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    हरियाणा में बाढ़ के बाद खेतों में गाद ने उड़ाई किसानों की नींद, रेत उठाने को लेकर सरकार से की क्या मांग?

    Updated: Wed, 10 Sep 2025 04:06 PM (IST)

    हरियाणा में बाढ़ के बाद किसानों की जमीनों पर रेत और गाद जम गई है जिससे फसलें बर्बाद हो गई हैं। किसान हरियाली जमींदोज खेत रेतीस्तान की स्थिति से जूझ रहे हैं। वे सरकार से पंजाब की तरह रेत उठवाने की नीति बनाने और मुआवज़ा देने की मांग कर रहे हैं। किसानों को अगली बिजाई की चिंता है और वे सरकार से मदद की उम्मीद लगाए बैठे हैं।

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    हरियाणा में बाढ़ के बाद किसानों की जमीनों पर रेत और गाद जम गई है (फोटो: जागरण)

    जागरण टीम, पानीपत। यमुना, सोम, मारकंडा, घग्गर और कई अन्य बरसाती नदियां शांत हो गई। पानी उतरने के बाद खेतों में रेत ही रेत नजर आ रहा है। फसलें जमींदोज हो गई है। प्रदेश के किसान पंजाब की तरह रेत उठवाने की नीति बनाने मांग कर रहे हैं।

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    सरकार की ओर से सहायता की उम्मीद लगाए बैठे हैं। हजारों एकड़ फसलों पर रेत और गाद की माटी परत जम गई है। जहां 15 दिन पहले खुशहाली की हरियाली लहलहा रही थी, वहां आज रेत ही रेत नजर आ रहा है। यमुनानगर जिला सबसे अधिक प्रभावित है।

    वहां यमुना के साथ-साथ सोम नदी के पानी ने भी बड़ा नुकसान किया है। पानीपत, सोनीपत, करनाल और फरीदाबाद में भी भारी नुकसान हुआ है। यमुनानगर के छछरौली व व्यासपुर उपमंडल के 40 गांवों में सोम नदी में आई बाढ़ से रेत के नीचे फसल दब गई। इससे रबी की बुआई करना आसान काम नहीं है।

    रेत और गाद से तबाह हुई एक हजार एकड़ से ज्यादा फसल

    एक हजार से अधिक एकड़ की फसल रेत व गाद की भेंट चढ़ गई। यमुना नदी के कारण लगभग 2200 एकड़ भूमि पर रेत और गाद जमा है। वर्ष 2023 में सरकार ने बाढ़ से खेतों में जमा गाद और रेत की नीलामी की योजना बनाई थी। उपायुक्त की अध्यक्षता में बनी प्रशासनिक कमेटी की देखरेख में रेत की नीलामी प्रक्रिया होनी थी।

    बिक्री से एक तिहाई हिस्सा किसान और दो तिहाई हिस्से पैसे सरकार को मिलते। तत्कालीन डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला ने दावा किया था कि यदि खेत में एक एकड़ की रेत एक लाख रुपये में बिकती है तो किसान को इसमें से 33 हजार रुपये मिलेंगे। 67 हजार रुपये सरकार के हिस्से में आने थे, लेकिन योजना सिरे नहीं चढ़ पाई।

    अभी स्पष्ट नहीं हो पाया खेतों से कौन हटाएगा रेत

    वर्ष 2023 में रेत हटाने योजना बनाने वाले तत्कालीन राजस्व एव उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला से बात करने का प्रयास किया गया तो जजपा के प्रदेश प्रवक्ता दीपकमल सहारण ने बताया कि वर्ष 2023 में राज्य की गठबंधन सरकार ने प्रभावित लोगों को व्यापक स्तर पर फ़ौरी राहत और उचित मुआवजा दिया गया।

    खेतों में जमी रेत पर पहली बार नीति बनाई गई कि रेत की क़ीमत में से किसान को भी हिस्सा मिलेगा। 2024 के चुनावी वर्ष में बनी भाजपा सरकार इन सब कामों को भूल गई। अब तक यह स्पष्ट नहीं है कि खेतों में भरी गाद और रेत को कौन व कब हटाएगा। किसान को क्या मिलेगा। लगता नहीं कि राजस्व मंत्री को इसकी कोई जानकारी भी हो।

