भगवान नरसिंह को शांत करने को शिव ने रखा था पक्षीराज आकाश भैरव का अवतार, कुरुक्षेत्र में स्थित है मंदिर
कुरुक्षेत्र में श्री दक्षिण काली पीठ है। यहां पर पक्षीराज आकाश भैरव की जयंती मनाई जा रही है। भगवान नरसिंह को शांत करने के लिए भगवान शिव ने पक्षीराज आकाश भैरव का अवतार लिया था। इसके बाद उनका उग्र रूप शांत हुआ था। पढ़े ये खबर।

पिहोवा (कुरुक्षेत्र), [तूषार सैनी]। कुरुक्षेत्र यानी धर्मनगरी। धर्मनगरी में आस्था से जुड़े कई बातें सामने आती हैं। इन दिनों यहां पर पक्षीराज आकाश भैरव की जयंती मनाने की तैयारी चल रही है। आइए जानते हैं क्या मान्यता है पक्षीराज आकाश भैरव की।
हिरण्यकश्प के वध के समय उग्र भगवान नरसिंह काे शांत करने के लिए पक्षीराज आकाश भैरव ने अवतार लिया था। यह भगवान शिव का उग्र रूप भी हैं। माडल टाउन स्थित श्री दक्षिण काली पीठ में पक्षीराज आकाश भैरव की जयंती और पीठ स्थापना दिवस शनिवार को धूमधाम से मनाई जाएगी।

महंत बंसीपुरी महाराज ने बताया कि श्री दक्षिण काली पीठ माडल टाउन पिहोवा में भगवान आकाश भैरव पक्षीराज के प्रकटोत्सव एवं स्थापना दिवस पर 14 मई शनिवार को रात्रि में महाभिषेक व 15 मई रविवार को सुबह अवतरण पूजा हवन किया जाएगा। इसके बाद 12 बजे भंडारा किया जाएगा।
उन्होंने बताया कि भगवान आकाश भैरव पक्षीराज श्री शरगेश्वर भगवान शिव का उग्र, प्रचंड व गुप्त रूप है। शत्रु, ग्रह व रोग बाधा, अकाल मृत्यु निवार, प्रेत व तंत्र बाधा निवारण के लिए उच्चकोटि के देवता के रूप में पूजन किया जाता है। इनके मंदिर व विग्रह बहुत कम होने के कारण लोग शिव के इस अत्यंत गुप्त रूप को बहुत कम जानते हैं। दस महाविद्या साधना में उनकी साधना का अपना एक महत्व है।
पुराणों के अनुसार नरसिंह अवतार के समय भगवान नरसिंह ने हिरण्यकशिपु का वध करने पर भगवान नरसिंह की उग्रता शांत नहीं हो पा रही थी। तब देवताओं की प्रार्थना पर भगवान महादेव ने एक विचित्र पक्षी का रूप धारण किया। जिसका मुख उल्लू की तरह, क्षेत्र में अग्नि सूर्य चंद्र और धड़ मनुष्य की तरह था। वह विशेष आयुध लिए चार हाथ, जब वज्र के समान तीखे, दो पंख जिनमें काली व दुर्गा का बास लचा हृदय में जतरानल, पेट में बडवानल अग्नि विराजमान है। कटि प्रदेश से बाद का अंग हिरण की तरह तथा पूंछ सिंह के समान लंबी, उरु प्रदेश में व्याधि व मृत्यु को धारण करने के कारण उन्हें शरभ, पक्षीराज, आकाशगैरव व शालु नामों से जाना जाता है।
उन्होंने शरत्रपक्षी रूपधारी शिव ने भगवान नरसिंह को चोंच मार मूर्च्छित कर दिया, अपनी पूंछ से उनके दोनों पैर बांध दिए, अपने दोनों पिछले पैर नरसिंह के पैरों पर रखे और अपने हाथों से नरसिंह के हाथों को पकड़कर आकाश में उड़कर भगवान नरसिंह के उग्र स्वरूप से कई ज्यादा उग्र रूप धारण किया। जिससे भगवान नरसिंह शांत हुए और उन्होंने शरमरूपी शिव की स्तुति की और अपने उग्ररूप का विसर्जन किया। शिव ने अपने शस्त्र रूप में भगवान नरसिंह के चर्म को प्रिय मानकर व्याधाम्बर चारण किया। भगवान शरगेश्वर अपने भक्तों को कष्ट देने वाले शत्रुओं और समस्त बाधाओं का नाश करते हैं।

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