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    Nirankari Sant Samagam: यमुनानगर में निरंकारी संत समागम की भव्‍य शुरुआत, देखें तस्‍वीरें

    By Anurag ShuklaEdited By:
    Updated: Wed, 08 Jun 2022 09:35 PM (IST)

    यमुनानगर के तेजली खेल स्‍टेडियम में संत निरंकारी समागम शुरू हुआ। माता सुदीक्षा समागम में पहुंचीं। वहीं हजारों की संख्‍या में श्रद्धालु की भीड़ संत निरंकारी समागम में मौजूद है। समागम में सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए हैं।

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    तेजली खेल स्‍टेडियम में संत समागम में मौजूद माता सुदीक्षा।

    यमुनानगर, जागरण संवाददाता। यमुनानगर में बुधवार शाम को संत निरंकारी समागम शुरू हुआ। यमुनानगर के तेजली खेल स्‍टेडियम में संत निरंकारी समागम में हजारों की संख्‍या में श्रद्धालु सुबह से ही पहुंचने लगे थे। देर शाम तक पंडाल में पहुंचने के लिए कतार लगी रही। 

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    तेजली खेल स्टेडियम में आठ जून को शाम छह से नौ बजे निरंकारी संत समागम हुआ। साध संगत व सेवादल के भाई-बहनों ने सुरक्षा व्‍यवस्‍था के साथ श्रद्धालुओं के लिए विशेष व्‍यवस्‍था की। करीब 50 श्रद्धालु समागम में पहुंचे।वहीं श्रद्धालुओं के लिए लंगर की व्यवस्था की गई। निरंकारी सतगुरु माता सुदीक्षा महाराज पंडाल में पहुंचीं। 

    माता सुदीक्षा ने कहा, मनुष्य को सांसारिक मेले में न उलझकर परमात्मा के साथ सीधा नाता जोड़े

    समागम में मुख्य माता सुदीक्षा महाराज पहुंची। उन्होंने प्रवचन करते हुए कहा कि दूर दराज से आई संगत सद्गुरु के दरबार में आई है। महापुरुषों के प्रवचन सुनने से इंसान को शक्ति मिलती है। सत्संग में आने से इंसान को अपनी कमियों का पता चलता है। यहां आकर इंसान को पता चलता है कि वह कहां खड़ा है। मन और तन में अच्छाई हो, तो कर्म भी अच्छा चलता है। शरीर भी तंदरूस्त रहता है। जिस तरह से अनाज भोजनरूपी खुराक है। उसी तरह से प्रवचन भी मानव के लिए अच्छाई की खुराक है। जिस तरह से जानवर कचरे के ढेर से साफ खाना तलाश लेता है। इसी तरह से मानव को भी समाज में फैले कचरे से अच्छाई तलाश लेनी चाहिए।

    उन्होंने कहा कि हमें संसार में इस तरह से रहना चाहिए। जैसे घोड़ा सीधा चलता है। उसकी आंखों की तरफ पट्टी होती है। इसी तरह से अच्छाई की ओर हमें भी सीधा चलते रहना चाहिए। संसार में हर मानव का सत्संग सुनने व सेवा करने का मन करता है, लेेकिन संसार में फैली भौतिक आकर्षण की वस्तुएं इंसान को अपनी ओर आकर्षित करती हैं। जिस कारण वह सत्संग व सेवा से दूर होता चला जाता है। उदाहरण के तौर पर एक इंसान अपने उद्देश्य के लिए किसी मंजिल पर चला, लेकिन रास्ते में मेला लगा हुआ था।

    इंसान के मन में आया कि वह उस मेले में जाकर भौतिक वस्तुओ का आनंद ले। वह पूरा दिन मेले में ही तरह-तरह के आनंद लेता रहा और शाम को ऐसे ही घर आ गया। इस प्रकार हमें संसार में फैली आकर्षण की वस्तुओं से बचना है और सद्गुरु के प्रवचनों को अपने जीवन में धारण करना है। हम यह बात युगों से सुनते आ रहे हैं कि मनुष्य की योनि सबसे श्रेष्ठ है। यह सौभाग्य की बात है, लेकिन इस शरीर को केवल भोग के लिए न रखें। इसे सद्गुुरु के ध्यान में लगाएं, क्योंकि मनुष्य योनि ही ऐसी है। जो परमात्मा को महसूस करती है। मनुष्य को अपना जन्म सद्गगुुरु की भक्ति में लगाना चाहिए और सांसारिक मेले में न उलझकर परमात्मा के साथ सीधा नाता जोड़ लेना चाहिए।

    संगत के लिए यह रही व्यवस्था 

    समागम में साध संगत की सहूलियत के लिए काफी व्यवस्थाएं की गई थी। यहां पर महिलाओं व पुरुषों के बैठने की अलग-अलग व्यवस्था की गई। जिस समय मुख्य गेट पर जैसे ही माता सुदीक्षा महाराज का काफिला पहुंचा। चारों तरफ सेवादारों ने उन्हें घेर लिया। संगत माता की ओर पुष्प वर्षा कर रही थी। इसके बाद माता समागम मंच पर गईं। समागम में बैठे श्रद्धालुओं की दो कतार लगवाई गई। वह सभी मंच के पास जाकर माता को प्रणाम करते हुए वापस अपनी जगह पर बैठते रहे। तेजली रोड के बाहर एक भव्य प्रवेश द्वार बनाया गया। जो संगत के आकर्षण का केंद्र रहा।

    बस स्टैंड व रेलवे स्टेशन से रही निशुल्क गाड़ियों की व्यवस्था 

    गर्मी को देखते हुए संगत को समागम स्थल तक पहुंचने में परेशानी न हो। उसके लिए विशेष निशुल्क गाड़ियों का प्रबंध किया गया था। जो साध संगत को बस स्टैंड व रेलवे स्टेशन से समागम स्थल तक पंहुचाने के लिए लगी रही। सुबह से लेकर रात तक गाड़ियों की सेवा जारी रही। वहीं, शहर में जाम जैसी स्थिति न हो। ऐसे में ट्रैफिक व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए निरंकारी सेवादल के जवान शहर के विभिन्न स्थानों पर खड़े रहे।