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    दादा लख्मी चंद के पोते से मिलिए, बोल नहीं पाते थे, अब दादा के सांग से लूट लेते हैं महफि‍ल

    By Umesh KdhyaniEdited By:
    Updated: Wed, 07 Apr 2021 08:37 AM (IST)

    विष्णु दत्त गले की नस में दिक्कत के कारण चार साल मंच से दूर रहे। एक बार तो मंच छोड़ने तक का मन बना लिया था। पर जनता से मिले प्यार में दर्द को भुला फिर ...और पढ़ें

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    दादा लख्मी चंद के पोते विष्णु दत्त चार साल सांग से दूर रहे।

    पानीपत [रामकुमार कौशिक]। अगर आप हरियाणा से हैं तो दादा लखमीचंद का नाम जरूर सुना होगा। अब तो दादा लखमीचंद पर मूवी भी आ रही है। उनके पोते भी दादा की राह पर हैं। हरियाणवी संस्‍कृति को आगे बढ़ा रहे हैं। ये हैं विष्‍णु दत्‍त।

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    विष्‍णु दत्‍त को गले की नस में दिक्कत थी। ज्यादा देर तक बोलने पर दर्द होने लगता। इसी कारण चार साल तक सांग से दूर रहे। डाक्टरों ने भी ज्यादा न बोलने की सलाह दी है। लेकिन दादा लखमी चंद द्वारा शुरू की गई परंपरा को आगे बढ़ाने को धर्म और कर्तव्य समझ सांगी बने पौत्र विष्णु दत्त जनता से मिले प्यार में दर्द को भुला मंच पर उतर जाते हैं। मंगलवार को भी पानीपत के एसडी पीजी कालेज में चल रहे सांग उत्सव में उन्होंने दादा द्वारा रचित पदमावत सांग का पार्टी के साथ मंचन किया।

    पिता के साथ सांग में जाने लगे

    विष्णु दत्त ने बताया कि दादा लखमी चंद महान कवि हुए। उनके सांग के देखने के लिए कोसो दूर से लोग पैदल चले आते थे। उनकेद्वारा उस समय कही गई बातें आज पूरी भी हो रही हैं। दादा द्वारा चलाई गई परंपरा को मेरे पिता पंडित तुलाराम ने भी आगे बढ़ाया। जब वह दसवीं कक्षा में थे तो उनका लगाव भी सांग के प्रति हुआ। उन्होंने पिता को गुरु माना और सांग में शामिल होने लगे। साथ ही पढ़ाई को भी जारी रखा। बीए करने के बाद दादा और पिता द्वारा चलाई परंपरा को आगे बढ़ाने को ही धर्म और कर्तव्य समझ उसमें रम गए। दत्त ने बताया कि करीब दस साल तक पिता के साथ सांग किए और उनके निधन के बाद अब 13 साल से अपनी पार्टी बनाकर सांग कर रहे हैं। पूरे परिवार में वह अकेले हैं जो सांग करते हैं। उनकी कोशिश रहेगी की उनका बच्चा भी पूवर्जों की परंपरा को आगे बढ़ाए।

    गलत चीजें ज्यादा दिन नहीं चलती

    विष्णु दत्त ने कहा कि सांग हमारी प्राचीन संस्कृति का हिस्सा है। जो पुराने समय में लोगों के मनोरंजन का साधन होता था। आजकल गानों के साथ जो चीजें परोसी जा रही है। वो ज्यादा दिन चलने वाली नहीं है। गानों की बराबरी के लिए वो अपनी परंपरा को नहीं बदलेंगे। एक दिन फिर से प्राचीन कला संस्कृति (सांग) ही आगे निकलेगी। क्योंकि ये पिछले 250 सालों से चली आ रही है।

    चार साल दूर रहा, छोडऩे का बनाया मन

    विष्णु दत्त ने बताया कि सांग में गायन के दौरान पूरा जोर लगता है। कई साल तक सांग की प्रस्तुति के बाद उनके गले की नस में दिक्कत हो गई। करीब चार साल तक वो सांग से दूर रहे और उन्होंने छोडऩे का मन बनाया। लेकिन जनता का प्यार उन्हें दोबारा से मंच पर खींच लाया। क्योंकि लोग मुझमें दादा की छवि को देखते हैं। दत्त ने बताया कि कई बार प्रस्तुति के दौरान इतना दर्द होता है की आंखों से आंसू निकल आते हैं। परंतु दर्द के आंसू जनता के प्यार में पी जाता हूं।

    दादा को मिले भारत रत्न 

    पौत्र विष्णु दत्त ने कहा कि दादा लख्मी चंद को भारत रत्न देने की हरियाणा कला परिषद के निदेशक संजय भसीन ने जो मांग की है। मैं उसका पूरी तरह से समर्थन करते हैं। दादा को भारत रत्न देने की ये मांग इससे पहले भी कई बार उठ चुकी है। मैं चाहता हूं की लोगों के साथ सरकार भी इसको लेकर काम करे।