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    कारपेट उद्योग पर खतरे के बादल

    By Edited By:
    Updated: Tue, 03 Jan 2012 01:49 AM (IST)

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    महावीर गोयल, पानीपत

    अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कारपेट (गलीचा) उद्योग में भारत तथा चीन में कड़ी प्रतिस्पद्र्धा चल रही है। एक तरफ जहां भारतीय कारपेट उद्यमी अपने वर्चस्व को बचाने के लिए पुरानी तकनीक पर निर्भर हैं, वहीं चीन आधुनिक तकनीक आटोमैटिक प्लांट में कारपेट बन रहा है। आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल होने के कारण अंतरराष्ट्रीय मार्केट में चीन का बना कारपेट भारत से मंदा पड़ रहा है। यदि सरकार ने कारपेट उद्योग की तरफ ध्यान नहीं दिया तो देश के कारपेट उद्योग बंद होने में देर नहीं लगेगी।

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    भारत से लगभग तीन हजार करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा कारपेट उद्योग से मिल रही है। पानीपत के अलावा, भदोई, जयपुर, श्रीनगर में कारपेट उद्योग का बड़ा कारोबार है। अकेले पानीपत से 800 करोड़ रुपये के कारपेट का सालाना निर्यात होता है। बदलते परिवेश में सभी उद्योग आधुनिक तकनीक अपना रहे हैं। मेन्युफैक्चरिंग की नई तकनीक न आने के कारण चीन का कारपेट सस्ता पड़ रहा है।

    पानीपत में कारपेट टफटिंग ही मशीन से होती है बाकि सभी कार्य मैन्यूल होते है। मैन्यूल कार्य होने के कारण कारपेट की उत्पादन लागत अधिक पड़ रही है।

    प्रशिक्षित कारीगर की कमी

    प्रशिक्षित कारीगर की कमी भी कारपेट उद्योग झेल रहा है। यदि ऐसे ही हालत बने रहे तो आने वाले दिनों में कारपेट उद्योग धंधे ठप हो जाएंगे।

    दो वर्ष से आइटीआइ की मांग

    कारपेट मेन्युफैक्चर्स एसोसिएशन के महासचिव अनिल मित्तल का कहना है कि कारपेट उद्यमियों ने दो साल पहले सरकार से पानीपत में प्रशिक्षित लेबर के लिए आइटीआइ खोलने की मांग की गई थी। कारपेट उद्यमियों ने उद्योग के बेहतरी के लिए कारपेट जोन बनाने की मांग भी की थी। इन दोनों मांगों की सुनवाई नहीं हो पाई। वर्तमान समय में कारपेट के आर्डर कम है। आर्डर कम होने के कारण जो थोड़े बहुत कारीगर थे वे भी अन्य उद्योगों में चले गए। ऐसे मे अच्छे आर्डर की स्थिति में कारपेट उद्योग को प्रशिक्षित कारीगर नहीं मिल पाएंगे।

    लालफीताशाही का शिकार

    कारपेट उद्योग लालफीताशाही का शिकार है। उत्तर प्रदेश में कारपेट पर वैट नहीं है, जबकि हरियाणा में कारपेट पर 12.50 प्रतिशत वैट लगा हुआ है। नब्बे प्रतिशत कारपेट का निर्यात होता है। ऐसे में वैट से प्रदेश सरकार के राजस्व में भी कोई फायदा नहीं होता। कारपेट उद्यमियों तथा सेल टेक्स विभाग को सिवाह परेशानी के कुछ नहीं मिल रहा। कारपेट उद्यमियों को हर तीन महीने में रिटर्न दाखिल करनी होती है। कागजी कार्रवाई का दबाव बढ़ाया गया है।

    लेटेक्स के भाव दोगुना

    पिछले दो साल में कारपेट में लगने वाले लेटैक्स के भाव दोगुना हो चुके हैं। कच्चे माल के भाव में तेज होने से कारपेट की उत्पादन लागत में वृद्धि हो गई है।

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