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    न प्रेम निवास, न शांति निवास, कुरुक्षेत्र के इस घर का नाम है पर्यावरण निवास...

    By Umesh KdhyaniEdited By:
    Updated: Sun, 21 Feb 2021 09:23 AM (IST)

    न्यू शांति नगर स्थित इस घर में बिल्कुल नाम के मुताबिक ही काम हो रहा है। यहां जीरो प्रतिशत कूड़ा प्रोड्यूज होता है। गली में पड़े जूते टॉयलेट सीट नारियल के खोल थर्माकोल या प्लास्टिक बाक्स में किचन गार्डनिंग कर रहे हैं।

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    घर के बाहर बनी छोटी सी क्यारी से ही पर्यावरण संरक्षण का संदेश शुरू हो जाता है।

    जेएनएन, कुरुक्षेत्र [विनीश गौड़]। प्रेम कुंज, प्रेम निवास और शांति निवास। लोग अपने घरों के नाम इन पर रखे मिलेंगे और लोग प्रभावित होते हैं या वह सबसे ज्यादा प्रेम करते हैं। ज्यादातर लोग अपने माता-पिता या भगवान के नाम पर अपने घर का नामकरण करते हैं। कुरुक्षेत्र में एक परिवार ने अपने घर का नाम ईको हाउस रखा है। यानी पर्यावरण घर। घर का जैसा नाम है, वैसा काम भी है। 

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    न्यू शांति नगर स्थित इस घर में बिल्कुल नाम के मुताबिक ही काम हो रहा है। घर के बाहर बनी छोटी सी क्यारी से ही पर्यावरण संरक्षण का संदेश शुरू हो जाता है। जहां बेकार टूटे फूटे थर्माकोल के डिब्बे, टॉयलेट सीट में पेड़ पौधे लगा रखे हैं। मुख्य द्वार से लेकर छत तक पर जूते, प्लास्टिक के डिब्बे, थर्माकोल शीट यहां तक कि वॉशबेसिन तक में पौधे लगे नजर आएंगे। घर का छोटे से लेकर बड़ा हर सदस्य पेड़ पौधों को अपने परिवार के सदस्य जितना प्रेम करता है। यही वजह रही कि नरकातारी में राजकीय प्राथमिक पाठशाला की शिक्षिका एवं ग्रीन अर्थ संस्था की सदस्य मोनिका भारद्वाज और उनके पति पर्यावरणविद् डा. नरेश भारद्वाज ने अपने घर का नाम ईको हाउस रखा।

    जीरो प्रतिशत कूड़ा होता है प्रोड्यूज
    इस घर से जीरो प्रतिशत कूड़ा प्रोड्यूज होता है। यानी ऐसा घर जहां से कचरा निकलता ही नहीं, बल्कि दूसरे के घरों का कचरा भी यहां पर पर्यावरण संरक्षण के काम आ रहा है। स्वच्छता सर्वेक्षण में थानेसर नगर परिषद को भी इसी तरह के लोगों को आइडियल  
    दूसरे घरों का कचरा भी खप रहा यहां 
    शिक्षिका मोनिका भारद्वाज एवं ग्रीन अर्थ संस्था के कार्यकारी सदस्य एवं पर्यावरणविद् डा. नरेश भारद्वाज का न्यू शांतिनगर स्थित ईको हाउस जीरो प्रतिशत कूड़ा प्रोड्यूस करने वाला घर है। जिले ही नहीं प्रदेशभर में शायद ही कोई ऐसा घर हो जहां से कचरा निकलने के बजाय बाहर का कचरा भी खप रहा होगा। इस घर में रसोई से निकलने वाले कचरे से भी पेड़-पौधों के लिए खाद बनाई जा रही है। वहीं, टूटी फूटी प्लास्टिक में पौधे तैयार करके पर्यावरण संरक्षण का संदेश दिया जा रहा है। घर के बाहर का बगीचा भी ईको हाउस की मिसाल दे रहा है। यहां टॉयलेट की सीट में कैक्टस और अनार का पौधा व प्लास्टिक के कट्टे में सजावटी पेड़ लगे हैं।
    बाहर से घर उठा लाते हैं कचरा
    लोग प्लास्टिक के डिब्बे, थर्मोकोल, जूते, टॉयलेट सीट, वॉशबेसिन बाहर फेंकते हैं और डा. नरेश भारद्वाज बाहर देख उन्हें उठाकर घर ले आते हैं। ईको हाउस में बेकार कुछ भी नहीं है। डा. भारद्वाज व उनकी पत्नी मोनिका थर्मोकोल में रसोई गार्डनिंग कर रहे हैं, जिसमें धनिया, मेथी, पुदीना उगा रहे हैं। वहीं नारियल के फेंके गए खोल जिनमें एकत्रित पानी डेंगू मच्छर के पनपने का कारण बन सकता है उसमें गेंदे के पौधे तैयार हो रहे हैं। दही के कप, डिब्बों में सजावटी पौधे तैयार किए जा रहे हैं। 
    भारद्वाज दंपती का यह है मानना
    मोनिका भारद्वाज बताती हैं कि घर से निकलने वाला कोई भी सामान कचरा नहीं होता। उसका इस्तेमाल किया जा सकता है। सड़क, गली या कहीं भी पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली चीज मिलती है तो वे उठाकर घर ले आते हैं। उसमें सजावटी पौधे या किचन गार्डनिंग की जाती है। ए्क बार तो उनके पति डा. नरेश भारद्वाज ने किसी के घर के बाहर टॉयलेट सीट को देखा तो वे उसे भी घर उठा लाए। अब उसमें एलोविरा और दूसरे सजावटी पौधे लगाए हुए हैं। 

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