ईरान-इजरायल युद्ध का पड़ा बुरा असर, हरियाणा के बासमती निर्यातकों को भारी नुकसान; 2 हजार करोड़ की पेमेंट रुकी
ईरान-इजरायल युद्ध के चलते भारतीय निर्यातकों के लगभग 2000 करोड़ रुपये ईरान में रुक गए हैं जिससे बासमती चावल का निर्यात प्रभावित हुआ है। लगभग 2.50 लाख मीट्रिक टन चावल बंदरगाह पर शिपिंग के इंतजार में है और घरेलू बाजार में बासमती की कीमतों में गिरावट आई है। निर्यातक स्थिति सामान्य होने का इंतजार कर रहे हैं जिससे किसानों पर असर पड़ सकता है।

प्रदीप शर्मा, पानीपत। ईरान-इजरायल युद्ध का प्रभाव भारतीय बाजार पर भी दिखना शुरू हो गया है। भारतीय निर्यातकों की करीब दो हजार करोड़ की पेमेंट ईरान में रुक गई है। अगले ऑर्डर पर भी ब्रेक लगे हुए हैं। युद्ध के कारण ईरान के व्यापारियों ने पेमेंट को फिलहाल होल्ड पर डाल दिया है।
यही नहीं आगेे के निर्यात को लेकर भी असमंजस की स्थिति बनी हुई है। कोई ठोस निर्णय नहीं लिए जाने के कारण भारतीय निर्यातकों का करीब 2.50 लाख मीट्रिक टन बासमती चावल सिपिंग के इंतजार में बंदरगाह पर पड़ा है। भारतीय निर्यातकों के लिए स्थिति ऐसी बन गई है कि वह इस चावल को वापस स्टाक में भी नहीं रख सकते, अभी निर्यातक वेट एंड वाच की पालिसी पर ही चल रहे हैं।
बंदरगाह पर अटके चावल को किसी दूसरे देश में विकल्प के तौर पर निर्यात करना भी आसान काम नहीं है। क्योंकि ईरान में भारतीय चावल का निर्यात करीब 9 लाख मीट्रिक टन है, इतनी बड़ा गैप अचानक भरना लगभग असंभव है। ऐसे में व्यापारी स्थिति सामान्य होने के इंतजार में हैं।
डिमांड घटी तो सस्ता हुआ बासमती
ईरान में हमारे चावल पर ब्रेक लगने के कारण भारतीय घरेलू बाजार में बासमती चावल की कीमत में 6 से 7 रुपये प्रति किलोग्राम तक की गिरावट देखी गई है। यदि स्थिति सामान्य होने में समय लगता है तो संभवत ओर भी कीमतें नीचे आ सकती हैं।
सात राज्यों बासमती उत्पादन, सर्वाधिक हिस्सेदारी हरियाणा की
देशभर में बासमती उत्पादन करने वाले सात राज्यों के 95 जिले हैं। हरियाणा, पंजाब, दिल्ली, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल व जम्मू-कश्मीर में बासमती धान के अनुकूल वातावरण है। प्रदेश में करीब 7.8 लाख हेक्टेयर में बासमती की खेती होती है। हिस्सेदारी की बात की जाए तो सर्वाधिक हरियाणा की है, वित्तीय वर्ष 2024-25 में हुए जबकि 5.3 मिलियन टन निर्यात में 1.86 मिलियन टन की हिस्सेदारी अकेले हरियाणा से थी।
अंतरराष्ट्रीय बाजार में बासमती की डिमांड कम होने से घरेलू कीमतें कम रहेंगी। निर्यातकों स्थिति सामान्य होने का इंतजार करेंगे, जिससे उनके पास स्टाक बढ़ेगा। आगामी धान के सीजन में इसकी मार किसानों पर पड़ सकती है, मांग कम होने से निर्यात पर असर पड़ेगा, जिससे धान के मूल्य में भी गिरावट आ सकती है।
राइस एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के प्रदेशाध्यक्ष सुशील जैन बताते हैं कि निर्यात के लिए विकल्प तलाशा जाए, इसकी संभावना बहुत कम है, क्योंकि ईरान जितना बड़ा खरीददार मिलना संभव नहीं है। सरकार की ओर से कोई रास्ता निकला जाए तो संभव है राइस इंडस्ट्री से संकट के बादल छंट सकते हैं। अभी वेट एंड वाच की स्थिति में ही हैं।

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