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Ambala News: निजी स्कूल संचालक कर रहे मनमानी, हिंदी बोलने पर बच्चों से वसूला जा रहा जुर्माना

अंबाला निजी स्कूलों में राष्ट्रभाषा हिंदी को बोलने की मनाहीं है। इतना ही नहीं हिंदी बोले जाने पर जुर्माना तक वसूला जाता है। वहीं दूसरी ओर यह स्कूल शिक्षा के अधिकार अधिनियम 2009 ( आरटीइ एक्ट 2009) के उस नियम की भी सरेआम अवहेलना कर रहे है।

By Naveen DalalEdited By: Published: Tue, 14 Sep 2021 06:07 AM (IST)Updated: Tue, 14 Sep 2021 07:09 AM (IST)
Ambala News: निजी स्कूल संचालक कर रहे मनमानी, हिंदी बोलने पर बच्चों से वसूला जा रहा जुर्माना
अंबाला में चल रही निजी स्कूलों की मनमानी।

अंबाला, जागरण संवाददाता। भले ही हिंदुस्तान को विश्व गुरु कहा जाता हो लेकिन विश्व गुरु कहे जाने वाले इस देश की राजभाषा के साथ इसके अपने ही लोग परायों जैसा व्यवहार कर रहे है। देश की राजभाषा कही जाने वाली हिंदी अपने ही देश में सुरक्षित नहीं रह पा रही है । यहां तक कि कई लोग राष्ट्रीय भाषा को बोलने में शर्म तक महसूस करते हैं । बदलते परिवेश में शिक्षण संस्थानों में तो अपनी मातृभाषा हिंदी को बढ़ावा देने की बजाय विदेशी भाषा को अधिक अहमियत दी जा रही है।

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यहां तक कि कई नामी निजी स्कूलों में राष्ट्रभाषा हिंदी को बोलने की मनाहीं है। इतना ही नहीं हिंदी बोले जाने पर जुर्माना तक वसूला जाता है जोकि हिंदी भाषा पर अत्याचार जैसा है। वहीं दूसरी ओर यह स्कूल शिक्षा के अधिकार अधिनियम 2009 ( आरटीइ एक्ट 2009) के उस नियम की भी सरेआम अवहेलना कर रहे है जिसमें यह कहा गया है बच्चों की पारंभिक शिक्षा उसकी मातृभाषा में ही हो। शिक्षा को संचालित करने वाली संस्था एनसीईआरटी भी बच्चे की मातृभाषा में ही शिक्षा देने की सिफारिश करती है लेकिन उसके बावजूद भी यह सब चीजें धरातल पर दिखाई नहीं देती।

हिंदी हमारी पहचान

डा नेहा बठला ने बताया कि किसी भी देश की मातृभाषा उस देश की पहचान होती है लेकिन भारत जैसे विश्व गुरू कहे जाने वाले अपने ही देश में सरेआम उसकी राष्ट्रभाषा को अपमान होता है। हिंदी को बोलने व पढऩे पर असभ्य होने का प्रतीक समझा जाना लगा है। हमें न केवल हिंदी भाषा को बचाना होगा बल्कि हिंदी को बढ़ावा देने के लिए प्रयास करना होगा।

राष्ट्रभाषा बोलने पर जुर्माना लगाना शर्मनाक

भाषा विशेषज्ञ डा अन्विति सिंह ने बताया कि शिक्षण संस्थानों में हिंदी भाषा के बोले जाने पर प्रतिबंध लगाया जाना गलत है। इसका सीधा मतलब यह निकलता है कि स्वयं सरकार ही अपनी मातृभाषा हिंदी को बोलने नहीं देना चाहती अगर सरकार इस ओर ध्यान देती तो शिक्षण संस्थानों के ऐसे गलत नियमों पर कभी का प्रतिबंध लगा चुकी होती। 

निजी संस्थान कर रहे मातृभाषा का सरेआम अपमान

कुलविंद्र कंबोज ने बताया कि शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 (आरटीइ) व एनसीईआरटी भी प्रारंभिक कक्षाओं में मातृभाषा के माध्यम से शिक्षण देने की बात करती है तो वहीं दूसरी ओर देश के अधिकतर निजी शिक्षण संस्थान नियमों को ताक पर रखकर बच्चों को उनकी मातृभाषा में शिक्षा न देकर विदेशी भाषा में शिक्षा देकर अपनी मातृभाषा के गौरव को स्वयं ही नष्ट करने पर तुले हुए है।


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