भतीजी ने समाज से रिश्ता तोड़ा, कुश्ती से नाता जोड़ा, चाचा ने इस तरह बनाया चैंपियन
कॉमनवेल्थ में सिल्वर मेडल जीतने वाली अर्पणा ने जब कुश्ती में उतरने का फैसला लिया तो बिश्नोई समाज ने विरोध किया। चाचा कोच कृपा शंकर बिश्नोई ने छत पर ही अखाड़ा बना डाला।
पानीपत [विजय गाहल्याण]। मध्यप्रदेश के खंडवा जिले के सोनखेड़ी गांव की अर्पणा अपने चाचा कृपा शंकर बिश्नोई की तरह अंतरराष्ट्रीय पहलवान बनना चाहती थी। अखाड़े का रुख किया तो बिश्नोई समाज ने विरोध किया। परिजनों पर भी तंज कसा कि बेटी कुश्ती करेगी तो समाज की बदनामी होगी। चाचा ने साथ दिया और घर की छत पर ही अखाड़ा खोलकर उसे अभ्यास कराने लगे। अर्पणा ने कॉमनवेल्थ गेम्स में रजत जीता और रेलवे में टीटीई की नौकरी पा ली। ससुराल वालों ने कुश्ती और नौकरी छोडऩे की शर्त रखी तो अर्पणा ने रिश्ता ही तोड़ लिया। अब पटियाला से कुश्ती कोच का डिप्लोमा कर रही है।
अर्जुन अवॉर्डी व रेलवे के कुश्ती कोच कृपा शंकर बिश्नोई पानीपत में एक करोड़ी दंगल टीम के साथ आए थे। उसी दौरान उन्होंने दैनिक जागरण से खास बातचीत में उन्होंने बताया कि भतीजी को पहलवान बनाने के लिए परिवार ने एकजुट होकर साथ दिया। समाज ने बेटियों के अखाड़े में उतरने पर पाबंदी लगा रखी है, लेकिन उनका प्रयास है कि बेटियां कुश्ती करें और देश के लिए पदक जीतें।
हरियाणा से लें सीख, बेटियों को अखाड़े में भेजें
कृपा शंकर ने कहा कि लिंग अनुपात को लेकर हरियाणा की तरफ अंगुली उठती है, लेकिन यह प्रदेश कुश्ती का रसिया कहा जाता है। यहां की बेटियां कुश्ती में सारे देश में अग्रिम हैं। आर्थिक रूप से कमजोर अभिभावक बेटियों को अखाड़े में भेज रहे हैं और वे पदक भी जीत रही हैं। उनके समाज को भी हरियाणा से सीख लेनी चाहिये।
मेले में करवाते हैं लड़कियों की कुश्ती
बिश्नोई ने बताया कि राजस्थान के जिला नागौर में गुरु जंभेश्वर मुक्ति धाम मुकाम पर हर साल मार्च में मेला लगता है। इसमें कुश्ती करवाई जाती है। लड़कियों के भी मुकाबले होते हैं, ताकि समाज की मानसिकता बदले। अभिभावक बेटियों को अखाड़े में भेजें।