Shri Krishna Ayurvedic Hospital: देश का एक ऐसा सरकारी अस्पताल, जहां विदेशों से इलाज कराने आ रहे मरीज
आयुर्वेदिक चिकित्सका पद्धति विदेशों में रह रहे देशवासियों को दोबारा भारत में आकर इलाज कराने के लिए खींच रही है। वह भी सरकारी चिकित्सा संस्थान में। श्रीकृष्णा राजकीय आयुर्वेदिक महाविद्यालय अस्पताल का पंचकर्मा विभाग इन दिनों हर दिन एक नई बीमारी को ठीक करने की मिसाल पेश कर रहा है।

कुरुक्षेत्र(विनीश गौड़)। आपने अभी तक देश के लोगों को विदेशों में जाकर महंगा इलाज कराते हुए ही सुना होगा। मगर आयुर्वेदिक चिकित्सका पद्धति विदेशों में रह रहे देशवासियों को दोबारा भारत में आकर इलाज कराने के लिए खींच रही है। वह भी सरकारी चिकित्सा संस्थान में। श्रीकृष्णा राजकीय आयुर्वेदिक महाविद्यालय अस्पताल का पंचकर्मा विभाग इन दिनों हर दिन एक नई बीमारी को ठीक करने की मिसाल पेश कर रहा है। पहले स्जोग्रेन जैसी लाइलाज बीमारी के मरीजों को यहां से आराम मिला तो अब रीढ़ की हड्डी और डिस्क के मरीज यहां ठीक हो रहे हैं।
स्वीडन से इलाज कराने भारत आए
हाल ही में भारतीय मूल होटल प्रबंधन क्षेत्र से जुड़े बसाव सिंह स्वीडन से दैनिक जागरण की खबर पढ़कर यहां अपना इलाज कराने के लिए पहुंचे। स्वीडन में जिस मरीज बसाव सिंह को आपरेशन और जिंदगी भर कुछ खास एक्सरसाइज करने की सलाह चिकित्सकों ने दी थी। वह भारत में पंचकर्मा थैरेपी और कुछ आयुर्वेदिक दवाओं से अपने आपको बिल्कुल ठीक महसूस करने लगा है। हाल ही में वह डा. राजा का आभार जताने के लिए दोबारा स्वीडन से कुरुक्षेत्र पहुंचा। दैनिक जागरण से बातचीत में बसाव सिंह ने कहा कि मुझे पता भी नहीं कि पहले कभी मुझे दर्द हुआ था। उसे ठीक हुआ देख अब स्वीडन के कुछ नागरिक जो डिस्क प्रोलेप्स विद सीवियर कैनाल स्टेनोसिस या इसी से जुड़ी बीमारियों से पीड़ित हैं अब अपना इलाज कराने के लिए भारत आने के प्रयास में जुट गए हैं।
यह हुआ था बसाव सिंह के साथ
बसाव सिंह कैथल के गांव भागल निवासी हैं और पिछले 22 वर्षों से स्वीडन में ही होटल प्रबंधन क्षेत्र से जुड़े हैं। वह बताते हैं कि स्वीडन में बिजनेस के दौरान कोई भी भारी भरकम काम करने की कभी जरूरत नहीं पड़ी। मगर एक दिन उन्होंने कर्मचारी नहीं होने की वजह से खुद ही एक भारी सामान को उठाया तो अचानक उनकी कमर में जोर का खिंचाव हुआ। यह घटना उनके साथ 18 जून 2021 को हुई थी। उनका यह दर्द बढ़ता चला गया। उन्होंने स्वीडन में हर जरूरी टेस्ट कराए और चिकित्सकों से परामर्श भी लिया। मगर चिकित्सकों ने उन्हें बताया कि उन्हें डिस्क प्रोलेप्स विद सीवियर कैनाल स्टेनोसिस की समस्या हुई है।
ऐसे में उन्हें आपरेशन कराना ही पड़ेगा और पूरी जिंदगी कुछ खास तरह की एक्सरसाइज पर निर्भर रहना पड़ेगा। उन्होंने इस बीमारी के लिए आनलाइन सर्च किया तो श्रीकृष्णा राजकीय आयुर्वेदिक महाविद्यालय की दैनिक जागरण की खबर को पढ़ा। साथ ही इससे जुड़ी खबरों को सबसे ज्यादा हिट मिले हुए दिखे। उन्होंने इसके बारे में काफी रिसर्च की और फोन पर भी स्वीडन से पता किया। बसाव सिंह ने बताया कि एक अगस्त को वे कुरुक्षेत्र आ गए। उन्होंने यहां डा. राजा सिंगला से अपना इलाज कराना शुरू किया।
एक बार तो टूट गया था विश्वास
बसाव सिंह बताते हैं कि उन्होंने पूरा एक माह कुरुक्षेत्र में ही रुक कर अपना इलाज डा. राजा सिंगला से करवाया। उनका इलाज शुरू हुआ तो पहले पांच दिन में उनका विश्वास टूट गया। उन्होंने बताया कि दर्द असहनीय होता गया, जिसकी वजह से विश्वास भी डगमगाने लगा। एक बार तो भारत आकर इलाज कराने का खुद का निर्णय गलत भी लगा। मगर डा. राजा सिंगला और उनकी टीम डा. हर्ष ने उनका हौसला बढ़ाया। इसके बाद सातवें दिन से उन्हें कुछ राहत मिलनी शुरू हो गई। उन्होंने बताया कि 15 दिन के इलाज के बाद वह चलने फिरने लगे। वे एक माह बाद वापस स्वीडन चले गए और सितंबर में फिर से चिकित्सक डा. राजा सिंगला और उनकी टीम का आभार जताने के लिए वापस भारत लौटे।
हारसिंगार का केसर युक्त काढ़ा व तेल एवं कषाययुक्त बस्ति दी गई इलाज में : डा. राजा
पंचकर्मा विशेषज्ञ एवं एसोसिएट प्रोफेसर डा. राजा सिंगला ने कहा कि बसाव सिंह उनके पास जब आए थे तो झुकी हुई कमर के साथ आए थे। स्वीडन से मिली चिकित्सकीय रिपोर्ट्स के मुताबिक उन्हें डिस्क प्रोलेप्स विद सीवियर कैनाल स्टेनोसिस एल4एल5एल5एस1 से पीड़ित थे। वे दो मिनट से ज्यादा नहीं खड़ा हो पा रहे थे। वे काफी हतोत्साहित हो चुके थे। उनके मन में आयुर्वेद के प्रति पहले विश्वास दिलवाया गया। स्वीडन से आने से पहले ही उन्होंने फोन पर उनसे बात भी की थी। उन्हें हारसिंगार का केसर युक्त काढ़ा, गुग्गल युक्त कुछ रसौषधियां, नसें खोलने के लिए बला नाम जड़ी बूटी दी गई। कटिबस्ति, पत्रपोटली स्वेदन, तेल युक्त एवं कषाय युक्त बस्ति दी गई।
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