भारतीय महिला हॉकी कप्तान रानी के लिए 2020 स्वर्णिम, अब खेल रत्न की सिफारिश
महिला हॉकी टीम की कप्तान रानी रामपाल के लिए 2020 स्वर्णिम भरा रहा। जनवरी में वर्ल्ड गेम्स एथलीट ऑफ द ईयर के बाद अबखेल रत्न के लिए सिफारिश हुई है।
पानीपत/कुरुक्षेत्र, [जतिंद्र सिंह चुघ]। बेशक कोरोना के कारण वर्ष 2020 हर किसी के लिए नकारात्मक अनुभव से भरा हो लेकिन भारतीय महिला हॉकी टीम की कप्तान रानी रामपाल के लिए इस वर्ष को स्वर्णिम कहा जाए तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। रानी रामपाल ने इस वर्ष जहां 30 जनवरी 2020 को प्रतिष्ठित अवार्ड वल्र्ड गेम्स एथलीट ऑफ द ईयर-2019 को अपने नाम किया था। इसी वर्ष रानी को देश के चौथे सबसे बड़े नागरिक पुरस्कार पद्मश्री के लिए चुना गया था। वहीं कप्तान रानी रामपाल के नाम की सिफारिश अब राजीव गांधी खेल रत्न अवार्ड के लिए की गई है।
रानी रामपाल के नाम की सिफारिश खेल रत्न के लिए किए जाने से खेल जगत में खुशी है और रानी के परिजन भी बेहद खुश है। वहीं अगर बात की जाए तो रानी रामपाल अर्जुन अवार्ड व हरियाणा के सर्वोच्च भीम अवार्ड को पहले से ही अपनी सफलताओं के खाते में जोड़ चुकी हैं। पिछले कई वर्षों से भारतीय महिला हॉकी ने रानी की कप्तानी में बेहद बढिय़ा परिणाम दिए हैं।
वर्ष 2017 में रानी की अगुवाई में भारतीय टीम ने एशियाई कप में सशक्त जीत हासिल की थी और वर्ष 2018 में रजत पदक जीता था। एफआईएच में रानी के निर्णायक गोल से भारतीय टीम ओलंपिक क्वालीफायर्स कर सकी। वर्ष 2020 में होने वाले ओलंपिक गेम्स कोरोना के कारण रद हो गए नहीं तो इन खेलों में भी रानी की कप्तानी में भारतीय महिला हॉकी टीम ने शिरकत करनी थी। उल्लेखनीय है कि रानी रामपाल अपने खेल की बदौलत सदैव ही खेल जगत की सुर्खियों में रही है और क्योंकि जबसे रानी रामपाल भारतीय टीम का हिस्सा बनी हैं तब से रानी खेल मैदान में कोई न कोई करिश्मा करती आई हैं।
पिता ने खिलाडिय़ों को देख बेटी को भेजा था मैदान में
रानी के हॉकी के संघर्ष की कहानी पिता की मेहनत के साथ शुरू हुई थी। रानी के पिता शाहाबाद की सड़कों पर घोड़ागाड़ी चलाया करते थे और अक्सर सड़क से महिला हॉकी खिलाडिय़ों को आते-जाते देखा करते थे। बस यहीं से पिता के दिल में बेटी को हॉकी खिलाने की चाह जाग उठी और वह छह वर्षीय बेटी को एसजीएनपी स्कूल के हॉकी मैदान में कोच बलदेव ङ्क्षसह के पास छोड़ जाए। जहां से रानी की हॉकी की स्वर्णिम शुरुआत हुई। यह बेहद रोमांचकारी है कि उस समय रानी के घर में अलार्म वाली घड़ी भी नहीं हुआ करती थी और पिता रामपाल व माता राममूर्ति तारों की छांव से अंदाजा लगाकर बेटी को उठाते और हॉकी मैदान में भेजा करते थे।
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