प्रेम मंदिर में ठाकुर जी का जन्मोत्सव मनाया, फूलों की होली खेली
जागरण संवाददाता पानीपत प्रेम मंदिर का 102वां वार्षिक सम्मेलन मनाया जा रहा है। मंदिर में दू ...और पढ़ें

जागरण संवाददाता, पानीपत : प्रेम मंदिर का 102वां वार्षिक सम्मेलन मनाया जा रहा है। मंदिर में दूसरे सत्र में ठाकुर जी का जन्मोत्सव धूमधाम से मनाया गया। मंदिर को गुब्बारों और फूलों से सजाया गया। भक्तों ने फूलों की होली खेली। हरमिलापी मिशन के परमाध्यक्ष मदन मोहन हरमिलापी महाराज और मंदिर की परमाध्यक्ष कांता देवी महाराज ने सम्मेलन की अध्यक्षता की।
भानपुरा पीठ से पधारे शंकराचार्य महाराज ने कहा कि सत्संग के माध्यम से हमें जीने की राह मिलती है। संत ही मनुष्य को बगुले से हंस बनाते हैं। मन, बुद्धि को तमोगुण और रजोगुण से हटाकर सतोगुणी बनाते हैं। धीरे-धीरे प्रयास करते रहने से भक्त सही रास्ते पर चल पड़ते हैं। उन्होंने कहा कि सत्संग से हम निर्मल होते हैं। दुख, क्रोध, काम आदि शरीर में रहते हुए भी विचलित नहीं करते। सत्संग श्रवण कर मनन व जीवन में अपनाने से मन सहज ही सेवा सिमरन में लग जाता है। फलस्वरूप सहयोग तथा समर्पण भाव भी जागृत हो जाते हैं। समता योग में स्थिर होने पर भक्त सबमें ईश्वर का रूप निहारता है। उसके लिए हरि व्यापक सर्वत्र समाना प्रेम ते प्रकट होत मैं जाना, चरितार्थ हो जाता है।
भाव से शीघ्र रीझ जाते हैं भगवान
स्वामी दयानंद सरस्वती महाराज ने कहा कि भगवान भाव से शीघ्र रीझ जाते हैं। भगवान के भजन गाने के लिए सुर व ताल का होना जरूरी नहीं है। भगवान तो केवल भाव ही मांगते हैं। वृंदावन से पधारे स्वामी ज्ञानानंद महाराज ने कहा कि श्रीमदभागवत गीता में भगवान ने स्वयं कहा है कि मुझे स्मरण करते हुए अपने कर्म में लगे रहो। फल की इच्छा मत रखो। फल अपने आप मिलेगा। सहारनपुर से पधारे बाबा रिजकदास ने प्रभुनाम का गुणगान कर वातावरण को रसमय बना दिया। देहरादून से पधारे काका हरिओम ने कहा कि इस अमूल्य चोले के मिलने के बाद यदि व्यक्ति शास्त्रों में निहित तथा धर्म अनुसार आचरण नहीं करता तो उसमें तथा अन्य जीवों में कोई अंतर नहीं रह जाता। सत्संग में सबको यह पता चलता है कि कब, कहां कैसे बोलना है। किसे देखना है और क्या सुनना है।

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