज चौहान का किला है। इसका वर्णन इतिहास के पन्नों में दर्ज है। तरावड़ी को पहले तराईन के नाम से जाना जाता था। पृथ्वीराज चौहान ने सैनिकों के विश्राम के लिए यहां किले का निर्माण करवाया था।

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    तरावड़ी का किला अब लोगों का आशियाना बनकर रह गया है।

    रोहित लामसर, तरावड़ी (करनाल)। करनाल के तरावड़ी का ऐतिहासिक किला अपने अंदर इतिहास संजोए हुए है। इस किले में इस समय भी मौजूद कई इमारते सदियों पहले हुए युद्ध की यादें ताजा करवा देती हैं। तरावड़ी कस्बे के इस किले में पृथ्वीराज चौहान व क्रूर विदेशी शासक मोहम्मद गौरी के बीच तराईन युद्ध हुआ था।

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    तरावड़ी में पृथ्वीराज चौहान का किला होने के कारण इस स्थान का वर्णन भी इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं। तरावड़ी को पहले तराईन के नाम से जाना जाता था। बुद्धिजीवियों के अनुसार पृथ्वीराज चौहान ने सैनिकों के विश्राम के लिए यहां किले का निर्माण करवाया था। यह किला अब लोगों का आशियाना बनकर रह गया है। तरावड़ी की इस यादगार इमारत में अब लोगों ने अपने घर बसा लिए हैं, लेकिन आज भी इसकी चारों तरफ की इमारतें अपने अंदर संजोये इतिहास को बयान करती हैं।

    खंडहर में तब्दील होती जा रहीं दीवारें

    आज के समय में इस किले को सुंदरीकरण की जरूरत है। इस किले के चारों तरफ की दीवारें जो इतिहास बता रही हैं, वह इमारतें लगातार खंडर में तबदील होती जा रही हैं। संबंधित विभाग एवं प्रशासन ने इसकी सुध नही ली। यदि इस किले का सौंदर्यकरण करवाने के साथ-साथ यहां पर इतिहास संजोये पुरानी चीजों का बयान कर दिया जाए तो देखने को पर्यटकों की भीड़ लग जाए।

    करनाल का तरावड़ी किला देखभाल के अभाव में खंडहर में तब्दील होता जा रहा है।

    भटकने को मजबूर होते हैं पर्यटक 

    इतिहास सुनने के बाद कभी-कभार दूर-दराज से यदि कोई विदेशी मेहमान या कोई पर्यटक पृथ्वी राज चौहान के इस किले को देखने के लिए आ भी जाए तो उन्हें यहां पर किले से संबंधित कोई जानकारी नहीं मिल पाती। क्योंकि यहां पर इतिहास दर्शाने वाला कोई बोर्ड नहीं है। ऐसे में पुरातन महत्व के इस स्थल की हालत खस्ता होती जा रही है। सरकार की अनदेखी के कारण तरावड़ी का ऐतिहासिक किला अपना मूल स्वरूप खोता जा रहा है।

    ...तो देखना पड़ा था पृथ्वीराज चौहान को हार का मुंह

    सन 1191-1192 में पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गौरी के बीच यहीं पर 18 बार युद्ध हुआ था। बताया जाता है कि पहली लड़ाई में मोहम्मद गौरी को हार का सामना करना पड़ा था। लेकिन दूसरी लड़ाई में पृथ्वीराज के साले जयचंद ने भीतरघात किया और वह मोहम्मद गौरी से जा मिला। नतीजतन इस युद्ध में पृथ्वीराज चौहान को युद्ध में हार का सामना करना पड़ा। तरावड़ी में युद्ध की यादें ताजा करवाने वाले इस ऐतिहासिक किले का नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज है। यह किला पृथ्वीराज चौहान व मोहम्मद गौरी के युद्ध का गवाह है।

    विभाजन के दर्द याद आते ही छलक उठते आंसू

    काटजू नगर किले में रहने वाले कुछ बुद्धिजीवी बताते हैं कि विभाजन से पहले जिला मुल्तान व सुजाबाद तहसील में रहने वाले लोगों की आबादी अब यहां पर कम ही बची है। अब बहुत कम लोग हैं कि जो पाकिस्तान की यादें अच्छी तरह से जानते हैं। तरावड़ी के आसपास कुछ ऐसी धरोहरें भी बची हुई हैं जो अपने अंदर काफी इतिहास समेटे हुए हैं। इसके अलावा इसी ऐतिहासिक किले से जुड़े चार बु्रज भी यहां पर मौजूद थे, जो आज ढहाए जा चुके हैं।

    राष्ट्रीय राजमार्ग पर बनाया जाए स्मारक : पार्षद

    इस बारे में काटजू नगर किले वार्ड नंबर-1 के पार्षद आत्मप्रकाश ने बताया कि बीते समय में मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने अनाज मंडी में आयोजित रैली में तरावड़ी में पृथ्वी राज चौहान के नाम पर स्मारक बनाने की घोषणा की थी। यह स्मारक जल्दी ही राष्ट्रीय राजमार्ग तरावड़ी के पास कहीं भी बनाया जाना चाहिए। ताकि आने वाले वाले लोगो को तरावड़ी की पहचान पता चल सके। उन्होंने बताया कि पृथ्वी राज चौहान की ऐतिहासिक इमारत तरावड़ी कस्बे में मौजूद है। जिसके कारण विश्व भर में तरावड़ी का नाम है।

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