कूलर निर्माताओं पर महामारी की मार, करोड़ों का माल स्टॉक, खरीदार बाजार से नदारद
कोरोना महामारी और लॉकडाउन की वजह बाजार काफी ज्यादा प्रभावित हुआ। इस बार कूलर निर्माताओं में भी इस महामारी का असर देखने को मिल रहा है। कोरोड़ों का माल स्टॉक कर लिया लेकिन अब उसके खरीदार नहीं मिल रहे हैं।

करनाल, जेएनएन। कहावत है कि जब दुनिया में कोई आपदा आती है उस समय उसका प्रतिकूल प्रभाव व्यापारियों पर पड़ता है। कोविड-19 ने जहां देश की आर्थिक दशा को काफी नुकसान पहुंचाया, वहीं इसकी हद से कूलर निर्माता भी अछूता नहीं रहा। यह दूसरा वर्ष है जब कूलर निर्माताओं को कोरोना महामारी के कारण भारी खामियाजा भुगतना पड़ रहा है।
वर्ष-2020 में भी कोरोना के शुरूआत में केस आने से देश में हलचल मच गई थी, वहीं मार्च आते-आते इसके गंभीर लक्षण दिखने शुरू हो गए, जिस कारण 23 मार्च से देश में लॉकडाउन लग गया, जो डेढ माह बाद चार मई को चरणबद्ध तरीके से खुला। उस समय भी कूलर निर्माताओं का गर्मी का सीजन खराब हो गया। जैसे-तैसे उस आपदा से निकलकर संभले भी थे कि देश में राज्य सरकारों द्वारा फिर लॉकडाउन लगा दिया।
मई और जून का महीना ही होता है जिसमें कूलर की ज्यादा बिक्री होती है।कूलर विक्रेताओं का कहना है कि मई का महीना तो पूर्ण रूप से लॉकडाउन में चला गया और जून का कोई भरोसा नहीं कि काम चलेगा या नहीं, क्योंकि मौसम विभाग की चेतावनी है कि केरला से शुरू हुआ मानसून जून के अंत तक यहां आ जाएगा। जिसकी वजह से भी ग्राहक कूलर खरीदने को लेकर असमंजस की स्थिति में पड़ जाता है।
ऐसा नहीं है कि ये मार केवल कूलर निर्माताओं पर पड़ती है, इसका प्रतिकूल प्रभाव उन दुकानदारों पर भी पड़ता है। जिन्होंने सैंकड़ों की संख्या में कूलर स्टाक कर रखा होता है। ज्ञातव्य है कि उत्तर भारत में प्रचंड गर्मी पडऩे के कारण अधिकांश एवं मध्य वर्गीय लोगों का कूलर ही एक मात्र सहारा होता है। जिससे वह गर्मी से निजात पा सकता है।
लॉकडाउन के कारण दुकानदार अपनी दुकानों के बाहर बैठ जाते है। फिर भी ग्राहक बाजार में नजर नहीं आता, जिससे वह हताश और निराश होकर वह घर लौट जाता है। दुकानदारों का कहना है कि जब तक लॉकडाउन खुलेगा उस समय उनकी दुकानों पर बकाया राशि देने का दबाव होगा। जोकि उनकी मानसिक बीमारी का कारण बनेगा। कुछ दुकानदारों का तर्क है कि कोरोना महामारी के कारण एक तो लोगों के पास काम नहीं रहा, जो उनकी जमा पूंजी थी वह भी कोरोना के चलते अस्पतालों में खर्च हो गई। अगर कुछ बचा है तो वह उसे अपने घरों में बचाकर रख रहे है। वहीं कूलर निर्माताओं पर इस बार दोहरी मार पड़ी है। कूलर निर्माता संजय सिंगला ने बताया कि कूलर में इस्तेमाल होने वाली जीपी शीट 56 रुपये किलो थी वह 92 रुपए किलो चली गई है।
वहीं कूलरों में लगने वाली मोटर के रेट भी आसमान को छू गए है, जो कॉपर 570 रुपए किलो थी, उसका भाव आज अलग-अलग कंपनियों में 350 से लेकर 950 रुपए प्रति किलो है, जिस कारण कूलर महंगा तैयार हो रहा है। महंगे मेटिरियल के कारण कूलर का रेट बजट से बाहर हो गया है। निर्माता संजय सिंगला ने सरकार से अपील की है कि कूलर निर्माताओं की ओर ध्यान दें ताकि वे अपने इस कारोबार में बढ़ते घाटे की पूर्ति कर सके।
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