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    पटाखों के प्रदूषण से सेहत का रखें ख्‍याल, जानें कितना खतरनाक, फेफड़ों को हो सकता है गंभीर नुकसान

    By Raj Singh PalEdited By: Anurag Shukla
    Updated: Thu, 20 Oct 2022 08:59 AM (IST)

    पटाखे जलाने से निकलने वाली गैसें मानव स्वास्थ्य के लिए घातक हैं। अस्थमा टीबी रोगियों और गर्भवती को ज्यादा नुकसान होता है। ऐसे में एक बार फिर से लोगों ...और पढ़ें

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    दीवाली में पटाखों के प्रदूषण से सेहत को खतरा।

    पानीपत, जागरण संवाददाता। पानीपत जिला प्रशासन ने दीपावली पर पटाखे फोड़ने (ग्रीन पटाखे छोड़कर) पर प्रतिबंध लगा दिया है।पटाखे-बम से निकलने वाली सल्फर डाई आक्साइड, नाइट्रस आक्साइड, कार्बन मोनो आक्साइड गैस व हेवी मेटल्स सल्फर, शीशा, क्रोमियम, कोबाल्ट, मरकरी मैग्निशियम मानव सेहत के लिए बहुत घातक हैं।

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    ये अपील सुनिए

    दीपों व खुशियों का त्योहार पर पटाखे न चलाना ही स्वास्थ्य और वातावरण के लिए हितकर रहेगा।सिविल अस्पताल के प्रिंसिपल मेडिकल आफिसर डा. संजीव ग्रोवर ने जिलावासियों के नाम संदेश देते हुए यह जानकारी दी। उन्होंने कहा कि पटाखों का धुआं सबसे अधिक अस्थमा, टीबी के रोगियों को नुकसान पहुंचाता है। इनके अलावा हार्ट के रोगियों और गर्भवती को भी धुआं से नुकसान बहुत नुकसान पहुंचता है। डा. ग्रोवर ने कहा कि पटाखों से उन्हें फोड़ने वाले की सेहत को ही नुकसान नहीं पहुंचता, पास के घरों में धुआं पहुंचने से मरीजों व सामान्य लोगों को नुकसान पहुंचता है।

    गर्भस्थ शिशु को नुकसान

    गर्भवती महिलाओं के लिए पटाखों की आवाज, निकलने वाला धुआं और रासायनिक पदार्थ अत्यंत हानिकारक है। पटाखों की आवाज से मां की धड़कन बढ़ेगी, इसका प्रतिकूल असर बच्चे पर पड़ता है। हानिकारक गैस से शरीर में आक्सीजन की कमी हो जाती है, गर्भवती की सांस फूलेगी। इसका भी दुष्प्रभाव गर्भस्थ शिशु पर पड़ता है।

    सल्फर डाइआक्साइड

    इसकी 80 माइक्रोग्राम से अधिक मात्रा स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक होती है। सामान्य तौर पर वाहनों से निकले धुएं के कारण यह 15 से 20 माइक्रोग्राम ही रहता है। दीवाली पर पटाखे जलाने से इस प्रदूषक की मात्रा 60 माइक्रोग्राम तक पहुंचती रही है।

    नाइट्रोजन आक्साइड

    वातावरण में इसकी मात्रा 80 माइक्रोग्राम से अधिक नहीं होनी चाहिए। सामान्यत: यह 20 से 30 माइक्रोग्राम दर्ज किया जाता है। दीपावली यह सीमा 90 से 100 माइक्रोग्राम तक पहुंचती रही है।

    पीएम पार्टिकुलेट मैटर 2.5

    पर्यावरण में ये धूल के कण श्वास के जरिए साथ मानव फेफड़ों में प्रवेश करते हैं। वातावरण में दृश्यता पर भी असर डालते हैं। इसकी सीमा 60 माइक्रोग्राम होती है। दीपावली बीतने पर 150 से 160 दर्ज जाती रही है।

    पीएम-10

    पीएम यानि पार्टिकुलेट मैटर-10 की सीमा 100 है। आम दिनों में पीएम-10 की मात्रा 180 से 200 दर्ज की जाती है। विगत वर्षों में यह मात्रा 500 के पार पहुंचती रही है।

    शोर भी सामान्य से दोगुना

    डा. संजीव ग्रोवर ने बताया कि मानव के कान 60 से 65 डेसीबल शोर को सहन कर सकते हैं। 90 डेसीबल से ज्यादा आवाज कानों के लिए बहुत ज्यादा घातक है। दीपावली पर यह शोर दोगुना हो जाता है।