    राणा कृषि मंत्री श्याम सिंह राणा ने कहा कि नुकसान की भरपाई पर सरकार गंभीर है। किसानों को मुआवजा देने के लिए क्षतिपूर्ति पोर्टल खोल दिया गया है। किसान को खेत से रेत उठाने की अनुमति या खेत सुधार के लिए वित्तीय मदद दिए जाने की कोई योजना नहीं है। फिर भी किसानों की इस मांग को मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी के समक्ष रखा जाएगा। किसानों की मदद के सरकार तैयार है।

    किसानों ने बताया अपना दुख

    कुरुक्षेत्र के गांव पट्टी काकड़ा के मुख्त्यार सिंह ने बताया कि उसकी जमीन मारकंडा तटबंध के पास ही है। उसकी सात एकड़ जमीन में कई दिनों से पानी बह रहा है। जब पानी उतरेगा तो पता चलेगा कि पानी के साथ कितना रेत आया है।

    कई बार छह इंच ने डेढ़ फीट तक रेत खेत में पहुंच जाता है। इस रेत ने खेत में खड़ी फसल नष्ट कर दिया है। मेरे खेत में जितना रेत आया है, वह रेत भी मेरा है। इसे उठाने का अधिकार भी मुझे ही मिलना चाहिए। हर वर्ष 20 गांवों की करीब सात हजार एकड़ फसल खराब होती है।

    भारतीय किसान संघ के प्रदेश प्रवक्ता विकास राणा ने कहा कि बाढ़ और वर्षा से यमुनानगर में ही करीब 30 हजार एकड़ क्षेत्र में खड़ी धान, पापुलर, गन्ना और चारे की फसल पूरी तरह बर्बाद हो गई है। सरकारी आंकडा कम है।

    जमीन ठेके पर ली गई है तो छह माह का लगभग 50 हजार रुपये अतिरिक्त खर्च जुड़ जाता है। खेतों में मिट्टी, गाद और रेत जम गई है। उसे निकालने की अनुमति दी जाए। खेतों में दो फीट से लेकर तीन फीट रेत जमा है।

    सरकार से मांगा रेत निकालने का खर्च

    करनाल के चौगावां गांव के किसान श्याम सिंह ने बताया कि साढ़े 12 एकड़ जमीन यमुना के पास है। पानी उतरने पर भूमि कटाव शुरू हो गया और उनकी करीब आठ एकड़ जमीन यमुना में कट गई।

    बचे खेतों में रेत की मोटी परत जमा हो गई है। वर्ष 2023 में भी उनके खेतों का बड़ा नुकसान हो गया था। कई कई फीट रेत, मिट्टी व गाद खेत में जम गई थी। सरकार को पंजाब की तरह खेतों से रेत निकालने का खर्च देना चाहिए।

    कई पीढ़ियों से कर रहे संघर्ष पानीपत के किसान रोशन लाल का कहना है कि यमुना के पानी से हमें हर वर्ष जूझना पड़ता है। रेत के कारण फसलें खराब हो जाती हैं, जमीन की स्थिति खराब हो जाती है, उसको ठीक करके फिर उसे खेती लायक करने का प्रयास किया जाता है।

    यह करते-करते कई पीढ़ियां बीत गई हैं। हमें अपने बच्चों का पालन पोषण करना भी मुश्किल हो जाता है, इसके अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है। फसल पर चढ़ गई रेत अंबाला के गांव शाहपुर के मनजीत सिंह ने बताया कि उसने पौना एकड़ में धान की फसल का नुकसान हो गया है।

    उसका एकड़ में एक चौथाई हिस्सा है, जिसमें एक हिस्सा उसका है, बाकी तीन हिस्सों की जमीन का ठेका देता है। रेत मिट्टी चढ़ गई है। यह सब बांध के टूटने से हुआ है।

    गुरनाम सिंह चढ़ूनी ने क्या कहा?

    भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष गुरनाम सिंह चढ़ूनी का कहना है कि फसल म्हारी, खेत म्हारा तो इसमें आया रेत सरकार का कैसे हो गया? रेत ने किसान की फसल को नुकसान पहुंचाया है। इस रेत को उठाने का काम भी किसान ही करेगा। सरकार को खेत से रेत नहीं उठाने देंगे। अगर सरकार को रेत उठाना है तो किसान के खेत की पूरी कीमत चुकानी होगी।

    करनाल जिला के चौगांवा में एक किसान की सात एकड़ जमीन यमुना में बह गई। पंजाब सरकार ने जिसका खेत, उसका रेत योजना लागू की है। प्रदेश सरकार की इसी योजना को लागू करें। -