Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    Rajiv Gandhi 77th Birth Anniversary: हत्‍या के 5 दिन पहले चुनाव प्रचार को करनाल आए थे राजीव गांधी, समझते थे हरियाणा के महत्‍व को

    By Anurag ShuklaEdited By:
    Updated: Fri, 20 Aug 2021 03:35 PM (IST)

    पूर्व प्रधानमंत्री स्‍वर्गीय राजीव गांधी हत्‍या से पांच दिन पहले 16 मई 1991 को चुनाव प्रचार के लिए करनाल आए थे। उनका हरियाणा पर फोकस था। पूर्व प्रधानम ...और पढ़ें

    Hero Image
    पूर्व प्रधानमंत्री स्‍वर्गीय राजीव गांधी की जयंती।

    करनाल, [पवन शर्मा]। हरियाणा की राजनीति और दिल्‍ली से सटे होने की वजह से इस क्षेत्र के महत्‍व को पूर्व प्रधानमंत्री स्‍वर्गीय राजीव गांधी अच्‍छी तरह जानते थे। 21 मई 1991 को हत्‍या से पांच दिन पहले 16 मई को राजीव गांधी करनाल आए थे।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    बात 1991 की है। लोकसभा चुनाव की तैयारियां चरम पर थीं। प्रत्याशियों की चयन प्रक्रिया में कांग्रेस आलाकमान दिन-रात सक्रिय था। ऐसे में करनाल के तत्कालीन सांसद स्वर्गीय पंडित चिरंजीलाल शर्मा अस्वस्थ हो गए। उन्हें राम मनोहर लोहिया अस्पताल में दाखिल कराना पड़ा। ऐसे में उनके बेटे कुलदीप शर्मा ने टिकट पाने के प्रयास शुरू कर दिए। परिस्थितियों के मद्देनजर पंडित चिरंजीलाल ने पार्टी के तत्कालीन प्रदेश प्रभारी व महासचिव राजेंद्र कुमार वाजपेयी को पत्र लिखकर अस्वस्थता का हवाला देते हुए अपने बेटे कुलदीप शर्मा को टिकट दिए जाने की सिफारिश की। इस पर कांग्रेस के शीर्षस्थ नेता राजीव गांधी ने सहमति जताते हुए कुलदीप को अपने पास दिल्ली बुला लिया।

    वरिष्‍ठ नेताओं ने प्रयोग से मना किया

    लेकिन इसी बीच हरियाणा के वरिष्ठ कांग्रेस नेता भजनाल और वीरेंद्र सिंह ने अपनी आशंका जताते हुए स्पष्ट किया कि इस बार चुनाव काफी जटिल स्थिति में है। लिहाजा, कोई नया प्रयोग करने के बजाय पंडित चिरंजीलाल को ही चुनाव लड़ाया जाना चाहिए। आखिरकार इस सुझाव का सम्मान करते हुए पंडित चिरंजीलाल को ही टिकट दिया गया। चुनाव अभियान शुरू हुआ तो 16 मई 1991 को प्रचार के लिए राजीव गांधी करनाल आए।

    कुलदीप शर्मा।

    कुलदीप से बोले-दिस टाइम आइ एम सारी

    यहां मंच पर उन्होंने कुलदीप शर्मा को अपने पास बुलाया और उनके कंधे पर हाथ रखकर बोले कि-दिस टाइम आइ एम सारी कुलदीप...। ये ऐसे शब्द थे, जिनकी गूंज हरियाणा के पूर्व विधानसभा अध्यक्ष कुलदीप शर्मा के कानों में आज तक सुनाई देती है। इसके ठीक पांच दिन बाद श्रीपेरम्बदूर में चुनाव प्रचार के दौरान आत्मघाती बम विस्फोट में राजीव की मृत्यु हो गई।

    राजीव जंयती के अवसर पर जागरण से वार्ता में कुलदीप कहते हैं कि यह अनुभव बताता है कि उस दौर में स्वर्गीय राजीव की आंखों में नए नेतृत्व को आगे लाने का सपना सजा था। आगे चलकर ऐसा हुआ भी। सच कहा जाए तो वह सही मायने में भविष्यदृष्टा थे। आर्थिक नीति को बेहतर बनाने, सूचना प्रौद्योगिकी व संचार साधनों में नवीनतम प्रयोग को लेकर भी उनका योगदान अतुलनीय है। मतदाता की उम्र 21 वर्ष से कम करके 18 वर्ष तक के युवाओं को चुनाव में वोट देने का अधिकार राजीव गांधी ने ही दिलवाया तो पंचायती राज की आदर्श परिकल्पना को साकार रूप देने के लिए भी वह निरंतर सक्रिय रहते थे। महिलाओं, दलितों व पिछड़े वर्गों के हित में उन्होंने अपने प्रधानमंत्रित्व काल में दूरगामी कदम उठाए।

    हरियाणा का महत्व समझते थे राजीव

    पूर्व स्पीकर कुलदीप शर्मा बताते हैं कि स्वर्गीय राजीव गांधी ने सही मायने में हरियाणा के महत्व को समझा। चूंकि हरियाणा देश की राजधानी दिल्ली से सटा है। लिहाजा इसके अनुरूप उन्होंने हरियाणा के विकास पर पूरा फोकस किया। मिलेनियम सिटी, साइबर सिटी सरीखी परियोजनाओं को मूर्त रूप देकर उन्होंने इसे बखूबी साबित भी किया। इसी तरह हरियाणा में कृषि क्षेत्र और किसानों के उत्थान के प्रति भी वह बेहद सजग थे। किसानों को फसलों की बेहतर कीमत मिले, यह सुनिश्चित किया। आज इससे ठीक विपरीत हालात नजर आ रहे हैं।

    लोकतंत्र के वास्तविक रक्षक

    वरिष्ठ कांग्रेसी कुलदीप ने बताया कि स्वर्गीय राजीव गांधी लोकतंत्र के वास्तविक रक्षक और पैरोकार थे। उन्हें याद है कि जब वह युवा कार्यकर्ता थे तो हरियाणाा में महम से तत्कालीन मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला उपचुनाव लड़ रहे थे। उनके खिलाफ आनंद सिंह डांगी को चुनाव मैदान में उतारा गया था। इसी दरमियान मदीना गांव में पुलिस ने ज्यादती की, गोलियां चलाईं और इस कांड की गूंज पूरे देश में सुनाई दी। इस पर राजीव भी बेटे राहुल को लेकर हरियाणा आए तो उन्हें बहादुरगढ़ सीमा पर रिसीव करने वालों में वह भी शामिल थे। इसके बाद राजीव ने यहां आकर ऐलान कर दिया कि यह प्रकरण इतना गंभीर है कि जब तक इंसाफ नहीं होगा, वह संसद नहीं चलने देंगे। बढ़ते दबाव के चलते आखिरकार चौटाला को हटना पड़ा। इससे साफ है कि लोकतंत्र की मूल भावना से खिलवाड़ करने वालों के वह सख्त खिलाफ था। आज ऐसा आदर्श व्यक्तित्व मिलना बहुत कठिन है।