Murrah Buffalo: जींद के किसान के पास एशिया की सबसे बड़ी मुर्रा भैंसों की डेयरी, देश-विदेश में दिलाई ख्याति
जींद के बलजीत रेढू ने मुर्राह का दूध बढ़ाने के लिए अमेरिका इंग्लैंड ब्राजील सहित यूरोप के कई विकसित देशों का दौरा किया। वहां की अच्छी खूबियों को अपनाया। इस दौरान यह देखा कि यूरोप के पशु भारत की जलवायु में वहां जितना उत्पादन नहीं कर सकते।

कर्मपाल गिल, जींद: मु्र्रा भैंस को हरियाणा का काला सोना कहा जाता है। गांवों में कहते हैं जिसके घर काली, उसके घर दीवाली। इसीलिए मु्र्रा को किसान का आधी रात का गहना भी कहते हैं। यानि किसान की सबसे भरोसेमंद साथी है मु्र्रा भैंस, जो हर सुख-दुख में साथ देती है। प्रकृति की मार के आगे जब खेती धोखा दे जाती है, तब मु्र्रा ही किसान की मददगार बनती है। मु्र्रा ने जींद के गांव बोहतवाला के प्रगतिशील किसान बलजीत रेढू की किस्मत ही बदल दी है। गांव दालमवाला में उनकी डेयरी में उच्च क्वालिटी की करीब 900 मु्र्रा भैंस हैं, जो एशिया का सबसे बड़ा मु्र्रा फार्म है। मु्र्रा ने रेढू को देश-विदेश में प्रसिद्धि दिलाई और सफलता के उच्च पायदान पर पहुंचाया। हरियाणा दिवस पर दैनिक जागरण ने बलजीत रेढू से विस्तार से बातचीत की। उनकी सफलता की कहानी उन्हीं के शब्दों में पढ़ते हैं।
मु्र्रा की सेलेक्शन व ग्रेडिंग से दूध उत्पादन व सालाना ब्यांत पर फोकस
बात तेरह साल पहले की है। बड़े भाई के साथ गांव में बैठा हुआ था। सामने मु्र्रा भैंस बंधी हुई थी। मु्र्रा पर बात होने लगी और अचानक ही फैसला ले लिया कि अब मु्र्रा की नस्ल सुधारने पर काम करेंगे। गांव दालमवाला के खेतों में करीब छह एकड़ में बड़ा आइसोलेशन डेयरी फार्म बनाया। पूरे हरियाणा से अच्छी मु्र्रा नस्ल की भैंस इकट्ठी की। करीब एक हजार भैंसों के साथ डेयरी शुरू की और उनका सेलेक्शन एंड ग्रेडिंग पर काम शुरू किया। बुल यानि झोटे की लगातार टेस्टिंग करके अच्छे बुल रखे।
हर साल कम दूध देने वाली दस से 15 प्रतिशत मु्र्रा बेचते रहे और उत्तम मु्र्रा को ही रखा। अब हमारे पास 100 फीसदी मु्र्रा का सबसे उत्तम ब्रीड है। सभी भैंसों का आगे-पीछे की दो से चार पीढ़ी का पूरा रिकार्ड है। यानि मां कितना दूध देती थी, अब बेटी कितना देती है। बाप कैसा था। शुरू से तीन चीजों पर फोकस रखा, जिनमें मध्यम साइज की मु्र्रा तैयार करना, ज्यादा दूध का उत्पादन और सालाना ब्यांत। अब डेयरी में सभी भैंस 14 महीने में दोबारा बच्चा पैदा कर देती हैं। सालाना औसत 8 प्रतिशत फैट है और 40 प्लस प्रोटीन है। दूध में यही चीज देखी जाती है।
मु्र्रा के फीड कन्वर्शन रेशो यानि एफसीआर पर काम किया, जिस पर कोई बात नहीं करता। आजकल कहते हैं कि यह 12 करोड़ का झोटा है, उसे बादाम, पतासे, सेब खिलाते हैं। यह सब ढकोसला है। पशु को इन चीजों की जरूरत नहीं होती। उसे पौष्टिक चारा देना होता है। ऐसा नहीं है कि मु्र्रा काे खिला-पिलाकर बड़े साइज का बना दिया तो वह दूध भी ज्यादा देगी। ऐसा भी देखा कि 20 किलो चारा खाने वाली कम दूध देती है और 12 किलो चारा खाने वाली ज्यादा दूध देती है। यानि इस पर काम किया कि पशु कितना खाकर क्या देता है। मध्यम साइज का पशु जल्द बूढ़ा नहीं होता और जल्दी बीमारी भी नहीं होता। मु्र्रा की खासियत ही यही है कि वह जल्दी बीमार नहीं होती। फूल दिखाने और सतमासा बच्चा फेंकने की समस्या को दूर किया और अच्छे गुणों से भरपूर मु्र्रा की बढ़िया लाइन तैयार कर दी है।
शुरू के दस साल यह था टारगेट
बलजीत रेढू बताते हैं कि मु्र्रा का दूध बढ़ाने के लिए अमेरिका, इंग्लैंड, ब्राजील सहित यूरोप के कई विकसित देशों का दौरा किया। वहां की अच्छी खूबियों को अपनाया। इस दौरान यह देखा कि यूरोप के पशु भारत की जलवायु में वहां जितना उत्पादन नहीं कर सकते। इसीलिए देश में एचएफ की बड़ी डेयरियां कामयाब नहीं हुई। हमारा शुरू के दस साल का लक्ष्य कम खर्च में रखरखाव और थाेड़े चारे में ज्यादा दूध देने वाली मु्र्रा तैयार करना था। इसमें सफल भी रहे। सिर्फ कटड़ी पैदा करने के लिए एंब्रियो पर काम चल रहा है।
अगले दस साल में अगले थनों में दूध बढ़ाने का लक्ष्य
दालमवाला डेयरी में भैंसों के साथ लाड करते हुए बलजीत रेढू कहते हैं कि अगले दस साल तक वे मु्र्रा के अगले थनों के दूध बढ़ाने और फैट बढ़ाने पर काम करेंगे। अभी अगले थनों में डेढ़ से दो किलो दूध रहता है और सारा दूध पिछले थनों में रहता है। इस पर उनका काम चल रहा है और अब कई ऐसी मु्र्रा हो गई हैं कि जिनका अगले थनों का दूध बढ़ रहा है। ऐसी भैंस को नया दूध करने वाले बुल की अलग लिस्ट बन रही है। ऐसे बुल के साथ दूसरी भैंस की एआई करवाते हैं।
सुझाव: किसान यह करें तो बदल जाएगी जिंदगी
पशुपालकों के लिए अहम सुझाव देते हुए बलजीत रेढू कहते हैं कि भैंस को अच्छे बुल से नए दूध करवाना चाहिए। हमारे किसान भाई 15 किलो दूध की भैंस को बुग्गी वाले झोटे से नए दूध करवा देते हैं। जब उसकी कटड़ी पैदा होती है तो पांच से सात किलो दूध देती है। किसान इस पर जागरूक हो गया तो उसकी जिंदगी बदल जाएगी। उन्होंने अच्छी नस्ल की मु्र्रा के साथ झोटे भी तैयार किए हैं। उनकी मु्र्रा का औसत दूध 20 से 21 किलो है। पूरे ब्यांत में 3800 से 4000 किलो दूध देती है।
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